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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ऑटिज़्म पर प्रशिक्षण के लिये चौथी राष्ट्रीय कार्यशाला

  • 09 Apr 2018
  • 11 min read

चर्चा में क्यों?

  • बच्चों में ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर के निदान और प्रबंधन के लिये ऑटिज़्म टूल्स-इंटरनेशनल क्लिनिकल एपिडेमियोलॉजी नेटवर्क (आईएनसीएलईएन) और इंडियन स्केल ऑफ़ असेसमेंट ऑफ़ ऑटिज़्म (आईएसएए) पर मास्टर प्रशिक्षकों को प्रशिक्षित करने हेतु तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला 06 अप्रैल, 2018 को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में शुरू हुई।
  • इस कार्यशाला का आयोजन अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS), नई दिल्ली के सहयोग से सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अंतर्गत नेशनल ट्रस्ट ने किया। 

उद्देश्य

  • इस कार्यशाला का उद्देश्य देश भर के डॉक्टरों को ऑटिज़्म टूल्स से अवगत कराना है ताकि वे ऑटिज़्म टूल्स का इस्तेमाल करते हुए नैदानिक मानदंड की जानकारी देने के साथ-साथ संदिग्ध ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिस्ऑर्डर वाले बच्चे का नैदानिक मूल्यांकन कर सकें।

प्रमुख बिंदु

  • नेशनल ट्रस्ट, बाल तंत्रिका विज्ञान डिवीज़न, बाल चिकित्सा विभाग, एम्स के सहयोग से इस तरह की तीन राष्ट्रीय कार्यशालाएँ सफलतापूर्वक आयोजित कर चुका है, जिनमें देश भर के 250 से अधिक बाल रोग विशेषज्ञों, मनोचिकित्सकों और नैदानिक मनोवैज्ञानिकों को ऑटिज़्म टूल्स में मास्टर ट्रेनर्स का प्रशिक्षण दिया जा चुका है।
  • नेशनल ट्रस्ट, दिव्यांगजन सशक्तीकरण विभाग (Department of Empowerment of Persons with Disabilities) के अंतर्गत ऑटिज़्म, सेरीब्रल पाल्सी (Cerebral Palsy), सामान्य विकास में कमी और अन्य दिव्यांगता वाले व्यक्तियों के कल्याण के लिये संसद के कानून द्वारा स्थापित एक वैधानिक संगठन है।
  • नेशनल ट्रस्ट द्वारा दिव्यांग व्यक्तियों के कल्याण के लिये विभिन्न योजनाएँ और कार्यक्रम चलाए  जा रहे हैं। इसका प्रमुख कार्य इस प्रकार की दिव्यांगता के बारे में कार्यशालाएँ, संगोष्ठियाँ और सम्मेलन आयोजित करके आम जनता के बीच जागरूकता पैदा करना है।
  • दुनिया भर में शहरी और ग्रामीण समुदाय के बीच ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिस्ऑर्डर बढ़ रहा है। पिछले दशक से बाल तंत्रिका विज्ञान डिवीज़न जो कि एम्स, नई दिल्ली के बाल चिकित्सा विभाग के अंतर्गत अब सेंटर ऑफ एक्सीलेंस एंड एडवांस्ड रिसर्च फॉर चाइल्डहुड न्यूरो डेवलपमेंटल डिस्ऑर्डर के नाम से जाना जाता है, लोगों में जागरूकता पैदा करने, चिकित्सकों (राष्ट्रीय और अतंर्राष्ट्रीय) को प्रशिक्षण देने तथा नैदानिक कार्य में सक्रियता से लगा हुआ है।

दिव्यांगजन सशक्तीकरण विभाग

  • ‘विकलांगता’ का विषय संविधान की सातवीं अनुसूची की राज्‍य सूची में आता है। लेकिन भारत सरकार हमेशा से विकलांगता के क्षेत्र में सक्रिय रही है।
  • सामाजिक न्‍याय एवं अधिकारिता मंत्रालय का दिव्यांगजन सशक्तीकरण विभाग दिव्यांग व्‍यक्तियों, जिनकी जनसंख्‍या वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, 2.68 करोड़ है और जो देश की कुल जनसंख्‍या के 2.21 प्रतिशत हैं, के सशक्‍तीकरण को सुगम बनाता है।
  • दिव्यांग व्‍यक्तियों में, दृष्टिबाधित, श्रवणबाधित, वाकबाधित, अस्थि विकलांग और मानसिक रूप से दिव्यांग व्‍यक्ति शामिल हैं।
  • यह न सिर्फ सात राष्‍ट्रीय संस्‍थानों (एनआई), जो विभिन्न प्रकार की विकलांगताओं के लिये अलग अलग कार्य कर रहे हैं और साथ में संयुक्‍त क्षेत्रीय केंद्रों (सीआरसी), जो दिव्यांग व्‍यक्तियों को पुनर्वास सेवाएँ मुहैया कर रहे हैं एवं पुनर्वास पेशेवरों के लिये पाठ्यक्रमों का संचालन कर रहे हैं, को निधि प्रदान करता है अपितु इसी प्रकार की सेवाएँ प्रदान करने वाले बहुत से गैर-सरकारी संगठनों को भी निधि प्रदान करता है।
  • साथ ही यह राष्‍ट्रीय विकलांग वित्त एवं विकास निगम (एनएचएफडीसी) को भी धन देता है, जो कि दिव्यांग व्‍यक्तियों को  स्‍व-रोज़गार हेतु रियायती दरों पर ऋण देता है।

