प्लास्टिक अपशिष्ट: एक चुनौती के रूप में | 29 Jul 2020

प्रीलिम्स के लिये

प्लास्टिक अपशिष्ट से संबंधी तथ्य, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड 

मेन्स के लिये 

प्लास्टिक अपशिष्ट का प्रभाव और इसे रोकने हेतु किये गए विभिन्न प्रयास

चर्चा में क्यों?

एक हालिया अध्ययन के मुताबिक, यदि तत्काल प्रभाव से कोई निरंतर कार्रवाई नहीं की गई तो वर्ष 2040 तक समुद्र में प्लास्टिक का वार्षिक प्रवाह तकरीबन 3 गुना बढ़कर 29 मिलियन मीट्रिक टन प्रति वर्ष तक पहुँच सकता है।

प्रमुख बिंदु

  • अध्ययन के अनुसार, यह आँकड़ा दुनिया भर के सभी समुद्र तटों पर प्रति मीटर 50 किलोग्राम प्लास्टिक के बराबर है।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान में तकरीबन दो बिलियन लोगों की अपशिष्ट संग्रह प्रणाली तक पहुँच नहीं है, और वर्ष 2040 तक यह आँकड़ा दोगुना होकर चार बिलियन हो जाएगा, जिनमें से अधिकतर लोग मध्य एवं निम्न-आय वाले देशों के ग्रामीण इलाकों से होंगे।
    • रिपोर्ट में पाया गया कि यदि इस अंतराल को कम करना है तो हमें वर्ष 2040 तक प्रतिदिन 500,000 लोगों को इस प्रणाली से जोड़ने की आवश्यकता होगी।
  • रिपोर्ट में दिये गए अनुमान के अनुसार, वर्तमान में वैश्विक स्तर पर लगभग 22 प्रतिशत अपशिष्ट का संग्रहण संभव नहीं हो पाता है और यदि इस संबंध में कोई तत्काल कार्रवाई नहीं की गई तो यह 34 प्रतिशत तक पहुँच सकता है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, आगामी 20 वर्षों में समुद्र में मौजूद प्लास्टिक की कुल मात्रा 450 मिलियन मीट्रिक टन तक पहुँच सकती है, जिसका जैव विविधता, मानव स्वास्थ्य और समुद्रों के पारिस्थितिकी तंत्र पर कई गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
  • यदि स्थिति ऐसी ही रहती है तो हम पेरिस समझौते में वर्णित उद्देश्यों को भी प्राप्त नहीं कर पाएँगे।
  • रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि वर्तमान प्लास्टिक रीसाइक्लिंग प्रणाली पूरी तरह से निष्फल हो चुकी है।
    • रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान में कुल वैश्विक अपशिष्ट का केवल 20 प्रतिशत हिस्सा ही रीसाइक्लिंग केंद्रों तक पहुँच पाता है और उसमें से भी मात्र 15 प्रतिशत ही असल में रिसाइकल हो पाता है।

UK-PCS

प्लास्टिक अपशिष्ट में भारत की स्थिति

  • वर्ष 2019 में प्रकाशित केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में एक दिन में करीब 25,940 टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें से 40 प्रतिशत से अधिक प्लास्टिक कचरा असंग्रहीत ही रह जाता है।
  • भारत की प्रति व्यक्ति प्लास्टिक की खपत 11 किग्रा. से कम है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रति व्यक्ति प्लास्टिक की खपत का लगभग दसवाँ हिस्सा है।

प्लास्टिक: एक वैश्विक चुनौती के रूप में

  • प्लास्टिक का आविष्कार सर्वप्रथम 19वीं सदी में किया गया था, किंतु 20वीं सदी तक यह एक बड़ी समस्या नहीं बना था।
  • समय के साथ प्लास्टिक की समस्या भी गंभीर होती गई और प्लास्टिक का उत्पादन तेज़ी से बढ़ने लगा, आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2017 में 348 मिलियन मीट्रिक टन प्लास्टिक का उत्पादन किया गया था, जो कि वर्ष 1950 से पूर्व मात्र में 2 मिलियन मीट्रिक टन था।
  • वर्तमान में प्लास्टिक उद्योग वैश्विक स्तर पर काफी बड़ा उद्योग बन गया है और वर्तमान में इसका उपयोग पैकेजिंग से लेकर विनिर्माण तक अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्रों में किया जाता है। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2040 तक प्लास्टिक का उत्पादन लगभग दोगुना हो जाएगा।
  • जैसे-जैसे प्लास्टिक के उत्पादन और उपयोग में वृद्धि हुई है, उसी प्रकार प्लास्टिक के कारण उत्पन्न होने वाले प्रदूषण में भी वृद्धि हुई है।
  • प्लास्टिक प्रदूषण का प्रभाव
    • प्लास्टिक अपशिष्ट का जलीय, समुद्री और स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र में रहने वाले जानवरों पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। प्लास्टिक जानवरों के पाचन तंत्र को खराब कर देता है, जिससे उनकी मृत्यु हो जाती है।
    • एक अनुमान के अनुसार, 800 से अधिक प्रजातियाँ पहले से ही समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण से प्रभावित हैं।
    • प्लास्टिक प्रदूषण का मानव स्वास्थ्य पर भी काफी गंभीर प्रभाव देखने को मिलता है, प्लास्टिक से निकलने वाले तमाम तरह के रसायनों में ऐसे यौगिक मौजूद होते हैं, जो मानव स्वास्थ्य से संबंधित अवांछित परिवर्तन और आनुवंशिक विकारों को बढ़ावा देते हैं।
    • प्लास्टिक का कुप्रबंधन भी मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
    • अकसर प्लास्टिक जल निकास के लिये मौजूद प्रणालियों में फँस जाता है और उस क्षेत्र में पानी एकत्रित होने लगता है, जिससे आस-पास के इलाकों में अपशिष्ट-जनित रोगों का प्रसार हो सकता है।

सुझाव

  • वर्ष 2040 तक प्लास्टिक के अनुमानित उत्पादन और खपत में वृद्धि को लगभग एक तिहाई कम किया जाना चाहिये। 
  • वर्ष 2040 तक प्लास्टिक अपशिष्ट के छठवें हिस्से को अन्य सामग्रियों के साथ प्रतिस्थापित करना। 
  • वर्ष 2040 तक मध्य और निम्न-आय वाले देशों में शहरी क्षेत्रों में 90 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्रों में 50 प्रतिशत तक अपशिष्ट संग्रह दरों का विस्तार करना और अनौपचारिक अपशिष्ट संग्रह क्षेत्र का समर्थन करना। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