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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

विरासत स्थलों का आर्थिक महत्त्व

  • 28 Apr 2017
  • 10 min read

किसी व्यक्ति का अपनी धरोहर से संबंध उसी प्रकार का है, जैसे एक बच्चे का अपनी माँ से संबंध होता है। हमारी धरोहर हमारा गौरव हैं और ये हमारे इतिहास-बोध को मज़बूत करते हैं। हमारी कला और संस्कृति की आधार शिला भी हमारे विरासत स्थल ही हैं।

  • इतना ही नहीं हमारी विरासतें हमें विज्ञान और तकनीक से भी रूबरू कराती हैं, ये मनुष्यों तथा प्रकृति के मध्य जटिल सबंधों को दर्शाती हैं और मानव सभ्यता की विकास गाथा की कहानी भी बयां करती हैं।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51ए (एफ) में स्पष्ट कहा गया है कि अपनी समग्र संस्कृति की समृद्ध धरोहर का सम्मान करना और इसे संरक्षित रखना प्रत्येक भारतीय नागरिक का कर्तव्य है।
  • यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि हम अब तक अपने विरासत स्थलों के सामाजिक और सांस्कृतिक महत्त्व पर ही बात करते आए हैं , जबकि आर्थिक विकास में इनकी भूमिका अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण है। यह एक ऐसा पक्ष है जिसे हम नज़रंदाज़ करते आए हैं।

विरासत स्थलों की आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका

  • भारत एक ऐसा देश रहा है जिसका इतिहास विविधता से भरा हुआ है, दुनिया की प्राचीनतम हड़प्पा सभ्यता से जहाँ हम सर्वोत्तम नगर-योजना के गुर सीख सकते हैं तो, जयपुर के जंतर-मंतर और वेधशालाओं में हम समकालीन वैज्ञानिक विकास की झलक देख सकते हैं।
  • इतिहासकारों का मानना है कि बहुत से भारतीय राजाओं ने अपने किले और स्मारकों का निर्माण तब कराया जब उनके क्षेत्र में अकाल पड़ा हुआ था, ताकि इमारतों के निर्माण के साथ-साथ उन्हें रोज़गार भी दिया जा सके। हमारे आज के नीति-निर्माता भी इससे सबक ले सकते हैं।
  • हमारे विरासत स्थलों की एक प्रमुख विशेषता यह है कि उनके निर्माण में स्थानीय संसाधनों और स्थानीय कला विशेषताओं का जमकर उपयोग हुआ है। ज़ाहिर है यह कौशल आज भी वहाँ के स्थानीय समुदायों में विद्यमान है, अतः इनको संरक्षण प्रदान कर स्थानीय स्तर पर रोज़गार-सृजन किया जा सकता है।
  • भारत में हजारों ऐसी विरासत स्थल हैं, जिनकी सरंचना बहुत ही मज़बूत है। राजस्थान के बहुत से किलों को आधुनिक सुविधाओं से लैस होटलों में तब्दील किया जा चुका है। होटलों या संग्रहालयों या पुस्तकालयों के रूप में उपयोग किये जाने के अलावा, इस प्रकार की इमारतों को आसानी से स्कूल या क्लीनिक के रूप में उपयोग करने के अनुकूल बनाया जा सकता है।

समस्याएँ तथा चुनौतियाँ

  • ऐतिहासिक धरोहरों के मामले में भारत अत्यंत ही समृद्ध है। उपमहाद्वीप के प्रत्येक क्षेत्र में बड़ी संख्या में स्मारकीय भवन हैं। फिर भी भारत में 15,000 से भी कम स्मारक और विरासत स्थल कानूनी रूप से संरक्षित हैं, वहीं ब्रिटेन जैसे छोटे देश में 600,000 स्मारकों को वैधानिक सरंक्षण प्राप्त है।
  • भारत में राष्ट्रीय/राज्य या स्थानीय महत्त्व के स्मारक उपेक्षा के शिकार हैं, अतिक्रमण एक ऐसी चुनौती बन गई है कि लोग इन स्मारकों के प्रवेश द्वार पर सुबह-सुबह दातून करते, अपने मवेशियों और पालतू जानवरों को सैर कराते दिख जाते हैं।
  • हमारे विरासत स्थलों की दयनीय स्थिति के जिम्मेदार वे संस्थाएँ और निकाय हैं जिन्हें इनके सरंक्षण का दायित्व दिया गया है। ये संस्थाएँ असफल इसलिये हैं क्योंकि वे इनके आर्थिक संभावनाओं से अनजान हैं। 

