आंध्र सरकार में ST को 100% कोटा | 19 Feb 2020
प्रीलिम्स के लिये:आरक्षण संबंधी संवैधानिक प्रावधान मेन्स के लिये:आरक्षण से जुड़े मुद्दों का क्रमवार अध्ययन |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा 1988 में अनुसूचित क्षेत्रों (Scheduled Areas) में शिक्षक पदों के लिये अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes-ST) हेतु 100% आरक्षण दिये जाने के फैसले पर सवाल उठाया।
मुख्य बिंदु:
- पाँच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ का गठन आंध्र प्रदेश राज्य के तत्कालीन राज्यपाल द्वारा 1988 में जारी की गई अधिसूचना को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई करने के लिये किया गया था।
क्या है संवैधानिक पीठ?
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 145 (3) के अनुसार, संविधान की व्याख्या के रूप में यदि विधि का कोई सारवान प्रश्न निहित हो तो उसका विनिश्चय करने अथवा अनुच्छेद 143 के अधीन मामलों की सुनवाई के प्रयोजन के लिये संवैधानिक पीठ का गठन किया जाएगा जिसमें कम-से-कम पाँच न्यायाधीश होंगे।
- हालाँकि इसमें पाँच से अधिक न्यायाधीश भी हो सकते हैं जैसे- केशवानंद भारती केस में गठित संवैधानिक पीठ में 13 न्यायाधीश थे।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पूछे गए प्रश्न:
- सर्वोच्च न्यायालय ने सवाल पूछा है कि ऐसी आरक्षण प्रणाली अपनाने पर अनुसूचित जाति (Scheduled Castes- SCs) और अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Classes- OBCs) क्या करेंगे? ये वर्ग समाज में काफी पिछड़े हुए हैं और यह व्यवस्था इन समुदायों को आरक्षण के लाभ से वंचित करती है।
- पीठ ने यह भी जानने की कोशिश की है कि क्या यह निर्णय उपलब्ध आँकड़ों के आधार पर लिया गया था या इसका आधार राजनीतिक विचारधारा को समर्थन प्रदान करना था?
- ‘अधिसूचना’ (Notification) जारी करने का आधार यह था कि STs ही उस क्षेत्र में एकमात्र वंचित समूह हैं, जबकि क्या इस बात को प्रमाणित करने वाला कोई डेटा उपलब्ध है कि कोई अन्य समूह उस क्षेत्र में वंचित नहीं है?
- पीठ ने यह भी जानना चाहा कि दो दशक से अधिक पुराने इस "प्रयोग" से क्या परिणाम प्राप्त हुए हैं?
- पीठ ने ‘संविधान की 5वीं अनुसूची’ के तहत राज्यपाल की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए हैं।
आरक्षण प्रणाली के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय की व्याख्या :
- इस तरह के भेदकारी प्रावधानों को दो दशकों से सहन किया जा रहा है यदि अभी भी इसकी अनुमति दी गई तो इस समस्या का कोई अंत नहीं होगा और अन्य राज्य भी ऐसे प्रावधान ला सकते हैं।
- यह प्रणाली योग्य उम्मीदवारों के लिये भी दरवाज़े बंद कर देती है, यहाँ तक कि यह उनको आवेदन करने की भी अनुमति नहीं देती है।
- राज्यपाल का निर्णय कानून से ऊपर नहीं हो सकता, अत: असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर आरक्षण की सीमा 50% से अधिक नहीं होनी चाहिये। (इंदिरा साहनी वाद का निर्णय)
- जो आरक्षण दिया गया था वह व्यक्तिपरक (Subjective) था परंतु ऐसा करने के लिये पर्याप्त डेटा होना आवश्यक है।
- अब हम एक ऐसी अवस्था में है कि संविधान को उसके वास्तविक अर्थों में संचालित करना बहुत कठिन है यहाँ तक कि संविधान निर्माताओं ने भी ऐसी स्थिति की परिकल्पना नहीं की थी।
- पीठ ने कहा कि दिये गए इस आरक्षण के साथ यह समस्या रही कि आरक्षण का लाभ उन लोगों को नहीं मिला जो वास्तव में इसके हक़दार थे।