नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


आंतरिक सुरक्षा

गढ़चिरौली हमले से पहले जनता दरबार

  • 27 May 2019
  • 10 min read

चर्चा में क्यों?

महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में हुए हालिया नक्सली हमले की जाँच कर रहे अधिकारियों के अनुसार, हमला करने से पहले गढ़चिरौली के ही दादापुर में नक्सलियों ने जनता दरबार लगाया था जिसमें लगभग 200 माओवादियों ने भाग लिया था।

पृष्ठभूमि

  • जनता दरबार के बाद नवनिर्मित राजमार्ग पर लगाए गए इम्प्रोवाज़्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (Improvised Explosive Devices- IED) द्वारा वाहन को उड़ा दिया गया जिससे 16 लोगों की मृत्यु हो गई।
  • गौरतलब है कि क्विक रिस्पांस टीम (Quick Response Team- QRT) के 15 कर्मियों की एक टीम दादापुर में एक पुलिस दल की सहायता के लिये जा रही थी। IED द्वारा किये गए हमले की इस घटना में सभी 15 जवान और वाहन का सिविलियन ड्राइवर भी मारा गया।
  • जाँच कर रहे अधिकारियों के अनुसार, जनता दरबार में शामिल ज़्यादातर माओवादी 20 से 25 आयु वर्ग के थे और उनमें से अधिकांश महिलाएँ थीं।

चिंतनीय बिंदु

  • यह कोई संयोग नहीं है कि नक्सलियों ने इस हिंसात्मक गतिविधि का उपयोग महाराष्ट्र स्थापना दिवस के अवसर पर किया।
  • यदि पूरी घटना का बारीकी से निरीक्षण करें तो यह पता चलता है कि नक्सली सुरक्षा सुनिश्चित करने वालों से कई कदम आगे हैं जो कि चिंता का विषय है।
  • हालाँकि 2014 के लोकसभा चुनाव की तुलना में गढ़चिरौली और उसके पड़ोस के ही चंद्रपुर ज़िले में मतदान प्रतिशत क्रमशः 70.04% से 71.98% तथा 63.29% से 64.65% तक बढ़ गया है। इसका सीधा तात्पर्य यह है कि उस क्षेत्र की जनता का संसदीय लोकतंत्र में धीमे ही सही किंतु भरोसा बढ़ रहा है।
  • नक्सल बहुल ज़िलों में मतदान केंद्र तक पहुँचने में मतदाताओं को अभी भी लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। इस क्षेत्र में तैनात सुरक्षा बल भी उनमें आत्मविश्वास की भावना नहीं जगा पाए हैं।
  • इस हमले में हताहत पुलिसकर्मियों में से अधिकांश स्थानीय थे।
  • बाहरी वातावरण की मौजूदा शत्रुतापूर्ण परिस्थितियों में भी भारत आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियों को हल्के में नहीं ले सकता।

नक्सलवाद की उत्पत्ति

  • भारत में नक्सली हिंसा की शुरुआत 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी से शुरू हुई। इसके नेतृत्वकर्त्ता चारू मजूमदार तथा कानू सान्याल को माना जाता है।
  • 2004 में सीपीआई (माओवादी) का गठन सीपीआई (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) पीपुल्स वॉर ग्रुप (पीडब्ल्यूजी) तथा माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर के विलय के साथ हुआ था।
  • नक्सलवाद का सीधा संबंध वामपंथ से है। नक्सलवाद के समर्थक चीनी साम्यवादी नेता माओ-त्से-तुंग के विचारों को आदर्श मानते हैं।
  • यह आंदोलन चीन के कम्युनिस्ट नेता माओत्से तुंग की नीतियों का अनुगामी था इसीलिये इसे माओवाद भी कहा जाता है। आंदोलनकारियों का मानना था कि भारतीय मज़दूरों तथा किसानों की दुर्दशा के लिये सरकारी नीतियाँ ज़िम्मेदार हैं।
  • धीरे-धीरे मध्यवर्ती भारत के कई हिस्सों में नक्सली गुटों का प्रभाव तेज़ी से बढ़ने लगा। इनमें झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य शामिल हैं।
  • सीपीआई (माओवादी) पार्टी तथा इससे जुड़े सभी संगठनों को गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत आतंकवादी संगठनों के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।

