निर्वाचन आयोग की लंबित सिफारिशें | 31 May 2019
चर्चा में क्यों?
हाल ही में निर्वाचन आयोग ने 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान विशिष्ट क्षेत्रों में सुधार करने के उद्देश्य से नौ कार्यकारी समूह गठित किये, इन समूहों द्वारा कुल 337 सिफारिशें प्रस्तुत की गई, जिनमें से अभी तक 300 को लागू किया जा चुका है।
उम्मीदवार के संबंध में
- निर्वाचन आयोग के कार्यकारी समूह ने यह सुझाव दिया है कि झूठे शपथ-पत्र दाखिल करने वाले उम्मीदवारों की सज़ा को छह महीने से बढ़ाकर दो वर्ष कर दिया जाए और यदि उम्मीदवारों को भ्रष्टाचार, जघन्य अपराधों में दोषी पाया जाता है तो उसे स्थायी रूप से अयोग्य घोषित कर दिया जाना चाहिये।
- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (Representation of the People Act, 1951) की धारा 8 के अंतर्गत यदि कोई व्यक्ति किसी अपराध के अंतर्गत दोषी पाया जाता है और उसे कारावास हो जाता है तो वह सज़ा सुनाने की तिथि से अयोग्य घोषित माना जाएगा एवं उसकी सज़ा पूर्ण होने के पश्चात् भी वह 6 वर्ष तक चुनाव नहीं लड़ सकता है।
- सूचीबद्ध अपराधों में निषिद्ध वस्तुओं का आयात या निर्यात, खाद्य दवाओं में मिलावट, अस्पृश्यता का अभ्यास, आतंकवादी कृत्य, भ्रष्टाचार आदि शामिल हैं।
आदर्श आचार संहिता में संशोधन
- भारतीय आदर्श आचार संहिता का निर्माण सभी राजनीतिक दलों की आम सहमति का परिणाम है। निर्वाचन आयोग के एक समूह ने पार्टियों की घोषणा-पत्रों में निरर्थक वादों को नियंत्रित करने हेतु आयोग को नोटिस जारी करने की शक्ति का समर्थन किया।
- इसके अतिरिक्त निर्वाचन संबंधी निर्णयों के निपटारे हेतु न्यायालयों की स्थापना का समर्थन किया जो राजनीतिक लाभ के उद्देश्य से सरकारी पदनामों के दुरूपयोग को भी नियंत्रित करेंगे।
- कुछ लंबित सिफारिशों में मतदान के दौरान प्रयोग होने वाली स्याही (जो एक सींक की सहायता से प्रयोग की जाती है) के स्थान पर अमिट मार्कर पेन का इस्तेमाल किये जाने का समर्थन किया है। इस पेन की स्याही का परीक्षण विभिन्न उच्चस्तरीय प्रयोगशालाओं द्वारा किया जाएगा।
- निर्वाचन प्रक्रिया अवधि को कम करने के संदर्भ में भी एक सुझाव दिया गया है जिसमें कहा गया है कि राज्य में क्षेत्रीय स्तर पर जनसंख्या संबंधी आँकड़ों और निर्वाचन क्षेत्र में मौसम की स्थिति, विद्यार्थियों के परीक्षा कार्यक्रम और त्योहारों जैसे कारकों की पहचान कर, प्रत्येक राज्य में मतदान को बढ़ावा देते हुए और अधिक सुविधाजनक बनाया जा सकता है।
राजनीतिक दलों के लिये दिशा-निर्देश
- निर्वाचन आयोग के कार्यकारी समूह ने राजनीतिक दलों के पंजीकरण के संबंध में भी सुझाव दिये, जिसके अनुसार किसी दल को निर्वाचन आयोग द्वारा पंजीकृत होने के लिये आवश्यक सदस्यों की संख्या को 100 से बढ़ाकर 1,000 किया जाना चाहिये।
- यदि कोई राजनीतिक दल चुनाव में अपना एक भी प्रत्याशी नहीं उतारता है तो उस दल के पंजीकरण को निरस्त कर दिया जाना चाहिये। इसके साथ ही चुनाव के दौरान होने वाली फंडिंग को नियंत्रित करने के लिये एक कानूनी प्रावधान के तहत फास्ट ट्रैक कोर्ट्स (Fast Track Courts) की स्थापना की जानी चाहिये, जो प्रत्याशियों के चुनावी व्ययों एवं अन्य मामलों का निस्तारण करेगा।
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (Representation of the People Act, 1951)
- चुनावों का वास्तविक आयोजन कराने संबंधी सभी मामले जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के प्रावधानों के तहत आते हैं।
- इस कानून की धारा 169 के तहत निर्वाचन आयोग के परामर्श से केंद्र सरकार ने निर्वाचक पंजीकरण नियम, 1961 बनाए गए हैं।
- इस कानून और इसमें निहित नियमों में सभी चरणों में चुनाव आयोजित कराने, चुनाव कराने की अधिसूचना के मुद्दे, नामांकन पत्र दाखिल करने, नामांकन पत्रों की जाँच, उम्मीदवार द्वारा नाम वापस लेना, चुनाव कराना, मतगणना और घोषित परिणाम के आधार पर सदनों के गठन के लिये विस्तृत प्रावधान किये गए हैं।
क्या है आदर्श आचार संहिता?
- मुक्त और निष्पक्ष चुनाव किसी भी लोकतंत्र की बुनियाद होती है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में चुनावों को एक उत्सव जैसा माना जाता है और सभी सियासी दल तथा मतदाता मिलकर इस उत्सव में हिस्सा लेते हैं। चुनावों की इस आपाधापी में मैदान में उतरे उम्मीदवार अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिये सभी तरह के हथकंडे आज़माते हैं।
- सभी उम्मीदवार और सभी राजनीतिक दल मतदाताओं के बीच जाते हैं। ऐसे में अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को रखने के लिये सभी को बराबर का मौका देना एक बड़ी चुनौती बन जाता है, लेकिन आदर्श आचार संहिता इस चुनौती को कुछ हद तक कम करती है।
- चुनाव की तारीख की घोषणा होते ही आचार संहिता लागू हो जाती है और चुनाव का परिणाम आने तक जारी रहती है। दरअसल, ये वे दिशा-निर्देश हैं, जिन्हें सभी राजनीतिक पार्टियों को मानना होता है। इनका उद्देश्य चुनाव प्रचार अभियान को निष्पक्ष एवं साफ-सुथरा बनाना और सत्ताधारी दलों को गलत फायदा उठाने से रोकना है।
सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग रोकना भी आदर्श आचार संहिता के उद्देश्यों में शामिल है।
- आदर्श आचार संहिता को राजनीतिक दलों और चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के लिये आचरण एवं व्यवहार का पैरामीटर माना जाता है।
- दिलचस्प बात यह है कि आदर्श आचार संहिता किसी कानून के तहत नहीं बनी है, बल्कि यह सभी राजनीतिक दलों की सहमति से बनी और विकसित हुई है।
- वर्ष 1962 के लोकसभा चुनाव में पहली बार चुनाव आयोग ने इस संहिता को सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों में वितरित किया।
- इसके बाद वर्ष 1967 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में पहली बार राज्य सरकारों से आग्रह किया गया कि वे राजनीतिक दलों से इसका अनुपालन करने को कहें और कमोबेश ऐसा हुआ भी।
- चुनाव आयोग समय-समय पर आदर्श आचार संहिता को लेकर राजनीतिक दलों से चर्चा करता रहता है, ताकि इसमें सुधार की प्रक्रिया बराबर चलती रहे।