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जैव विविधता और पर्यावरण

रीफ का तीसरा अंतर्राष्ट्रीय वर्ष

  • 26 Oct 2018
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लक्षद्वीप में ‘रीफ फॉर लाइफ’ थीम के तहत कोरल रीफ की स्थिति और संरक्षण (STAPCOR 2018) पर 3 दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन शुरू हुआ। ध्यातव्य है कि जूलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया द्वारा 22-24 अक्तूबर तक आयोजित इस सम्मलेन में राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।

महत्त्वपूर्ण बिंदु
  • स सम्मेलन का आयोजन जूलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया द्वारा किया गया था।
  • अंतर्राष्ट्रीय कोरल रीफ पहल (ICRI) ने 2018 को रीफ के तीसरे अंतर्राष्ट्रीय वर्ष (IYOR) के रूप में घोषित किया है।
IYOR 2018 के उद्देश्य
  • प्रवाल भित्ति या कोरल रीफ और उनसे संबंधित पारिस्थितिकी तंत्र की अहमियत के साथ-साथ उन पर मंडरा रहे खतरे के बारे में वैश्विक स्तर पर जागरूकता फैलाना। 
  • कोरल रीफ के प्रबंधन हेतु सरकारों, निजी क्षेत्र, अकादमिक और नागरिक समाज के बीच साझेदारी को बढ़ावा देना।
  • इसके संरक्षण के लिये प्रभावी प्रबंधन रणनीतियों की पहचान और कार्यान्वयन, पारिस्थितिक तंत्र का टिकाऊ उपयोग एवं सर्वोत्तम प्रथाओं को बढ़ावा देना।
रीफ का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष
  • IYOR की घोषणा पहली बार कोरल रीफ और उससे संबंधित पारिस्थितिकी तंत्र, जैसे-मैंग्रोव वन तथा समुद्री शैवाल के ऊपर बढ़ते खतरों के जवाब में अंतर्राष्ट्रीय कोरल रीफ पहल द्वारा की गई थी।
  • अंतर्राष्ट्रीय कोरल रीफ पहल ने 2008 को रीफ के दूसरे अंतर्राष्ट्रीय वर्ष के रूप में घोषित किया था।
कोरल रीफ क्या होते हैं?  
  • प्रवाल भित्तियाँ या मूंगे की चट्टानें (Coral reefs) समुद्र के भीतर स्थित प्रवाल जीवों द्वारा छोड़े गए कैल्शियम कार्बोनेट से बनी होती हैं। 
  • प्रवाल कठोर संरचना वाले चूना प्रधान जीव (सिलेन्ट्रेटा पोलिप्स) होते हैं। इन प्रवालों की कठोर सतह के अंदर सहजीवी संबंध से उत्पन्न रंगीन शैवाल जूजैंथिली (Zooxanthellae) पाए जाते हैं। 
  • प्रवाल भित्तियों को विश्व के सागरीय जैव विविधता का उष्ण स्थल (Hotspot) माना जाता है तथा इन्हें समुद्रीय वर्षावन भी कहा जाता है। 
  • प्रायः बैरियर रीफ (प्रवाल-रोधिकाएँ) उष्णकटिबंधीय या उपोष्णकटिबंधीय समुद्रों में मिलती हैं, जहाँ तापमान 20-30 डिग्री सेल्सियस रहता है। ये शैल-भित्तियाँ समुद्र तट से थोड़ी दूर हटकर पाई जाती हैं, जिससे इनके बीच छिछले लैगून बन जाते हैं। 
  • प्रवाल कम गहराई पर पाए जाते हैं, क्योंकि अधिक गहराई पर सूर्य के प्रकाश व ऑक्सीजन की कमी होती है। 

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  • प्रवालों के विकास के लिये स्वच्छ एवं अवसादरहित जल आवश्यक है, क्योंकि अवसादों के कारण प्रवालों का मुख बंद हो जाता है और वे नष्ट हो जाते हैं। 
  • प्रवाल भितियों का निर्माण कोरल पॉलिप्स नामक जीवों के कैल्शियम कार्बोनेट से निर्मित अस्थि-पंजरों के अलावा, कार्बोनेट तलछट से भी होता है जो इन जीवों के ऊपर हज़ारों वर्षों से जमा हो रही है।
इनकी उपयोगिता क्या हैं?  
  • जैसा हम सभी जानते हैं कि प्रवाल भित्तियाँ विश्व का दूसरा सबसे समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र होता है। यह न केवल अनेक प्रकार के जीवों एवं वनस्पतियों का आश्रय स्थल होता है, बल्कि इनका इस्तेमाल औषधियों में भी होता है। 
  • बहुत-सी दर्दरोधी दवाओं के साथ-साथ इनका इस्तेमाल मधुमेह, बवासीर और मूत्र रोगों के उपचार में भी किया जाता है। 
  • कई अन्य उपयोगी पदार्थों, जैसे- छन्नक, फर्शी, पेंसिल, टाइल, श्रृंगार आदि में भी इनका प्रयोग किया जाता है। 
  • 13,48,000 वर्ग किलोमीटर में फैले ऑस्ट्रेलियाई ‘ग्रेट बैरियर रीफ’ पर तकरीबन 64 हज़ार लोगों की नौकरी निर्भर है। दुनिया भर से ग्रेट बैरियर रीफ को देखने आने वाले पर्यटकों की वज़ह से ऑस्ट्रेलिया को हर साल 6.4 अरब डॉलर (करीब 42 हज़ार करोड़ रुपए) की आय होती है।
समस्याएँ क्या हैं?
  • प्रवाल द्वीप जैव विविधता के दृष्टिकोण से काफी महत्त्वपूर्ण होते हैं। लेकिन वर्तमान में इन्हें जलवायु परिवर्तन, उष्णकटिबंधीय चक्रवात, स्टार फिश सहित अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इन्हीं चुनौतियों के विषय में यहाँ संक्षेप में चर्चा की गई है-
  • हम जानते हैं कि महासागरों में कार्बन डाइऑक्साइड के विलयन की बढ़ती मात्रा महासागरों की अम्लीयता में वृद्धि कर देती है जिससे प्रवालों की मृत्यु हो जाती है।  
  • प्रवाल खनन, अपरदन आदि को रोकने हेतु बनाई गई रोधिका और स्पीडबोट के द्वारा होने वाले गाद निक्षेपण से भी प्रवालों को नुक्सान पहुँचता है। 
  • अधिकांश एटॉल बाह्य जाति प्रवेश, परमाणु बम परीक्षण आदि मानवीय गतिविधियों से विरूपित हो गए हैं। 
  • औद्योगिक संकुलों से निष्कासित होने वाला जल इनके लिये संकट का कारक बन गया है। इसके अतिरिक्त तेल रिसाव, मत्स्यन, पर्यटन आदि से भी प्रवाल द्वीपों को नुक्सान पहुँचता है।
अंतर्राष्ट्रीय कोरल रीफ पहल
  • अंतर्राष्ट्रीय कोरल रीफ पहल (ICRI) राष्ट्रों और संगठनों के बीच एक अनौपचारिक साझेदारी है जो दुनिया भर में कोरल रीफ और उससे संबंधित पारिस्थितिक तंत्र को संरक्षित करने का प्रयास करती है। इसके निर्णय सदस्यों पर बाध्यकारी नहीं होते हैं।
  • इस पहल की स्थापना 1994 में आठ देशों ऑस्ट्रेलिया, फ्राँस, जापान, जमैका, फिलीपींस, स्वीडन, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका ने मिलकर की थी।
  • ICRI में अब भारत सहित 60 से अधिक सदस्य हैं।
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