साइलेंट हाइपोक्सिया | 06 May 2020

प्रीलिम्स के लिये:

साइलेंट हाइपोक्सिया, हाइपोक्सिया

मेन्स के लिये:

साइलेंट हाइपोक्सिया से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

COVID-19 से संक्रमित लोगों के इलाज़ में प्रयासरत दुनिया भर के चिकित्सक एक अज़ीब स्थिति का सामना कर रहे हैं। चिकित्सकों के अनुसार, COVID-19 से संक्रमित कुछ लोगों के रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा कम होने के बावज़ूद श्वसन संबंधी समस्याएँ परिलक्षित नहीं हो रही हैं।  

प्रमुख बिंदु:

  • चिकित्सकों का मत है कि लोगों में श्वसन संबंधी समस्याओं का परिलक्षित न होना ‘साइलेंट/हैप्पी हाइपोक्सिया’ (Silent/Happy Hypoxia) को इंगित करता है।
  • चिकित्सक और अन्वेषक डॉ. रिचर्ड लेविटन (Dr Richard Levitan) के अनुसार, COVID-19 से संक्रमित मरीज़ों में ‘कोविड निमोनिया’ की स्थिति ‘साइलेंट/हैप्पी हाइपोक्सिया’ के कारण उत्पन्न हो रही है।
  • कई चिकित्सक अब ‘कोविड निमोनिया’ जैसी घातक स्थिति से बचने के साधन के रूप में इसकी शुरुआती पहचान की वकालत कर रहे हैं। 

साइलेंट हाइपोक्सिया (Silent Hypoxia):

  • ‘साइलेंट/हैप्पी हाइपोक्सिया’ रक्त में ऑक्सीजन की कमी का एक ऐसा स्वरूप है जिसकी पहचान नियमित हाइपोक्सिया की तुलना में कठिन है।
  • COVID-19 से संक्रमित लोगों के रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा 80% से कम होने के बावज़ूद भी उनको साँस लेने में कोई तकलीफ नहीं हो रही है। 
  • चिकित्सकों के अनुसार, आपातकालीन वार्डों में कई मरीज़ों के रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा 50% से भी कम है। ऑक्सीजन की मात्रा कम होने की स्थिति में लोग अत्यधिक बीमार दिखने चाहिये परंतु साइलेंट हाइपोक्सिया के मामलों में ऐसा तब तक नहीं होता जब तक कि तीव्र श्वसन संकट जैसी स्थिति उत्पन्न नहीं हो जाती है। 

ऐसी स्थिति क्यों?

  • ‘द गार्जियन’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, साइलेंट हाइपोक्सिया के पश्चात् लोगों में श्वसन संबंधी समस्याएँ ऑक्सीजन की कमी के कारण नहीं बल्कि कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में वृद्धि के कारण हो रही हैं। यह समस्या उस समय होती हैं जब फेफड़े कार्बन डाइऑक्साइड गैस को निष्कासित करने में सक्षम नहीं होते हैं। 
  • डॉ. लेविटन के अनुसार, शुरुआती चरण में फेफड़े कार्बन डाइऑक्साइड निष्कासन तथा इसके निर्माण से बचाव में सक्षम प्रतीत होते हैं। इस प्रकार, रोगियों को श्वसन संबंधी समस्याएँ महसूस नहीं होती हैं।

हाइपोक्सिया (Hypoxia):

  • हाइपोक्सिया एक ऐसी स्थिति है जिसमें रक्त और शरीर के ऊतकों को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं होता है।
  • सामान्यतः हाइपोक्सिया पूरे शरीर या शरीर के कुछ हिस्से को प्रभावित कर सकता है।
  • अमेरिकी गैर-लाभकारी संगठन ‘मायो क्लिनीक’ के अनुसार, सामान्य तौर पर धमनियों में ऑक्सीजन की मात्रा 75-100 (mm Hg) तथा पल्स-ऑक्सीमीटर (Pulse-Oximeter) की माप 90-100% होता है। 
  • पल्स-ऑक्सीमीटर का 90% से कम होना चिंताजनक होता है। ऐसी स्थिति में पीड़ित व्यक्ति सुस्ती, भ्रम, मानसिक तौर पर अस्वस्थ महसूस करता है। पल्स-ऑक्सीमीटर की माप का स्तर 80% से कम होने से शरीर के महत्त्वपूर्ण अंग प्रभावित होते हैं।  

पल्स-ऑक्सीमीटर (Pulse-Oximeter): 

  • यह एक ऐसा यंत्र है जिसके माध्यम से मानव शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा का पता लगाया जाता है। 
  • इसे उँगलियों, नाक, कान अथवा पैरों की उँगलियों में क्लिप की तरह लगाया जाता है। इसमें लगे सेंसर रक्त में ऑक्सीजन के प्रवाह तथा रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा को पता लगाने में सक्षम होता है। 

Pulse-Oximeter

  • डॉ. रिचर्ड लेविटन के अनुसार, साइलेंट हाइपोक्सिया की प्रारंभिक जाँच हेतु पल्स-ऑक्सीमीटर मददगार साबित हो सकता है।

कोविड निमोनिया (Covid Pneumonia):

  • यह COVID-19 से संक्रमित लोगों के लिये एक ऐसी बीमारी है जो घातक साबित हो सकती है। कोविड निमोनिया के कारण फेफड़ों में ऑक्सीजन स्थानांतरित करने तथा सांस लेने की क्षमता प्रभावित होती है।
  • जब कोई व्यक्ति पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं ले पाता तथा पर्याप्त कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर नहीं निकाल पाता है, तो निमोनिया से मृत्यु भी हो सकती है।
  • क्योंकि यह वायरल है जो शरीर के छोटे अंगों के बजाय फेफड़ों को पूरी तरह से प्रभावित करता है।
  • कोविड निमोनिया के गंभीर मामलों में ऑक्सीजन का पर्याप्त संचालन सुनिश्चित करने हेतु वेंटिलेटर की भी आवश्यकता पड़ती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस