बागान श्रम अधिनियम में संशोधन की तैयारी में केंद्र सरकार | 07 Jan 2017
सन्दर्भ
केंद्र सरकार बागान श्रमिक अधिनियम, 1951 में संशोधन लाने पर विचार कर रही है। यह संशोधन मुख्य रूप से बागान श्रमिक अधिनियम, 1951 में से ‘वस्तु के रूप में भुगतान’ नामक उस खंड को हटाने के लिये लाया जा रहा है जिसे प्रायः कामगारों को दी जाने वाली मज़दूरी का ही एक घटक माना जाता है।
बागान श्रमिक अधिनियम, 1951
- बागान श्रमिक अधिनियम, 1951 में बागान-मज़दूरों के कल्याण का प्रावधान है। यह अधिनियम वस्तुतः बागानों में कार्य की दशाओं का विनियमन करता है।
- इस अधिनियम के तहत 'बागान' शब्द के अंतर्गत उन बागानों को शामिल किया गया है जिन पर यह अधिनियम पूर्णतः अथवा आंशिक रूप से लागू होता हो। इनमें कार्यालय, अस्पताल, डिस्पेंसरियाँ, स्कूल और वे सभी परिसर शामिल हैं जो इस प्रकार के बागान से जुड़े किसी भी उद्देश्य के लिये इस्तेमाल होते हैं।
- ध्यान देने वाली बात है कि इसके अंतर्गत परिसर में स्थित ऐसी कोई फैक्टरी शामिल नहीं है, जिस पर कारखाना अधिनियम, 1948 के प्रावधान लागू होते हों।
- इस अधिनियम का संचालन श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय अपने औद्योगिक संबंध प्रभाग के माध्यम से करता है। इस प्रभाग का संबंध विवादों के निपटारे के लिये संस्थागत ढाँचे तथा औद्योगिक संबंधों से जुड़े श्रम कानूनों में सुधार लाने से है।
- उल्लेखनीय है कि बागान श्रमिक अधिनियम, 1951 के तहत, बागान श्रमिकों को मिलने वाले विभिन्न लाभ या तो कम दरों पर या फिर मुफ्त दिये जाते हैं, इन लाभों में शामिल हैं- राशन, आवास, शिक्षा, जलाने के लिये लकड़ी और चिकित्सा सुविधाएँ।
- यहाँ एक प्रमुख समस्या यह है कि अधिकांशतः चाय बागानों के मालिकों द्वारा मज़दूरों को यह कहकर कम वेतन दिया जाता है कि बागान श्रमिक अधिनियम, 1951 के तहत दी जाने वाली सुविधाओं के उपरान्त उन्हें इतना ही वेतन दिया जाएगा।
संशोधन की आवश्यकता
- गौरतलब है कि चाय उद्योग, बागान क्षेत्र से संबंधित सबसे बड़ा उपक्रम है, लेकिन यहाँ एक चिंताजनक बात यह है कि असम के चाय बागानों में काम करने वाले मज़दूरों को जहाँ 137 रुपए नकद दिये जाते हैं, वहीं पश्चिम बंगाल के चाय बागानों में काम करने वाले मज़दूरों को 132 रुपए नकद दिये जाते हैं।
- कम वेतन दिये जाने के संबंध में बागान मालिकों का कहना है कि बागान श्रमिक अधिनियम, 1951 के तहत बागान श्रमिकों दी जाने वाली सुविधाओं के मौद्रिक मूल्य को अगर नकद मज़दूरी में जोड़ दिया जाए तो हम मज़दूरों को 272 से 284 रुपए के बीच दैनिक वेतन देते हैं।
- इन परिस्थितियों में, एक ओर जहाँ उत्पादन की लागत में बढ़ोतरी देखी जाती थी तो वहीं मज़दूर वर्ग भी समुचित लाभ प्राप्त नहीं कर पाता था। अतः बागान श्रमिक अधिनियम, 1951 में वांछित संशोधन एक स्वागत योग्य कदम है।
निष्कर्ष
- इसमें कोई दो राय नहीं है कि बागान श्रमिक अधिनियम, 1951 में सुधार आवश्यक है, साथ ही आवश्यकता इस बात की भी है कि बगानों में काम करने वाले मज़दूरों तक मूलभूल सुविधाएँ कम दरों पर पहुँचाई जाएँ। अतः सरकार को चाहिये कि वह बगान मालिकों के साथ स्वयं भी इसकी लागत का भुगतान करे।
- किसी भी देश के लिये यह नितांत ही आवश्यक है कि उसे मर्यादापूर्ण और कुशल कार्य-शक्ति मिले, जो शोषण से मुक्त हो और ऊँचे स्तर का उत्पादन करने में सक्षम हो।