भारतीय दंड संहिता में नस्लीय भेदभाव विरोधी प्रावधान | 08 Aug 2017
संदर्भ
गृह मंत्रालय ने भारतीय दंड संहिता में दो सख्त नस्लीय भेदभाव विरोधी प्रावधानों को सम्मिलित करने के लिये कानून में संशोधन करने का प्रस्ताव राज्यों के समक्ष रखा था। केंद्र के इस प्रस्ताव पर मात्र चार राज्यों तथा तीन केंद्र शासित प्रदेश को छोड़कर शेष राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों ने अभी तक अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी है।
प्रमुख बिंदु
- गृह मंत्रालय के इस प्रस्तावित संशोधन पर उत्तर प्रदेश, मणिपुर, मेघालय और मिज़ोरम ने अपनी सहमति दी है।
- इससे पहले अंडमान-निकोबार, दादर और नगर हवेली और लक्षद्दीप भी केंद्र के इस प्रस्ताव से सहमत हो चुके हैं।
- 26 जुलाई को गृह राज्य मंत्री किरन रिजिजू ने राज्यसभा को बताया था कि उनका मंत्रालय नस्लीय अपराधों से निपटने के लिये आईपीसी की दो धाराओं (धारा 153ए और धारा 509ए ) में संशोधन करने का प्रस्ताव रखा है।
राज्य का विषय
- चूँकि प्रस्तावित संशोधन संविधान की समवर्ती सूची के तहत आता है, इसलिये इसमें राज्य सरकारों की राय प्राप्त करना आवश्यक है। इस मामले में राज्यों को इस साल फरवरी में पत्र भेजे गए थे।
बेजबरुआ समिति की सिफारिशें
- प्रस्तावित संशोधन पूर्वोत्तर के लोगों पर नस्लीय हमलों के मद्देनज़र फरवरी 2014 में केंद्र द्वारा गठित बेजबरुआ समिति की सिफारिशों पर आधारित है।
- बेजबरुआ समिति ने जुलाई 2014 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।
- गृह मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित मसौदा आईपीसी की धारा 153 सी के प्रावधान के तहत दोषी को पाँच साल तक कारावास एवं जुर्माना की सज़ा दी जाएगी।
- हालाँकि इसके दुरूपयोग की भी संभावनाएँ जताई जा रही हैं, विशेष रूप से आईपीसी की धारा 509ए को लेकर जिसके तहत किसी शब्द या इशारे को, जोकि एक अपराध है, साबित करना मुश्किल है।