ऑटिज़्म (मस्तिष्क विकार)

  • ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम विकार (एएसडी) सामाजिक विकृतियों, संवाद में परेशानी, प्रतिबंधित, व्यवहार का दोहराव और व्यवहार का स्टिरियोटाइप पैटर्न द्वारा पहचाना जाने वाला तंत्रिका विकास संबंधी जटिल विकार है।
  • यह मस्तिष्क विकार है जो लोगों के साथ संवाद स्थापित करने में व्यक्ति की क्षमता को प्रभावित करता है।
  • आमतौर पर एएसडी बीमारी की शुरुआत बचपन में होती है तथा यह बीमारी जीवनपर्यंत बनी रहती है।

ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम विकार के प्रकार

  1. ऑटिस्टिक विकार (क्लासिक ऑटिज़्म)
    • यह ऑटिज़्म का सबसे सामान्य प्रकार होता है। ऑटिज़्म विकार से पीड़ित रोगी को भाषा में व्यवधान, सामाजिक और संचार में चुनौतियाँ तथा असामान्य व्यवहार एवं अरुचियाँ हो सकती है। इस विकार से पीड़ित बहुत सारे व्यक्तियों में बौद्धिक विकलांगता भी हो सकती है।
  2. एस्पर्जर सिन्ड्रोम
    • एस्पर्जर सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति में ऑटिस्टिक विकार के हल्के लक्षण विकसित होते है। उनमें सामाजिक चुनौतियाँ और असामान्य व्यवहार तथा अरुचियाँ भी हो सकती है।
  3. व्यापक विकासात्मक विकार
    • इस विकार को "असामान्य ऑटिज़्म " कहा जाता है। इससे पीड़ित व्यक्तियों में ऑटिस्टिक विकार से पीड़ित व्यक्तियों की तुलना में कम और मध्यम लक्षण प्रकट होते हैं। ये लक्षण केवल सामाजिक और संचार चुनौतियों का कारण बन सकते हैं।

ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम विकार के लक्षण 

  • लड़का/लड़की द्वारा अपने नाम को सुनकर बारह महीने की अवस्था तक कोई प्रतिक्रिया न करना।
  • अठारह महीने की अवस्था तक न खेलना।
  • आमतौर पर दूसरे व्यक्तियों की आँखों के संपर्क से बचना और अकेले रहना।
  • इन बच्चों को दूसरे व्यक्तियों की भावनाओं को समझने में परेशानी होती है या अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में परेशानी भी हो सकती है।
  • ये बच्चे बोलने और भाषा सीखने में देरी कर सकते हैं।
  • वे शब्दों या वाक्यांशों को अधिक-से-अधिक बार दोहराते (शब्दानुकरण) हैं।
  • प्रश्न का असंबंधित उत्तर देना।
  • यहाँ तक कि ऐसे बच्चों को मामूली बदलाव पसंद न होना।
  • उनमें अतिवादी रुचियाँ होना।
  • कभी-कभी वे अपने हाथों को फ्लैप, शरीर को रॉक या स्पिन में सर्किल बना लेते है।
  • ध्वनि, गंध, स्वाद, देखने या महसूस करने पर असामान्य प्रतिक्रिया करना।

ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम विकार के कारण 

  • एएसडी से पीड़ित होने वाले सटीक कारण अभी तक ज्ञात नहीं हैं, लेकिन इनके आनुवंशिकी और पर्यावरणीय कारकों से जुड़े होने की संभावना है। इस संदर्भ में इस विकार के साथ जुड़े अनेक जींस की पहचान की गई है।
  • एएसडी से पीड़ित रोगियों पर किये गए अध्ययनों में मस्तिष्क के कई हिस्सों  में होने वाली अनियमितताओं को पाया गया है।
  • अन्य अध्ययनों में यह पाया गया है, कि एएसडी से पीड़ित व्यक्तियों के मस्तिष्क में सेरोटोनिन या अन्य न्यूरोट्रांसमीटर का स्तर असामान्य होता है।
  • ये सभी असामान्यताएँ यह दर्शाती हैं कि जीन में दोष के कारण भ्रूण के प्रारंभिक विकास अर्थात् मस्तिष्क के सामान्य विकास में होने वाली गड़बड़ी के परिणामस्वरूप एएसडी हो सकता है, जो कि मस्तिष्क के विकास को नियंत्रित करता है तथा मस्तिष्क की कोशिकाएँ एक - दूसरे के साथ कैसे संवाद करती हैं?
  • इसे भी यह विनियमित करता है। यह विकार जींस प्रणाली के पर्यावरणीय कारकों के प्रभाव के कारण हो सकता है।

ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम विकार का निदान  

  • एएसडी का निदान मुश्किल होता है, क्योंकि इस विकार का निदान करने के लिये कोई चिकित्सीय परीक्षण जैसे कि रक्त परीक्षण नहीं किया जा सकता है। चिकित्सक निदान करने के लिये केवल बच्चे के व्यवहार और विकास की जाँच-परख कर सकता है।
  • हालाँकि, बच्चों और नन्हे बच्चों में ऑटिज़्म की संभावना के लिये जाँच सूचि के अंर्तगत ऑडियोलोजिक मूल्यांकन और स्क्रीनिंग परीक्षण किया जा सकता है।
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