क्या हो आगे का रास्ता

  • इस दिशा में पहला कदम यह सुनिश्चित करना होगा कि स्मारकों और पुरातात्त्विक स्थलों का दौरा आगंतुकों के लिये रोमांचक अनुभव साबित हों। दशकों के पुरातात्त्विक प्रयासों के बाद, भारत में हजारों विरासत स्थलों की खोज हुई हैं जो प्रसिद्ध  हड़प्पा सभ्यता के समकालीन हैं। इन स्थलों के बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं, वहीं पर्यटन विभाग भी इन स्थलों के ऐतिहासिक महत्त्व का प्रचार-प्रसार करने में असफल रहा है, इस दिशा में तत्काल प्रभावी कदम उठाने होंगे।
  • भारत में यूनेस्को-द्वारा मान्यता प्राप्त 35 विश्व धरोहर स्थल हैं, दुनिया के केवल कुछ ही देशों में यह संख्या 35 से अधिक है। आवश्यक यह है कि इन स्थलों के साथ जुड़े संगीत, भोजन, अनुष्ठान, पोशाक, व्यक्तित्व, खेल, त्योहारों आदि के बारे में जानकारी इकठ्ठा करें ताकि आगंतुकों को ये जानकरियाँ देकर हम आर्थिक लाभ कमा सकें।
  • यदि हम अपनी विरासत को आगे बढ़ाना चाहते हैं तो इसको आर्थिक लाभ से जोड़ना होगा और इसके लिये तो सांस्कृतिक क्षेत्र को उदारीकरण की परिधि में लाया जाना चाहिये, जब ये स्थल आर्थिक महत्त्व वाले बन जाएंगे तो इनके रख-रखाव के लिये निजी और सार्वजानिक क्षेत्रों के बीच प्रतिस्पर्द्धा देखने को मिलेगी।

क्या होता है विश्व धरोहर स्थल?
सांस्कृतिक और प्राकृतिक महत्त्व के स्थलों को हम विश्व धरोहर या विरासत कहते हैं। ये स्थल ऐतिहासिक और पर्यावरण के लिहाज़ से भी महत्त्वपूर्ण होते हैं। इनका अंतरराष्ट्रीय महत्त्व होता है और इनके सरंक्षण हेतु विशेष प्रयास किये जाते हैं।

ऐसे स्थलों को आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को, विश्व धरोहर की मान्यता प्रदान करती है। कोई भी स्थल जो मानवता के लिये ज़रूरी है, जिसका कि सांस्कृतिक और भौतिक महत्त्व है, उसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर के तौर पर मान्यता दी जाती है।  

दुनियाभर में कितने विश्व धरोहर स्थल?
दुनियाभर में कुल 1052 विश्व धरोहर स्थल हैं। इनमें से 814 सांस्कृतिक,  203 प्राकृतिक और 35 मिश्रित हैं।  

भारत में कितने विश्व धरोहर स्थल?
भारत में फिलहाल 27 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक और 1 मिश्रित सहित कुल 35 विश्व धरोहर स्थल हैं।  

सांस्कृतिक धरोहर स्थल
आगरा का किला (1983)
अजंता की गुफाएँ (1983)
नालंदा महाविहार (नालंदा विश्वविद्यालय), बिहार (2016)
सांची बौद्ध स्मारक (1989)
चंपानेर-पावागढ़ पुरातात्त्विक पार्क (2004)
छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (पूर्व में विक्टोरिया टर्मिनस) (2004)
गोवा के चर्च और कॉन्वेंट्स (1986)
एलिफेंटा की गुफाएँ (1987)
एलोरा की गुफाएँ (1983)
फतेहपुर सीकरी (1986)
ग्रेट लिविंग चोल मंदिर (1987)
हम्पी में स्मारकों का समूह (1986)
महाबलिपुरम में स्मारक समूह (1984)
पट्टडकल में स्मारक समूह (1987) 
राजस्थान में पहाड़ी किला (2013)
हुमायूँ का मकबरा, दिल्ली (1993)
खजुराहो में स्मारकों का समूह (1986)
बोध गया में महाबोधि मंदिर परिसर (2002)
माउंटेन रेलवे ऑफ इंडिया (1999)
कुतुब मीनार और इसके स्मारक, दिल्ली (1993)
रानी-की-वाव पाटन, गुजरात (2014)
लाल किला परिसर (2007)
भीमबेटका के रॉक शेल्टर (2003)
सूर्य मंदिर, कोर्णाक (1984)
ताज महल (1983)
ला कॉर्ब्युएर का वास्तुकला कार्य (2016)
जंतर मंतर, जयपुर (2010)  

प्राकृतिक धरोहर स्थल
हिमालयी राष्ट्रीय उद्यान संरक्षण क्षेत्र (2014)
काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान (1985)
केवलादेव नेशनल पार्क (1985)
मानस वन्यजीव अभयारण्य (1985)
नंदा देवी और फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान (1988)
सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान (1987)
पश्चिमी घाट (2012)  

मिश्रित
कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान (2016)

(टीम दृष्टि इनपुट)

निष्कर्ष
पर्यटन राष्ट्रीय विकास का मुख्य वाहन है। भारत सरकार की महत्त्वकांक्षी मेक इन इंडिया को सफल बनाने में पर्यटन की अहम् भूमिका रहने वाली है। लाखों युवा भारतीयों के लिये रोज़गार सृजन के लिये देश को कुछ दशकों तक लगातार 9-10 फीसद की दर से विकास करना होगा और इसे हासिल करने के लिये हमें अपने समृद्ध पर्यटन संसाधनों का लाभ उठाना होगा।

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