संयुक्त राष्ट्र ने समुद्री जैव विविधता की सुरक्षा के लिये शुरू की वार्ता | 04 Sep 2018
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने सागरों और महासागरों में जैव विविधता के संरक्षण से संबंधित संधि 2020 पर वार्ता की शुरुआत की है।
प्रमुख बिंदु
- वार्ता के चार सत्र (प्रत्येक सत्र दो सप्ताह के लिये) आयोजित किये जाने की योजना है। उल्लेखनीय है कि इन वार्ताओं का आयोजन 2 वर्षों के दौरान किया जाएगा।
- इन वार्ताओं का उद्देश्य समुद्री जैव विविधता की रक्षा करना और महासागरों में होने वाले अतिक्रमण पर रोक लगाना है।
- वार्ता राष्ट्रीय क्षेत्राधिकारों या विशेष रूप से किसी भी देश से संबंधित क्षेत्रों से परे रिक्त स्थान से संबंधित होगी।
- बातचीत समुद्रों के संरक्षित क्षेत्रों, समुद्री संसाधनों और प्रौद्योगिकी के अधिक से अधिक साझाकरण के साथ ही पर्यावरणीय प्रभावों के शोध पर ध्यान केंद्रित करेगी।
संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि
- संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UN Convention on the Law of the Sea-UNCLOS) एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो विश्व के सागरों और महासागरों पर देशों के अधिकार और ज़िम्मेदारियों का निर्धारण करती है और समुद्री साधनों के प्रयोग के लिये नियमों की स्थापना करती है।
- संयुक्त राष्ट्र ने इस कानून को वर्ष 1982 में अपनाया था लेकिन यह नवंबर 1994 में प्रभाव में आया। उल्लेखनीय है कि उस समय यह अमेरिका की भागीदारी के बिना ही प्रभावी हुआ था।
संधि के प्रमुख प्रावधान:
- क्षेत्रीय समुद्र के लिये 12 नॉटिकल मील सीमा का निर्धारण।
- अंतर्राष्ट्रीय जलडमरूमध्य के माध्यम से पारगमन की सुविधा।
- द्वीप समूह और स्थलबद्ध देशों के अधिकारों में वृद्धि।
- तटवर्ती देशों हेतु 200 नॉटिकल मील EEZ (Exclusive Economic Zone) का निर्धारण।
- राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर गहरे समुद्री क्षेत्र में खनिज संसाधनों के दोहन की व्यवस्था।
क्यों मौन हैं कुछ देश इस मुद्दे पर?
- व्हेल का शिकार करने वाले कुछ राष्ट्रों जैसे जापान, आइसलैंड और नॉर्वे के दूसरे देशों की तुलना में अधिक सतर्क होने की उम्मीद है क्योंकि वे मछली पकड़ने के अत्यधिक सख्त प्रतिबंधों से डरते हैं।
- अमेरिका भी इस मुद्दे पर मौन है क्योंकि ये सभी समुद्री संसाधनों के विनियमन का विरोध कर रहे हैं और इन देशों द्वारा समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की पुष्टि नहीं की गई है।
- इसके अलावा रूस ने भी लंबे समय से इस वार्ता से स्वयं को अलग रखा है।