नेशनल इंटरलिंकिंग ऑफ रिवर अथॉरिटी | 15 Nov 2021
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना, नेशनल इंटरलिंकिंग ऑफ रिवर अथॉरिटी मेन्स के लिये:राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार नेशनल इंटरलिंकिंग ऑफ रिवर अथॉरिटी (NIRA) के गठन पर विचार कर रही है।
- NIRA को देश में नदियों को जोड़ने से संबंधित परियोजनाओं की योजना, अन्वेषण, वित्तपोषण और कार्यान्वयन के लिये एक स्वतंत्र स्वायत्त निकाय के रूप में जाना जाएगाI
प्रमुख बिंदु
- NIRA नदियों को जोड़ने वाली सभी परियोजनाओं के लिये एक अम्ब्रेला निकाय के रूप में कार्य करेगा और इसकी अध्यक्षता भारत सरकार के सचिव स्तर के अधिकारी द्वारा की जाएगी।
- यह मौजूदा राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA) का स्थान लेगा।
- यह पड़ोसी देशों और संबंधित राज्यों एवं विभागों के साथ समन्वय करेगा तथा नदियों को जोड़ने वाली परियोजनाओं और उनके विधिक पहलुओं के तहत पर्यावरण, वन्यजीव एवं वन मंज़ूरी से संबंधित मुद्दों पर भी अधिकार रखेगा।
- NIRA के पास धन सृजित करने और उधार ली गई धनराशि या जमा पर प्राप्त धन या ब्याज पर दिये गए ऋण की रिकवरी के रूप में कार्य करने की शक्ति होगी।
- इसके पास व्यक्तिगत/एकल लिंक परियोजनाओं के लिये एक विशेष प्रयोजन वाहन (Special Purpose Vehicle- SPV) स्थापित करने की शक्ति भी होगी।
नदी जोड़ो परियोजना:
- उत्पत्ति: यह विचार पहली बार ब्रिटिश राज के दौरान रखा गया था, जब एक ब्रिटिश सिंचाई इंजीनियर सर आर्थर थॉमस कॉटन (Sir Arthur Thomas Cotton) ने नौवहन उद्देश्यों के लिये गंगा और कावेरी को जोड़ने का सुझाव दिया था।
- उद्देश्य: नदी जोड़ो परियोजना (ILR) का उद्देश्य देश की ‘जल अधिशेष' वाली नदी घाटियों (जहाँ बाढ़ की स्थिति रहती है) से जल की ‘कमी’ वाली नदी घाटियों (जहाँ जल के अभाव या सूखे की स्थिति रहती है) को जोड़ना है ताकि अधिशेष क्षेत्रों से अतिरिक्त जल को कम क्षेत्रों में स्थानांतरित किया जा सके।
- इन परियोजनाओं की आवश्यकता:
- क्षेत्रीय असंतुलन को कम करना: भारत मानसून की वर्षा पर निर्भर है जो अनियमित होने के साथ-साथ क्षेत्रीय स्तर पर असंतुलित भी है। नदियों को आपस में जोड़ने से अतिरिक्त वर्षा और समुद्र में नदी के जल प्रवाह की मात्रा में कमी आएगी।
- कृषि की सिंचाई: इंटरलिंकिंग द्वारा अतिरिक्त जल को न्यून वर्षा वाले क्षेत्रों में स्थानांतरित करके न्यून वर्षा आधारित भारतीय कृषि क्षेत्रों में सिंचाई संबंधित समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
- जल संकट को कम करना: यह सूखे और बाढ़ के प्रभाव को कुछ हद तक कम करने में मदद कर सकता है।
- अन्य लाभ: इससे जल-विद्युत उत्पादन, वर्ष भर नौवहन, रोज़गार सृजन जैसे लाभों के साथ ही सूखे जंगल और भूमि क्षेत्रों में पारिस्थितिक गिरावट की भरपाई की जा सकेगी।
- संबंधित चुनौतियाँ:
- पर्यावरणीय लागत: परियोजना से नदियों की प्राकृतिक पारिस्थितिकी में बाधा उत्पन्न होने का खतरा है।
- प्रस्तावित बाँध हिमालय के जंगलों को खतरे में डाल सकते हैं और मानसून प्रणाली के कामकाज को प्रभावित कर सकते हैं।
- जलवायु परिवर्तन: इंटरलिंकिंग सिस्टम में यह माना जाता है कि डोनर बेसिन में अधिशेष जल प्राप्त होता है जिसे प्राप्तकर्ता बेसिन को उपलब्ध कराया जा सकता है।
- यदि जलवायु परिवर्तन के कारण किसी भी प्रणाली की मूल स्थिति में व्यवधान उत्पन्न होता है तो इसकी अवधारणा निरर्थक हो जाती है।
- आर्थिक लागत: अनुमान है कि नदियों को आपस में जोड़ने से सरकार पर व्यापक वित्तीय बोझ पड़ेगा।
- सामाजिक-आर्थिक प्रभाव: यह अनुमान लगाया गया है कि लगभग 15000 किमी. तक फैले नहरों के नेटवर्क से लगभग 5.5 मिलियन लोग विस्थापित होंगे, इनमें ज़्यादातर आदिवासी और किसान वर्ग अधिक प्रभावित होंगे।
- पर्यावरणीय लागत: परियोजना से नदियों की प्राकृतिक पारिस्थितिकी में बाधा उत्पन्न होने का खतरा है।
नदियों को आपस में जोड़ने हेतु राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (NPP)
आगे की राह
- नदियों को आपस में जोड़ने के फायदे और नुकसान दोनों हैं, लेकिन आर्थिक, राजनीतिक और पर्यावरणीय प्रभावों को देखते हुए इस परियोजना को केंद्रीकृत राष्ट्रीय स्तर पर लागू करना एक बेहतर निर्णय नहीं हो सकता है।
- इसके अलावा नदियों को आपस में जोड़ने का काम विकेंद्रीकृत तरीके से किया जा सकता है तथा बाढ़ और सूखे को कम करने हेतु वर्षा जल संचयन जैसे अधिक टिकाऊ तरीकों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। उदाहरणतः केन-बेतवा नदी लिंक परियोजना।