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भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रतिभूतियों के लिये ‘T+1’ निपटान प्रणाली

  • 14 Sep 2021
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड, ‘T+1’ और ‘T+2’ निपटान प्रणालियाँ

मेन्स के लिये

‘T+1’ निपटान प्रणाली के लाभ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड’ (SEBI) ने स्टॉक एक्सचेंजों को शेयरों के लेन-देन को पूरा करने हेतु ‘T+2’ के स्थान पर ‘T+1’ प्रणाली को एक विकल्प के रूप में शुरू करने की अनुमति दी है।

  • इसे तरलता बढ़ाने के उद्देश्य से वैकल्पिक आधार पर प्रस्तुत किया गया है।
  • ‘भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड’, 1992 में ‘भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992’ के प्रावधानों के अनुसार स्थापित एक वैधानिक निकाय है।

निपटान प्रणाली

  • प्रतिभूति उद्योग में ‘निपटान अवधि’ का आशय व्यापार की तारीख (जब बाज़ार में आदेश निष्पादित किया जाता है) और निपटान तिथि (जब व्यापार को अंतिम रूप दिया जाता है) के बीच के समय से होता है।
  • निपटान अवधि के अंतिम दिन खरीदार प्रतिभूति का धारक बन जाता है।

प्रमुख बिंदु

  • ‘T+1’ प्रणाली
    • यदि स्टॉक एक्सचेंज ‘स्क्रिप’ के लिये ‘T+1’ निपटान प्रणाली का विकल्प चुनता है, तो उसे अनिवार्य रूप से न्यूनतम 6 महीने तक इसे जारी रखना होगा।
      • ‘स्क्रिप’ कानूनी निविदा का एक विकल्प है, जो धारक को बदले में कुछ प्राप्त करने का अधिकार देता है।
    • इसके बाद यदि वह ‘T+2’ प्रणाली पर वापस जाना चाहता है, तो बाज़ार को एक माह का अग्रिम नोटिस देकर ऐसा कर सकता है। कोई भी ट्रांज़िशन (‘T+1’ से ‘T+2’ या इसके विपरीत) न्यूनतम अवधि के अधीन होगा।
  • ‘T+1’ बनाम ‘T+2’ प्रणाली
    • ‘T+2’ प्रणाली के तहत यदि कोई निवेशक शेयर बेचता है, तो व्यापार का निपटान आगामी दो कार्य दिवसों (T+2) के भीतर होता है और व्यापार को संभालने वाले मध्यस्थों को तीसरे दिन पैसा मिलता है तथा वह निवेशक के खाते में चौथे दिन पैसे हस्तांतरित करेगा।
      • अतः इस प्रणाली में निवेशक को तीन दिन बाद पैसा मिलता है।
    • ‘T+1’ प्रणाली में व्यापार का निपटान एक ही कार्य दिवस में हो जाता है और निवेशक को अगले दिन पैसा मिल जाएगा।
      • ‘T+1’ प्रणाली में हस्तांतरण हेतु बाज़ार सहभागियों को व्यापक पैमाने पर परिचालन या तकनीकी परिवर्तनों की आवश्यकता नहीं होगी और न ही यह विखंडन या निकासी अथवा निपटान पारिस्थितिकी तंत्र के लिये जोखिम का कारण बनेगा।
  • ‘T+1’ निपटान प्रणाली के लाभ:
    • कम निपटान समय: एक छोटा चक्र न केवल निपटान समय को कम करता है बल्कि उस जोखिम को संपार्श्विक बनाने के लिये आवश्यक पूंजी को भी कम करता है और मुक्त करता है
    • अस्थिर व्यापार में कमी: यह किसी भी समय बकाया अनसेटल्ड ट्रेडों की संख्या को भी कम कर सकता है तथा इस प्रकार यह क्लियरिंग कॉर्पोरेशन के लिये अनसेटल्ड एक्सपोज़र को 50% तक कम कर देता है।
      • निपटान चक्र जितना संकीर्ण होगा, प्रतिपक्ष दिवाला/दिवालियापन के लिये व्यापार के निपटान को प्रभावित करने हेतु समय चक्र उतना ही कम होगा।
    • अवरुद्ध पूंजी में कमी: इसके अतिरिक्त व्यापार के जोखिम को कवर करने के लिये सिस्टम में अवरुद्ध पूंजी, किसी भी समय शेष अनसुलझे ट्रेडों की संख्या के अनुपात में कम हो जाएगी।
    • प्रणालीगत जोखिमों में कमी: एक छोटा निपटान चक्र प्रणालीगत जोखिम को कम करने में मदद करेगा।
  • विदेशी निवेशकों की चिंताएँ:
    • विदेशी निवेशकों ने विभिन्न भौगोलिक टाइम ज़ोन से परिचालन से जुड़े मुद्दों (सूचना प्रवाह प्रक्रिया और विदेशी मुद्रा समस्याओं) पर चिंता व्यक्त की है।
    • T+1 प्रणाली के तहत दिन के अंत में उन्हें डॉलर के संदर्भ में भारत में अपने नेट एक्सपोज़र (Net Exposure) को हेज या बाधित करना भी मुश्किल होगा।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस

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