सामाजिक-आर्थिक कारणों से उपजा था नक्सलवाद

  • केंद्र और राज्य सरकारें माओवादी हिंसा को अधिकांशतः कानून-व्यवस्था की समस्या मानती रही हैं, लेकिन इसके मूल में गंभीर सामाजिक-आर्थिक कारण भी रहे हैं।
  • नक्सलियों का यह कहना है कि वे उन आदिवासियों और गरीबों के लिये लड़ रहे हैं, जिनकी सरकार ने दशकों से अनदेखी की है और वे ज़मीन का अधिकार तथा संसाधनों के वितरण के संघर्ष में स्थानीय सरोकारों का प्रतिनिधित्व करते हैं। 
  • माओवाद प्रभावित अधिकतर इलाके आदिवासी बहुल हैं और यहाँ जीवनयापन की बुनियादी सुविधाएँ तक उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन इन इलाकों की प्राकृतिक संपदा के दोहन में सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र की कंपनियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी है।
  • यहाँ न सड़कें हैं, न पीने के लिये पानी की व्यवस्था, न शिक्षा एवं स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएँ और न रोज़गार के अवसर।
  • नक्सलवाद के उभार के आर्थिक कारण भी रहे  हैं। नक्सली, सरकार के विकास कार्यों को चलने ही नहीं देते और सरकारी तंत्र उनसे आतंकित रहता है।  
  • वे आदिवासी क्षेत्रों का विकास नहीं होने, उनके अधिकार न मिलने पर हथियार उठा लेते हैं। इस प्रकार वे लोगों से वसूली करते हैं एवं समांतर अदालतें चलाते हैं।  
  • प्रशासन तक पहुँच न हो पाने के कारण स्थानीय लोग नक्सलियों  के अत्याचार का शिकार होते हैं। अशिक्षा और विकास कार्यों की उपेक्षा ने स्थानीय लोगों एवं नक्सलियों के बीच गठबंधन को मज़बूत बनाया।
  • जानकार मानते हैं कि नक्सलवादियों की सफलता की वज़ह उन्हें स्थानीय स्तर पर मिलने वाला समर्थन रहा है, जिसमें अब धीरे-धीरे कमी आ रही है।

नक्सलवाद का पूरी तरह खत्म नहीं होने का कारण

देश में फैली सामाजिक और आर्थिक विषमता का नतीजा है यह आंदोलन। बात चाहे छत्तीसगढ़ के बस्तर और सुकमा की करें या ओडिशा के मलकानगिरि की, भुखमरी और कुपोषण एक सामान्य बात है। गरीबी और बेरोज़गारी के कारण निचले स्तर की जीवन शैली और स्वास्थ्य सुविधा के अभाव में गंभीर बीमारियों से जूझते इन क्षेत्रों में असामयिक मौत होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। लेकिन, वहीं देश का एक तबका अच्छी सुख-सुविधाओं से लैस है। अमूमन यह कहा जाता है कि भारत ब्रिटिश राज से अरबपति राज तक का सफर तय कर रहा है। वहीं विश्व असमानता रिपोर्ट के अनुसार, भारत की राष्ट्रीय आय का 22 फीसदी भाग सिर्फ एक फीसद लोगों के हाथों में पहुँचता है और यह असमानता लगातार तेज़ी से बढ़ रही है।

  • अंतर्राष्ट्रीय अधिकार समूह Oxfam के मुताबिक, भारत के एक फीसदी लोगों ने देश के 73 फीसदी धन पर कब्ज़ा किया हुआ है। यकीनन इस तरह की असमानताओं का कारण हमेशा असंतोष के बीज होते हैं, जिनमें विद्रोह करने की क्षमता होती है।
  • यह भी एक सच्चाई है कि ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के अनुसार, भ्रष्टाचार सूचकांक में पिछले तीन सालों में हम 5 पायदान फिसल गए हैं यानी कि देश में भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी हुई हैं।
  • समझना होगा कि भ्रष्टाचार कई समस्याओं की जड़ है जो असंतोष का कारण बनता है। इसी साल मार्च महीने में हमने नासिक से मुंबई तक लंबी किसान यात्रा भी देखी। मंदसौर में पुलिस की गोली से पाँच किसानों की मौत की खबर ने भी चिंतित किया। जाहिर है, कृषि में असंतोष गंभीर चिंता का कारण बन रहा है।
  • ये सभी वे पहलू हैं जो गरीबों और वंचित समूहों में असंतोष बढ़ा रहे हैं और वे गरीबी तथा भुखमरी से मुक्ति के नारे बुलंद कर रहे हैं। इन्हीं असंतोषों की वजह से ही नक्सलवादी सोच को बढ़ावा मिल रहा है।
  • दूसरी तरफ, सरकार के कई प्रयासों के बावजूद अभी तक इस समस्या से पूरी तरह निजात नहीं मिलने की बड़ी वज़ह यह है कि हमारी सरकारें शायद इस समस्या के सभी संभावित पहलुओं पर विचार नहीं कर रही। हालाँकि सरकार की पहलों की वज़ह से कुछ क्षेत्रों से नक्सली हिंसा का खात्मा ज़रूर हो गया है। लेकिन अभी भी लंबा सफर तय करना बाकी है।

स्रोत- द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow