सुरक्षित कार्यस्थल | 30 Apr 2022

यह एडिटोरियल 28/04/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Social Dialogue for Safe Workplaces” लेख पर आधारित है। इसमें उन उपायों के बारे में चर्चा की गई है जो व्यावसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये किये जा सकते हैं।

संदर्भ

पिछले दो वर्षों में कोविड-19 के कारण छह मिलियन से अधिक मौतों के साथ सुरक्षा और स्वास्थ्य प्रत्येक स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय चर्चा के प्रमुख विषय रहे हैं।

  • चूँकि विभिन्न उद्योगों में दुर्घटनाओं, आघात और बीमारियों की स्थिति बनती रहती है (जो प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से श्रमिकों एवं उनके परिवारों की सेहत को प्रभावित करते हैं), किसी भी कार्यस्थल पर निवारक सुरक्षा और स्वास्थ्य संस्कृति सुनिश्चित करना बेहद महत्त्वपूर्ण है।
  • महामारी से आहत कार्य विश्व को अधिक मानव-केंद्रित और प्रत्यास्थी तरीके से आगे ले जाने के लिये व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य (Occupational Safety and Health- OSH) तंत्र को सशक्त बनाए जाने की आवश्यकता है ताकि ऐसे कार्यस्थल स्थापित हो सकें जो कामगारों के लिये खतरनाक नहीं हों।

व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य (OSH) की स्थिति 

  • वैश्विक स्तर पर अनुमानतः 2.9 मिलियन मौतों और 402 मिलियन गैर-घातक आघातों के लिये व्यावसायिक दुर्घटनाएँ एवं बीमारियाँ ज़िम्मेदार हैं।
    • व्यावसायिक दुर्घटनाएँ एवं बीमारियाँ प्रतिवर्ष वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 5.4% की लागत रखती हैं।
    • वे कार्यस्थल पर अधिकाधिक उपस्थिति (Presenteism) - जहाँ वे कम प्रभावशीलता से कार्यरत होते हैं, स्थायी निःशक्तता से संबद्ध उत्पादकता हानि और स्टाफ-टर्नओवर लागत (अर्थात कुशल कर्मचारियों की हानि) के रूप में असर दिखाते हैं।

भारत में व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य (OSH) की स्थिति 

  • उपलब्ध सरकारी आँकड़े विनिर्माण और खनन क्षेत्रों में व्यावसायिक चोटों में गिरावट की प्रवृत्ति को दर्शाते हैं।
    • हालाँकि उल्लेखनीय है कि श्रम ब्यूरो के आँकड़ों के विश्लेषण में अपंजीकृत कारखानों और खानों को कवर नहीं किया जाता है।
  • वर्ष 2011-16 के दौरान भारत में सरकार को रिपोर्ट किये गए व्यावसायिक रोगों के मामलों की संख्या केवल 562 थी।
    • इसके विपरीत, नेशनल मेडिकल जर्नल ऑफ इंडिया, 2016 में प्रकाशित एक वैज्ञानिक लेख सिलिकोसिस (silicosis) और बायसिनोसिस (byssinosis) जैसे व्यावसायिक रोगों के प्रसार की पुष्टि करता है।
      • बायसिनोसिस फेफड़ों की एक बीमारी है जो काम के दौरान कपास के फाहों या सन, पटसन या सीसल जैसे अन्य वनस्पति फाइबर के सूक्ष्म कणों के साँस द्वारा अंदर जाने से उत्पन्न होती है।
  • हालाँकि भारत में OSH कवरेज़ बढ़ाने हेतु कुछ अच्छे अभ्यास भी अपनाए गए हैं।
    • उत्तर प्रदेश सरकार ने नियोक्ताओं और कामगारों के सहयोग से धातु और परिधान गृह-आधारित कामगारों के लिये सहभागी OSH प्रशिक्षण कार्यशालाएँ आयोजित की हैं।
      • इनमें से अधिकांश कामगार अनौपचारिक अर्थव्यवस्था से संबद्ध हैं और अन्य व्यावसायिक स्वास्थ्य और सुरक्षा पहलों की पहुँच से बाहर हैं।
    • केरल सरकार ने ILO की सहभागी OSH प्रशिक्षण पद्धतियों को लागू किया है और OSH सुधारों के लिये छोटे निर्माण स्थलों तक पहुँच बनाई है।
    • राजस्थान सरकार ने पत्थर प्रसंस्करण इकाइयों में फेफड़ा रोगों से बचाव के लिये कामगारों और नियोक्ताओं के बीच OSH जागरूकता का प्रसार किया है।

OSH को बढ़ावा देने के लिये की गई प्रमुख पहलें

  • वर्ष 2003 से अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने 28 अप्रैल की तिथि को ‘कार्यस्थल पर सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिये विश्व दिवस’ घोषित कर रखा है ताकि त्रिपक्षीयता और सामाजिक संवाद की हमारी शक्ति का लाभ उठाकर दुर्घटनाओं और बीमारियों की रोकथाम पर बल दिया जा सके।
    • वर्ष 2022 के लिये इस दिवस का थीम है: ‘‘सकारात्मक सुरक्षा और स्वास्थ्य संस्कृति के निर्माण के लिये मिलकर कार्य करना’’ (Act together to build a positive safety and health culture)।
  • भारत ने अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अभिसमयों— श्रम निरीक्षण अभिसमय (Labour Inspection Convention), 1947 और श्रम सांख्यिकी अभिसमय (Labour Statistics Convention) 1985 की पुष्टि कर रखी है।
  • भारत सरकार ने फ़रवरी 2009 में ‘कार्यस्थल पर सुरक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण पर राष्ट्रीय नीति’ (National Policy on Safety, Health and Environment at Workplace) की घोषणा की और वर्ष 2018 में उपलब्ध OSH जानकारी को राष्ट्रीय OSH प्रोफ़ाइल के रूप में संकलित किया।
  • रणनीतिक राष्ट्रीय OSH कार्यक्रम (National OSH Programme) शुरू किया जाना एक अन्य महत्त्वपूर्ण कदम है।
  • ‘व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता, 2020’ (Occupational Safety, Health and Working Conditions Code, 2020) नियोक्ताओं और कर्मचारियों के कर्तव्यों का वर्णन करती है और विभिन्न क्षेत्रों के लिये सुरक्षा मानकों की परिकल्पना करती है, जहाँ कामगारों के स्वास्थ्य एवं कार्य स्थिति, काम के घंटे, छुट्टी आदि पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
    • यह संहिता संविदा कर्मियों के अधिकारों को भी मान्यता देती है।
    • संहिता नियत अवधि के कर्मचारियों को स्थायी कर्मचारियों के समान सामाजिक सुरक्षा और  मज़दूरी जैसे सांविधिक लाभ प्रदान करती है।

सुरक्षित कार्यस्थल सुनिश्चित करने से संबद्ध समस्याएँ

  • रिपोर्टिंग प्रणाली का पूर्ण उपयोग नहीं: पीड़ितों के उपचार और सुरक्षित एवं स्वस्थ कार्यस्थलों के निर्माण हेतु प्रभावी रोकथाम नीतियाँ बनाने के लिये एक विश्वसनीय व्यावसायिक दुर्घटना एवं रोग रिपोर्टिंग प्रणाली का होना महत्त्वपूर्ण है।
    • जबकि भारत में ऐसा तंत्र मौजूद है, इसका कम उपयोग किया जाता है, जहाँ चोटों, दुर्घटनाओं और बीमारियों के कई मामले दर्ज ही नहीं किये जाते।
    • स्वाभाविक रूप से घातक चोटों की तुलना में गैर-घातक चोटों के मामले में अंडर-रिपोर्टिंग की अधिक संभावना बनी रहती है।
      • लघु स्तर के उद्योगों में औद्योगिक चोटों की बड़े पैमाने पर कम रिपोर्टिंग की स्थिति पाई जाती है।
  • व्यावसायिक रोगों के बारे में जागरूकता की कमी: विभिन्न व्यावसायिक रोगों और कार्यस्थल के खतरों एवं जोखिमों के संबंध में प्रशिक्षित चिकित्सकों की कमी है।
    • कार्यस्थलों पर स्वास्थ्य संबंधी खतरों के बारे में जागरूकता की कमी के कारण चिकित्सकों द्वारा गलत निदान की स्थिति भी बनती रहती है।
  • दायरे के अंतर्गत उद्योगों की सीमित संख्या: श्रम ब्यूरो केवल कुछ क्षेत्रों (कारखाना, खदान, रेलवे, डॉक और बंदरगाह) से संबंधित औद्योगिक आघातों पर ही डेटा का संकलन एवं प्रकाशन करता है। 
    • निकाय ने अभी तक वृक्षारोपण, निर्माण, सेवा क्षेत्र जैसे अन्य क्षेत्रों को शामिल कर चोटों के आँकड़ों के दायरे का विस्तार नहीं किया है।

व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिये क्या किया जा सकता है?

  • OSH - समिति, अनुपालन और डेटा का संग्रह: व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता, 2020 का प्रभावी क्रियान्वयन OSH सुरक्षा का विस्तार करेगा, विशेष रूप से अनौपचारिक कामगारों के लिये जो भारत के कार्यबल के लगभग 90% भाग का निर्माण करते हैं।
    • संहिता को सक्रिय कार्यस्थल OSH समितियों को भी प्रोत्साहन देना चाहिये और खतरों की पहचान करने और OSH में सुधार लाने के लिये कामगारों को संलग्न करना चाहिये। OSH जोखिमों की पहचान और समाधानों के क्रियान्वयन में कामगार ही अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ता होते हैं। 
    • यह भी महत्त्वपूर्ण है कि भारत प्रभावी हस्तक्षेप की स्थिति को बेहतर ढंग से समझने के लिये कुशल OSH डेटा संग्रहण प्रणाली स्थापित करे।
  • जन जागरूकता: कार्य संबंधी दुर्घटनाओं एवं बीमारियों को रोकने और खतरनाक कार्यस्थल माहौल में सुधार के लिये जन जागरूकता को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
    • भारत को कामगारों और नियोक्ताओं के लिये मज़बूत राष्ट्रीय अभियानों और जागरूकता का प्रसार करने वाली गतिविधियाँ का संचालन करना चाहिये।
    • युवा लोग विशेष रूप से OSH जोखिमों के प्रति संवेदनशील होते हैं और उन्हें OSH समाधान खोजने में सक्रिय भूमिका निभाने की आवश्यकता है।
  • सरकारों की भूमिका: राष्ट्रीय स्तर पर सरकार को सभी संबंधित मंत्रालयों को संलग्न करते हुए यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि राष्ट्रीय एजेंडा में श्रमिकों की सुरक्षा और स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जाए।
    • इसके लिये OSH, खतरों एवं जोखिमों के ज्ञान और उनके नियंत्रण एवं रोकथाम संबंधी उपायों के बारे में सामान्य जागरूकता के प्रसार के लिये पर्याप्त संसाधन आवंटित करने की आवश्यकता है।
    • राज्य स्तर पर श्रमिक संगठनों और नियोक्ता संगठनों को द्विपक्षीय चर्चा के माध्यम से कार्यस्थल की चोटों और बीमारियों से सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु अपनी आपूर्ति शृंखला के हर स्तर पर सुरक्षा और स्वास्थ्य प्रशिक्षण को शामिल करना चाहिये।
  • सामाजिक संवाद: अनुपालन में सुधार के लिये सामाजिक संवाद आवश्यक है और यह स्वामित्व के निर्माण एवं प्रतिबद्धता को स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है जो फिर OSH नीतियों के शीघ्र एवं प्रभावी कार्यान्वयन का मार्ग प्रशस्त करता है।
    • व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य को उचित रूप से संबोधित कर सकने के लिये (इसकी रोकथाम के लिये पर्याप्त निवेश के माध्यम से) एक सुदृढ़ सामाजिक संवाद तंत्र एक सुरक्षित एवं स्वस्थ कार्यबल के निर्माण में योगदान देगा और उन उत्पादक उद्यमों का समर्थन करेगा जो संवहनीय अर्थव्यवस्था के आधार का निर्माण करते हैं।

अभ्यास प्रश्न: उन उपायों की चर्चा कीजिये जो एक ऐसी कार्य संस्कृति स्थापित करने के लिये किये जा सकते हैं जो अधिक मानव-केंद्रित होंगे और सभी कामगारों के लिये निवारक सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे।