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आपदा प्रबंधन

ओडिशा का बाढ़ अनुमान एटलस

  • 24 Jun 2019
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

ओडिशा के मुख्यमंत्री ने राज्य में बाढ़ की स्थितियों के बेहतर प्रबंधन के लिये एक एटलस लॉन्च किया है। इस एटलस के ज़रिये राज्य में बाढ़ प्रबंधन हेतु एक नई रूपरेखा तैयार करने में मदद मिलेगी।

प्रमुख बिंदु

  • यह एटलस नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (National Remote Sensing Centre-NRSC ) हैदराबाद और ओडिशा राज्य विकास आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (Odisha State Development Disaster Management Authority- OSDMA ) द्वारा तैयार किया गया है।

नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (NRSC ) हैदराबाद ; यह रिमोट सेंसिंग ,उपग्रह डेटा अधिग्रहण और प्रसंस्करण, डेटा प्रसार, हवाई रिमोट सेंसिंग और आपदा प्रबंधन में सहायता के लिये ज़िम्मेदार है। यह संस्थान भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के तत्त्वावधान में कार्य करता है।

  • यह एटलस राज्य में वर्ष 2000 से 2018 के बीच बाढ़ के आँकड़ों के विश्लेषण के आधार पर तैयार किया गया हैं। क्षेत्रवार बाढ़ की प्रवणता को विशेष रूप से ध्यान रखा गया है। राज्य में लगभग 14 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि बाढ़ से प्रभावित होती है।
  • इस वर्ष मानसून के दौरान भारतीय मौसम विभाग की भविष्यवाणी के अनुसार बाढ़ की पुनरावृत्ति की संभावना है।
  • उल्लेखनीय है कि 2018-19 के दौरान ओडिशा ने दो चक्रवातों तितली और फणि सहित कई प्राकृतिक आपदाओं को झेला है ।

ओडिशा के अत्यधिक बाढ़ प्रवण होने के कारण

  • राज्य में उष्णकटिबंधीय जलवायु पायी जाती है जिसकी विशेषता उच्च तापमान, उच्च आर्द्रता , मध्यम से अधिक वर्षा और कम हल्की सर्दियाँ होती है ।
  • ओडिशा के समुद्री तट की लंबाई 482 किमी. है जो राज्य को बाढ़, चक्रवात तथा तूफान के प्रति संवेदनशील बनाती है और साथ ही मानसून के दौरान भारी वर्षा से नदियों में बाढ़ आ जाती है।
  • झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे पड़ोसी राज्यों की नदियों का प्रवाह भी बाढ़ में योगदान देता है।
  • खराब जल निकासी, नदियों में गाद का उच्च स्तर, मिट्टी के कटाव, तटबंधों के टूटने और उन पर बाढ़ के पानी के फैलाव के साथ समतल तटीय प्रदेश इत्यादि के कारण नदी के बेसिन और डेल्टा क्षेत्रों में गंभीर बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती हैं। महानदी, सुवर्णरेखा, ब्राह्मणी, बैतरणी, रुशिकुल्या, वंशधारा और इनकी सहायक नदियाँ विशेष रूप से प्रभावित होती है।
  • महानदी, ब्राह्मणी और बैतरनी नदियों का एक साझा डेल्टा होने कारण यहाँ जल की मात्रा ज़्यादा हो जाती है, फलस्वरूप बाढ़ की संभावना बढ़ जाती है। उच्च ज़्वार के समय यह समस्या और भी विकट हो जाती है।

flood zone of odisha

  • तटीय क्षेत्रों में तूफान आने की संभावना अक्सर बनी रहती है और ज्वार-भाटा उत्पन्न करने वाले तूफान आमतौर पर भारी वर्षा के साथ आते हैं ,जिससे तटीय प्रदेश बाढ़ और तूफान दोनों की चपेट में आ जाते हैं। अंततः स्थिति अत्याधिक भयावह हो जाती है ।

बाढ़ से निपटने के लिये किये गये प्रयास:

  • भारत ने आपदा प्रबंधन के लिये सेंदाई कार्ययोजना (Sendai framework ) का अनुसमर्थन किया है।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ( NDMA) का गठन राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा (3) की उपधारा (1) के तहत किया गया है। NDMA , प्रधान मंत्री के नेतृत्व में देश में आपदा प्रबंधन के लिये शीर्ष निकाय है, जो भारत में आपदा प्रबंधन के साथ नीतियों और कार्यक्रमों का भी समन्वय करता है। इसके प्रतिनिधि संस्थान के रूप में राष्ट्रीय कार्यकारी समिति ( national Executive Committee -NEC) कार्य करती है।
  • राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (State Disaster Management Authority- SDMA) का गठन प्रत्येक राज्य द्वारा आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 14 की उपधारा (1) और (2) के तहत किया गया है। राज्य स्तर पर इसके क्रियान्वयन के लिये राज्य कार्यकारी समिति( State Executive Committee- SEC) का गठन किया है।
  • राजस्व और आपदा प्रबंधन विभाग बाढ़ से प्रभावित लोगों को तत्काल राहत प्रदान करने के लिये ज़िम्मेदार होता है।
  • ओडिशा राज्य आपदा विकास प्रबंधन प्राधिकरण (OSDMA) ओडिशा सरकार द्वारा स्थापित एक स्वायत्त संगठन है, जो आपदा प्रबंधन की त्वरित कार्यवाही के ज़िम्मेदार है। इसकें साथ ही ज़िला, ब्लाक और ग्राम स्तर पर समन्वित कार्य योजना का भी प्रबंध किया गया है।

SDMA

  • राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) का गठन प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं के लिये विशेष प्रतिक्रिया के उद्देश्य से किया गया है।
  • आपदा के दौरान और पश्चात् तीव्र पुनर्निर्माण के लिये ओडिशा आपदा त्वरित कार्यवाही बल (Odisha Disaster Rapid Action Force -ODRAF) की स्थापना की गई है।
  • तीव्र सूचना के लिये आपातकालीन संचालन केंद्र (Emergency Operation Centre) की स्थापना की गई है।

आगे की राह

  • बड़े स्तर पर वनीकरण को प्रोत्साहित करना और अन्तःस्पंदन ( infiltration) को बढ़ाना।
  • नदियों के पानी को प्रबंधित करने के लिये चैनलों का निर्माण किया जाए साथ ही नहरों के माध्यम से भी पानी की मात्रा को नियंत्रित किया जा सकता है।
  • नदियों के गाद को साफ़ किया जाए। इसके लिये यमुना की असिता परियोजना से प्रेरणा ली जा सकती है।
  • जल संभरण कार्यक्रमों को मज़बूती प्रदान की जाए साथ ही इसकी उपयोगिता के बारे में लोगो को जागरूक किया जाए।
  • NDRF और SDRF की कौशल क्षमता का संवर्द्धन किया जाए और स्थानीय लोगो से संवाद और संपर्क को बढ़ावा दिया जाए।
  • बांध सुरक्षा और प्रबंधन को बढ़ावा दिया जाए साथ ही इसकी नियमित जाँच की जानी चाहिये।
  • स्थानीय स्कूलों और पंचायत के माध्यम से लोगों को आवश्यक जानकारियाँ और स्व-प्रबंधन के कौशल प्रदान किये जाएँ।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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