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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

2017 जलवायु परिवर्तन का एक और उदाहरण

  • 19 Jan 2018
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र (United Nations - UN) द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि वर्ष 2016 के बाद वर्ष 2017 दूसरा या तीसरा सबसे गर्म वर्ष रहा है। यह प्रशांत महासागर में एल-नीनो के प्रभाव के कारण उत्पन्न होने वाली ऊष्मा के एक अतिरिक्त प्रवाह के बगैर ही सबसे गर्म वर्ष रहा।

  • 2017 में औसत सतही तापमान (Average surface temperatures) 1.1 डिग्री सेल्सियस (2.0 फारेनहाइट) पूर्व-औद्योगिक समय से ऊपर रहा। 
  • यह पेरिस जलवायु समझौते के तहत निर्धारित सीमा 1.5 डिग्री सेल्सियस (2.7 फारेनहाइट) के बेहद करीब रहा है, जो कि एक बेहद चिन्तक विषय है।
  • उल्लेखनीय है कि 19वीं शताब्दी के बाद से जलवायु परिवर्तन के संबंध में रिकॉर्ड दर्ज किये जाने के बाद से अभी तक के 18 साल सबसे अधिक गर्म वर्षों में से 17 वर्ष 2000 के बाद दर्ज किये गए हैं।

पिछले वर्ष एल-नीनो की स्थिति क्या रही? 

  • संयुक्त राष्ट्र के विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization -WMO) द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार, वर्ष 2016 के बाद वर्ष 2015 अभी तक इस सदी का दूसरा या तीसरा सबसे उष्ण वर्ष रहा है, जबकि वर्ष 2017 "एल-नीनो के बिना सबसे गर्म वर्ष" रहा है।
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2016 और 2015 दोनों वर्षों में तापमान बढने का कारण एल-नीनो का प्रभाव रहा है।

एल-नीनो 

  • उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में समुद्री तापमान और वायुमंडलीय परिस्थितियों में आए बदलाव को एल-नीनो कहा जाता हैl 
  • यह पूरे विश्व के मौसम को अस्त-व्यस्त कर देती हैl  भारतीय मानसून भी इसके प्रभाव से अछूता नहीं है।
  • यह अक्सर 2 से 7 साल के अंतराल में सक्रिय होती है और जिस साल एल-नीनो की सक्रियता बढ़ती है, उसका असर दक्षिण-पश्चिम मानसून पर निश्चित तौर पर पड़ता हैl 
  • इसके प्रभाव से जब समुद्र का पानी असामान्य रूप से गर्म होता है तो इसके असर से मानसूनी हवाओं के बनने की प्रक्रिया मंद पड़ जाती है।
  • इन हवाओं की दिशा में बदलाव आ जाते हैं जिससे मानसूनी बादलों को देश के जिन हिस्सों में जिस वक्त पहुँचना चाहिये, उस वक्त वे वहाँ पहुँच नहीं पाते हैं।जहाँ एल-नीनो प्रशांत महासागर के तापक्रम को बढ़ाकर निम्न दाब केंद्र का निर्माण करती है, वहीं 'ला-नीनो' तापमान को घटाकर उच्च दाब केंद्र का निर्माण करती है, जो मानसून की तीव्रता को बढ़ाती हैl यानी एल-नीनो के विपरीत ला-नीनो हैl

ला-नीना

  • ला–नीना (La Nina) स्वभाव में अल–नीनो के ठीक विपरीत है क्योंकि इसके आने पर विषुवतीय प्रशांत महासागर के पूर्वी तथा मध्य भाग में समुद्री सतह के औसत तापमान में असामान्य रूप से ठंडी स्थिति पाई जाती है। 
  • कई मौसम विज्ञानी इसे अल वेइजो अथवा कोल्ड इवेंट भी कहते हैं। 
  • ला-नीना एक प्रतिसागरीय धारा है। इसकी शुरुआत पश्चिमी प्रशांत महासागर में उस समय होती है, जब पूर्वी प्रशांत महासागर में अल-नीनो का प्रभाव समाप्त हो जाता है। 
  • पश्चिमी प्रशांत महासागर में अल-नीनो द्वारा उत्पन्न सूखे की स्थिति को ला-नीना बदल देती है, तथा यह आर्द्र जलवायु को जन्म देती है।
  • ला-नीना की शुरुआत के साथ पश्चिमी प्रशांत महासागर के उष्णकटिबंधीय भाग में तापमान में वृद्धि होने के कारण वाष्पीकरण अधिक होने से इंडोनेशिया तथा समीपवर्ती भागों में सामान्य से अधिक वर्षा होती है। ला-नीना परिघटना कई बार विश्व में बाढ़ का सामान्य कारण बन जाती है।

"विश्व मौसम विज्ञान संगठन" 

  • विश्व मौसम विज्ञान संगठन की स्थापना वर्ष 1950 में की गई थी। वर्ष 1951 में इसे संयुक्त राष्ट्र एजेंसी के एक भाग के रूप में मान्यता प्राप्त हुई।
  • इसका मुख्यालय जेनेवा (स्विट्ज़रलैंड) में है।
  • WMO (World Meteorological Organization- WMO) के छः "क्षेत्रीय विशेषीकृत मौसमविज्ञान केंद्र" (Regional Specialized Meteorological Centre) निम्नलिखित हैं:- 
    ► दक्षिण-पश्चिम प्रशांत महासागर: आर.एस.एम.सी. नाडी- उष्णकटिबंधीय चक्रवात केंद्र- फिजी मौसम विज्ञान सेवा (नाडी, फिजी) । दक्षिण-पश्चिम हिंद महासागर: आर.एस.एम.सी. ला रीयूनियन- उष्णकटिबंधीय चक्रवात केंद्र/ मेटेयो फ्राँस (रीयूनियन द्वीप, फ्राँसीसी प्रवासी विभाग) ।
    ► बंगाल की खाड़ी और अरब सागर: आर.एस.एम.सी. उष्णकटिबंधीय चक्रवात/ भारतीय मौसम विभाग (नई दिल्ली, भारत) ।
    ► पश्चिमी-उत्तर प्रशांत महासागर और दक्षिणी चीन सागर- आर.एस.एम.सी. जापान मौसम विभाग (टोक्यो, जापान) ।
    ► मध्य उत्तर प्रशांत महासागर- आर.एस.एम.सी./ होनोलूलू केंद्रीय प्रशांत हरिकेन केंद्र (होनोलूलू, हवाई, संयुक्त राज्य अमेरिका) ।
    ► पूर्वोत्तर प्रशांत महासागर, मैक्सिको की खाड़ी, कैरेबियन सागर और उत्तर अटलांटिक महासागर- आर.एस.एम.सी. मियामी/ राष्ट्रीय हरिकेन केंद्र, मियामी, संयुक्त राज्य अमेरिका।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग

  • IMD भारत सरकार के "पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय" (Ministry of Earth Sciences) के अधीन कार्यरत एक विभाग है।
  • IMD एक प्रमुख एजेंसी है जो मौसम संबंधी अवलोकन एवं मौसम की भविष्यवाणी के साथ-साथ भूकम्प विज्ञान के लिये भी उत्तरदायी है। 
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