अंतर्राष्ट्रीय संबंध
विलुप्त होने की कगार पर 42 भारतीय भाषाएँ
- 20 Feb 2018
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चर्चा में क्यों?
जनगणना निदेशालय (Census Directorate) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 22 आधिकारिक भाषाओँ के साथ-साथ तकरीबन 100 गैर-आधिकारिक भाषाएँ बोली जाती हैं। तकनीकीकरण के इस दौर में तकरीबन 42 ऐसी भाषाएँ अथवा बोलियाँ है जिनका अस्तित्व संकट में है, हालाँकि इन भाषाओँ अथवा बोलियों को बोलने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक नहीं हैं। तथापि ये भारत की विशाल एवं प्राचीनतम संस्कृति की द्योतक होने के कारण बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।
- इस संबंध में गृह मंत्रालय द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार, इन 42 भाषाओं में से कुछ भाषाएँ विलुप्तप्राय भी हैं।
- इसके अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र द्वारा भी ऐसी 42 भारतीय भाषाओं अथवा बोलियों की सूची तैयार की गई है, जो खतरे में हैं और धीरे-धीरे विलुप्त होने की ओर बढ़ रही हैं।
इसमें कौन-कौन सी भाषाएँ/बोलियाँ शमिल हैं?
- इन 42 संकटग्रस्त भाषाओं अथवा बोलियों में से 11 अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की हैं। इन भाषाओं में ग्रेट अंडमानीज़ (Great Andamanese), जरावा (Jarawa), लामोंगज़ी (Lamongse), लुरो (Luro), मियोत (Muot), ओंगे (Onge), पु (Pu), सनेन्यो (Sanenyo), सेंतिलीज़ (Sentilese), शोम्पेन (Shompen) और तकाहनयिलांग (Takahanyilang) हैं।
- इसके अंतर्गत मणिपुर की सात भाषाओँ/बोलियों को संकटग्रस्त घोषित किया गया है, ये हैं- एमोल (Aimol), अक्का (Aka), कोइरेन (Koiren), लामगैंग (Lamgang), लैंगरोंग (Langrong), पुरुम (Purum) और तराओ (Tarao)।
- इसके तहत हिमाचल प्रदेश की चार भाषाओं/बोलियों, बघाती (Baghati), हंदुरी (Handuri), पंगवाली (Pangvali) और सिरमौदी (Sirmaudi) को शामिल किया गया है।
- अन्य संकटग्रस्त भाषाओं में ओडिशा की मंडा (Manda), परजी (Parji) और पेंगो (Pengo) शामिल हैं।
- कर्नाटक की कोरागा (Koraga और कुरुबा (Kuruba जबकि आंध्र प्रदेश की गडाबा (Gadaba) और नैकी (Naiki) शामिल हैं।
- तमिलनाडु की कोटा (Kota) और टोडा (Toda) और असम की तेई नोरा (Tai Nora) और तेई रोंग (Tai Rong) शामिल हैं।
- अरुणाचल प्रदेश की मरा (Mra) और ना (Na), उत्तराखंड की बंगानी (Bangani), झारखंड की बिरहोर (Birhor), महाराष्ट्र की निहाली (Nihali), मेघालय की रुगा (Ruga) और पश्चिम बंगाल की टोटो (Toto) को शामिल किया गया है।
इस संबंध में सरकार की कोशिश
- द हिंदू द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार, मैसूर स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ इंडियन लैंग्वेजेज़ (Central Institute of Indian Languages) द्वारा इन सभी भाषाओं के संरक्षण और अस्तित्व की रक्षा हेतु कई केंद्रीय योजनाओं/कार्यक्रमों का अनुपालन किया जा रहा है।
- इन कार्यक्रमों के तहत व्याकरण संबंधी विस्तृत जानकारी जुटाना, एक भाषा और दो भाषाओं में डिक्शनरी तैयार करने जैसे कार्य किये जा रहे हैं।
- इसके अलावा, भाषा के मूल नियम, उन भाषाओं की लोककथाओं, इन सभी भाषाओं या बोलियों की विशेषताओं को लिखित में संरक्षित करने का काम भी किया जा रहा है।
22 आधिकारिक भाषाएँ कौन-कौन सी हैं?
- जनगणना निदेशालय की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओँ को सूचीबद्ध किया गया है, ये देश की आधिकारिक भाषाएँ हैं।
- संविधान की आठवीं सूची में निहित अनुच्छेद 344 (1) और 351 के तहत राजभाषा हिंदी समेत 22 भाषाओं को मान्यता प्रदान की गई है, ये हैं- असमी, बांग्ला, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मैतेई (मणिपुरी), मराठी, नेपाली, ओडिया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलुगु और उर्दू।
- इसके अलावा, देश में 100 से अधिक गैर-सूचीबद्ध भाषाएँ और बोलियाँ भी हैं।
- इनके अतिरिक्त, देश में 31 अन्य भाषाएँ भी हैं जिन्हें विभिन्न राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता प्रदान की गई है।
- जनगणना के आँकड़ों के अतिरिक्त देश में 1635 भाषाएँ तार्किक रूप से मातृभाषा हैं। जबकि 234 अन्य मातृभाषाओं की पहचान की गई है।
कुछ और भाषाओँ को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग
- पिछले काफी समय से निम्नलिखित 38 भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की गई है – अंगिका, बंजारा, बाजिका, भोजपुरी, भोति, भोतिया, बुंदेलखंडी, छत्तीसगढ़ी, धातकी, गढ़वाली, गोंडी, गुज्जरी, हो, कच्चाछी, कामतापुरी, कार्बी, खासी, कोडावा (कोरगी), कोक बराक, कुमांयूनी, कुरक, कुरमाली, लीपछा, लिम्बू, मिज़ो (लुशाई), मगही, मुंदरी, नागपुरी, निकोबारीज़, हिमाचली, पाली, राजस्थानी, संबलपुरी/कोसाली, शौरसेनी (प्रकृत), सिरैकी, तेन्यिदी तथा तुल्लू।
पी.एल.एस.आई. की रिपोर्ट
- पी.एल.एस.आई. (People’s Linguistic Survey of India - PLSI) द्वारा प्रस्तुत जानकारी के अनुसार, विश्व की तकरीबन 4,000 भाषाओं में से भारत में बोली जाने वाली लगभग 10% भाषाएँ अगले 50 वर्षों में विलुप्ति (extinction) की कगार पर होंगी। इन सभी भाषाओं में भारत की तटीय भाषाएँ सबसे अधिक खतरे में हैं|
- अन्य शब्दों में कहा जाए तो, भारत में बोली जाने वाली कुल 780 भाषाओं में से लगभग 400 भाषाएँ विलुप्त होने के कगार पर हैं।