लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत का प्रथम थ्री डी प्रत्यारोपण : चिकित्सकीय क्रांति की शुरुआत

  • 27 Feb 2017
  • 5 min read

सन्दर्भ 

भारत में चिकित्सकीय क्रांति की शुरुआत हुई है | फरवरी 2017 के आरम्भ में, मेदांता (Medanta: The Medicity in Gurugram) के  चिकिसकों के एक समूह ने सफलतापूर्वक एक महिला की टूटती रीढ़ की हड्डी की शल्यचिकित्सा की तथा प्रथम बार एक थ्री डी टाइटेनियम प्रत्यारोपण को इसमें प्रविष्ट कराया जिससे उसके जीवन को एक नया आधार मिला| थ्री डी प्रिंटिंग प्रौद्योगिकी मानव जीवन की रक्षा के लिए शारीरिक अंगों को पुनःनिर्माण के द्वार खोल चुकी है|

प्रमुख बिंदु 

  • पिछले माह एक 30 वर्षीय रोगी (एक विद्यालय की शिक्षिका जो एक नर्तकी और गायिका भी थी) के लिए चलना और बोलना भी एक अत्यंत कठिन कार्य था| तपेदिक बग(tuberculosis bug) ने धीरे-धीरे महिला की गर्दन के दूसरे और तीसरे जोड़ (second and third vertebra) को प्रभावित कर दिया था जिससे उसकी गर्दन टूट रही थी | 
  • इसके फलस्वरूप जैसे ही मेरुदंड में दबाव पड़ना शुरू हुआ महिला ने अपने सभी अंगों की संवेदना के खोने का अनुभव किया |
  • 10 स्वास्थ्य विशेषज्ञों के एक समूह ने महिला की गर्दन के दो प्रभावित जोड़ों को विस्थापित करने के लिये कस्टम मेड, अल्ट्रा मॉडर्न थ्री डी प्रिंटेड टाइटेनियम प्रत्यारोपण का प्रसार करने का निर्णय लिया |
  • दरअसल चिकित्सकों के पास दूसरा विकल्प यह था कि रोगी के पैर की हड्डी का एक टुकड़ा लिया जाए परन्तु उन्हें यह विकल्प उचित प्रतीत नही हुआ क्योंकि चिकित्सकीय समूह के अनुसार, इससे महिला को इस शल्यचिकित्सा के पश्चात भी छह माह तक बैडरेस्ट में रहना पड़ता |
  • ऐसी जटिल चिकित्सकीय समस्या का सामना करते हुए भी महिला ने साहस दिखाया और भारत में इस प्रकार की प्रथम शल्य चिकित्सा के सम्पूर्ण होने के पश्चात यह महिला अब सामान्य जीवन जीने की आशा कर सकती है |
  • 3 फरवरी को 10 घंटे तक चली शल्यचिकित्सा के उपरांत वह रोगी अब ठीक है परन्तु इससे पूर्व उसके समक्ष कई समस्याएँ थी जैसे  -  वह चलने में समर्थ नही थी; दर्द के कारण रातभर सो नही सकती थी तथा वह अन्य कोई कार्य भी नही कर सकती थी |
  • शल्यचिकित्सा के चार दिन बाद वह महिला पुनः चलने लगी और चिकित्सकों के अनुसार, वह कुछ महीनों बाद वह ठीक तरह से चलने लगेगी |
  • हालाँकि वह महिला अभी भी तपेदिक के संक्रमण से जूझ रही है जिसके कारण वह कमजोर हो चुकी है  किन्तु अपनी जीवटता के चलते अगले एक वर्ष में वह अपने नृत्य और गायन को पुनः प्रारंभ करने की आशा रखती है |

महत्त्व

  • विदित हो कि इस शल्य चिकित्सा में रोगी की क्षतिग्रस्त रीढ़ में थ्री डी प्रिंटेड जोड़ से युक्त शारीरिक भाग का निर्माण किया गया था |
  • ध्यातव्य है कि भारत में यह प्रत्यारोपण प्रथम बार किया गया था तथा विश्व में सम्भवतः यह तीसरा प्रत्यारोपण था | ऐसी ही एक शल्य चिकित्सा का प्रयास विगत वर्ष ऑस्ट्रेलिया और वर्ष 2015 में चीन में भी किया गया था |
  • यद्यपि इस चिकित्सकीय सफलता के गुणों के विषय में अब तक सभी आश्वस्त नहीं हैं|
  • एम्स के एक चिकित्सक डॉ.रवि मित्तल(हड्डी विशेषज्ञ)ने कहा था कि सामान्यतः वे कशेरुकी स्तर की समस्याओं के लिए कस्टम मेड प्रत्यारोपण का उपयोग नहीं करते हैं| 
  • इसके लिए नियमित रूप से मुस्तैद प्रत्यारोपण और हड्डी ग्राफ्ट ही काफी हैं| 
  • कस्टम मेड प्रत्यारोपण की आवश्यकता विशेष परिस्थितियों में ही होती है| 
  • ऐसा प्रतीत होता है कि इस मामले में एक सामान्य परिस्थिति असामान्य बन गयी थी अतः कस्टम मेड प्रत्यारोपण का उपयोग किया गया था |
  • डॉ.राहुल जैन, जो मेदांता में  कार्यरत हैं और इस थ्री डी प्रत्यारोपण के प्रमुख है, के अनुसार- रीढ़ की जटिल शारीरिक संरचना के कारण इस प्रत्यारोपण का निर्माण करना काफी मुश्किल था|
  • चूँकि ये टाइटेनियम प्रत्यारोपण, जैव संगत (bio-compatible) होते हैं अतः पूर्णतः सुरक्षित हैं तथा अब तक यह भी देखा गया है  कि यह मेरुदंड को कोई नुकसान नहीं पहुँचाते है |
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2