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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

संयुक्त राष्ट्र की 75वीं वर्षगांठ पर यूएन ड्राफ्ट डिक्लेरेशन

  • 20 Jul 2020
  • 8 min read

प्रीलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र की 75वीं वर्षगांठ, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद  

मेन्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधार 

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र संघ की 75 वीं वर्षगांठ के अवसर पर ‘संयुक्त राष्ट्र ‘यूएन ड्राफ्ट डिक्लेरेशन’ (UN Draft Declaration) के पूरा होने की उम्मीद है, परंतु इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार प्रक्रिया के धीमे होने की संभावना भी है। 

प्रमुख बिंदु:

  • संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर करने की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर ‘यूएन ड्राफ्ट डिक्लेरेशन’ पर हस्ताक्षर किये जाने थे लेकिन घोषणा में देरी हुई क्योंकि सभी सदस्य देश अभी तक किसी  एक समझौते तक नहीं पहुंच सके।
  • संयुक्त राष्ट्र यूएन ड्राफ्ट डिक्लेरेशन, संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सिद्धांतों के पुनर्मूल्यांकन का एक शक्तिशाली उपकरण है। 
  • 75 वर्ष पूर्व द्वितीय विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि में ‘नवीन विश्व व्यवस्था’ (New World Order) की दिशा में 24 अक्तूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गई थी।

यूएन ड्राफ्ट डिक्लेरेशन:

  • यूएन ड्राफ्ट डिक्लेरेशन में 12 ऐसी प्रतिबद्धताओं को निर्धारित किया गया है;
    • हम किसी को पीछे नहीं छोड़ेंगे; 
    • हम अपने ग्रह की रक्षा करेंगे; 
    • हम शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये कार्य करेंगे; 
    • हम अंतर्राष्ट्रीय नियमों और मानदंडों का पालन करेंगे; 
    • हम महिलाओं और लड़कियों को केंद्र में रखेंगे;
    • हम विश्वास पैदा करेंगे; 
    • हम सभी के लाभ के लिये नवीन प्रौद्योगिकियों के उपयोग को बढ़ावा देंगे;
    • हम संयुक्त राष्ट्र को आवश्यक सुधार करेंगे; 
    • हम वित्तपोषण सुनिश्चित करेंगे; 
    • हम साझेदारी को बढ़ावा देंगे; 
    • हम युवाओं को सुनेंगे तथा उनके साथ कार्य करेंगे; 
    • हम भविष्य में अधिक तैयार रहेंगे।

संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधार:

  • संयुक्त राष्ट्र संघ मसौदे के माध्यम के संयुक्त राष्ट्र के तीन प्रमुख अंगों के सुधार की मांग की जा रही है: 
    • सुरक्षा परिषद (Security Council) 
    • महासभा (General Assembly) 
    • आर्थिक और सामाजिक परिषद (Economic and Social Council)।

महासभा द्वारा सुधारों को पहल:

  • वर्ष 1992 का प्रस्ताव:
    • वर्ष 1992 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में एक प्रस्ताव को स्वीकृत किया गया। प्रस्ताव में तीन मुख्य शिकायतें उल्लिखित है:
    • सुरक्षा परिषद् अब राजनीतिक वास्तविकताओं का प्रतिनिधितत्त्व नहीं करती।
    • इसके निर्णयों पर पश्चिमी मूल्यों और हितों का प्रभाव होता है। 
    • सुरक्षा परिषद् में समान प्रतिनिधित्त्व का अभाव है।
  • वर्ष 2005 का संकल्प:
    • सितंबर, 2005 में महासभा द्वारा एक संकल्प के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र संघ की सैन्य शक्ति के दुरुपयोग को रोकने के प्रति मज़बूत इच्छा व्यक्त की गई । 
    • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि यह संकल्प इराक युद्ध (वर्ष 2003) के दौरान संयुक्त राष्ट्र द्वरा लिये गए एकतरफा निर्णयों की पृष्ठभूमि में संयुक्त राष्ट्र में सुधार की मांग के बाद अपनाया गया था।
  • वर्ष 2008 का प्रस्ताव:
    • संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा सितंबर 2008 को होने वाली अपनी पूर्ण बैठक (Plenary Meeting) में विगत प्रस्तावों के आधार पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सदस्य  संख्या में वृद्धि के सवाल पर अंतर-सरकारी वार्ता को आगे बढ़ाने का निर्णय किया गया। 

सुधारों की आवश्यकता:

  • अपर्याप्त प्रतिनिधितत्त्व:
    • संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख निकायों जैसे सुरक्षा परिषद आदि में विकासशील या उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्त्व नहीं है। विकासशील देशों में केवल चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है।
  • सदस्यों की संख्या में वृद्धि:
    • संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों की संख्या में इसकी स्थापना के बाद से लगातार विस्तार देखने को मिला है तथा यह वर्तमान में 193 तक बढ़ गई है, फिर भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का विस्तार नहीं किया गया है।
  • एक तरफा सैन्य-अभियान:
    • संयुक्त राष्ट्र संघ के सैन्य मिशनों में पश्चिमी देशों का प्रभुत्त्व देखने को मिलता है, अत: इस संबंध में अधिक लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अपनाए जाने की आवश्यकता है। 

भारत सरकार की नवीन पहल:

  • हाल ही में भारत वर्ष 2021-22 के लिये ‘सुरक्षा परिषद का गैर-स्थायी सदस्य’ चुना गया है। इसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की दिशा में एक प्रमुख कदम के रूप में देखा जा रहा है।  
  • हाल ही में 'संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद' (United Nations Economic and Social Council- ECOSOC) की ‘उच्च-स्तरीय आभासी बैठक’ में भारतीय प्रधानमंत्री ने ‘पोस्ट COVID-19 पीरियड’ में बहुपक्षीय संस्थाओं में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया।
  • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि इस आभासी बैठक की थीम; ‘COVID-19 के बाद बहुपक्षवाद: 75वीं वर्षगांठ पर हमें किस तरह के संयुक्त राष्ट्र की ज़रूरत है’ ही अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में सुधारों पर केंद्रित थी।

निष्कर्ष:

  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विस्तार पर बहस काफी समय से चल रही है किंतु अभी भी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और स्थायी सदस्यों के बीच आम सहमति का न होना चिंता का विषय है। कथनों को मूर्त रूप देने और संयुक्त राष्ट्र की बहुसंख्यक सदस्यता की इच्छा को ध्यान में रखते हुए उचित निर्णय लेने का यह उपयुक्त समय है।

स्रोत: द हिंदू

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