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शासन व्यवस्था

साझा पालन-पोषण

  • 24 Jan 2022
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCRC)।

मेन्स के लिये:

कस्टोडियल अधिकार, साझा पेरेंटिंग, कस्टोडियल अधिकारों पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय।

चर्चा में क्यों?

माता-पिता के विवाह से अलग होने की स्थिति में बच्चे की कस्टडी मांगना बच्चों के लिये एक बहुत ही दर्दनाक घटना है। यद्यपि तलाक के बाद माता-पिता अलग हो जाते हैं, लेकिन यह ‘बच्चे के सर्वोत्तम हित’ में नहीं है।

  • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2019 में फैसला सुनाया था कि 'एक बच्चे को अपने माता-पिता दोनों के स्नेह का अधिकार है'।
  • इस संदर्भ में ‘साझा पेरेंटिंग’ की अवधारणा बच्चे के लिये मददगार हो सकती है। हालाँकि, पुरातन कानूनों के कारण यह भारत में एक विकल्प नहीं है।
  • ‘साझा पेरेंटिंग’ का आशय उस स्थिति से है, जब बच्चों को माता-पिता के अलगाव के बाद माता-पिता दोनों के प्यार और मार्गदर्शन के साथ पाला जाता है।

प्रमुख बिंदु

  • 'बच्चे के सर्वोत्तम हितों' का आशय:
  • भारत में बच्चों की कस्टडी का निर्धारण करने वाले कानून:
    • वर्ष 1956 का हिन्दू अप्राप्तवयता और संरक्षकता अधिनियम (HMGA): 
      • इस अधिनियम में कहा गया है कि एक हिंदू नाबालिग लड़के या अविवाहित लड़की का नैसर्गिक अभिभावक (Natural Guardian) पिता और माता होंगे, बशर्ते कि एक नाबालिग की कस्टडी जिसकी पांँच वर्ष की उम्र पूरी नहीं हुई है सामान्यत मां के पास होगी। 
      • हालांँकि HMGH में कस्टडी अधिकार तय करने या न्यायालय द्वारा अभिभावक घोषित करने हेतु कोई स्वतंत्र, कानूनी या प्रक्रियात्मक तंत्र शामिल नहीं है।
    • संरक्षक और प्रतिपाल्य अधिनियम, 1890 (GWA)
      • यह बच्चे और संपत्ति दोनों के संबंध में एक व्यक्ति को बच्चे के 'अभिभावक' के रूप में नियुक्त करने से संबंधित है।
      • माता-पिता के बीच चाइल्ड कस्टडी, संरक्षकता और मुलाकातों के मुद्दों को GWA के तहत निर्धारित किया जाता है, अगर नैसर्गिक अभिभावक अपने बच्चे के लिये  एक विशेष अभिभावक के रूप में घोषित होना चाहते हैं।
      • GWA के तहत एक याचिका में माता-पिता के बीच विवाद होने पर, HMGA के साथ जोड़कर पढ़ा जाता है, अभिभावकता और कस्टडी एक माता-पिता के साथ दूसरे माता-पिता के मिलने या मुलाकत के अधिकारों के साथ निहित हो सकती है।
      • ऐसा करने में नाबालिग या "बच्चे के सर्वोत्तम हित" का कल्याण सर्वोपरि होगा।
  • सर्वोच्च न्यायालय के संबंधित निर्णय:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2017 में विवेक सिंह बनाम रोमानी सिंह मामले में ‘पेरेंटल एलीनेशन सिंड्रोम’ की अवधारणा पर प्रकाश डाला।
      • यह अपने माता-पिता के प्रति एक बच्चे के अनुचित तिरस्कार को संदर्भित करता है।
      • निर्णय में इसके "मनोवैज्ञानिक विनाशकारी प्रभावों" को रेखांकित किया गया।
    • वर्ष 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने ‘लहरी सखामुरी बनाम शोभन कोडाली मामले’ में कहा कि "बच्चे के सर्वोत्तम हित" अपने अर्थ में व्यापक हैं और "प्राथमिक देखभाल, के मामले में माँ का प्यार और देखभाल ही काफी नहीं है। 
    • वर्ष 2022 में वसुधा सेठी बनाम किरण वी. भास्कर मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि एक बच्चे का कल्याण माता-पिता का व्यक्तिगत या व्यक्तिगत कानूनी अधिकार ही नहीं बल्कि अभिरक्षा की लड़ाई में सर्वोपरि है। माता-पिता के अधिकारों पर बच्चे के कल्याण को प्राथमिकता मिलनी चाहिये।
  • साझा पालन-पोषण पर कानूनी राय:
    • वर्ष 2015 में भारतीय विधि आयोग की रिपोर्ट में भारत में संरक्षकता और अभिरक्षा कानूनों में सुधार के मुद्दे पर संयुक्त अभिरक्षा एवं साझा पालन-पोषण की सिफारिश की गई।
      • यह एक माता-पिता के साथ एकल बाल अभिरक्षा के विचार से असहमत था।
      • इसने संयुक्त अभिरक्षा के लिये HMGA और GWA में संशोधन हेतु और इस तरह की हिरासत, बाल सहायता और मुलाक़ात व्यवस्था से संबंधित दिशा-निर्देशों की विस्तृत सिफारिशें कीं।
    • भारत के विधि आयोग की रिपोर्ट 263, जिसका शीर्षक है बच्चों का संरक्षण (अंतर-देश निष्कासन और ध्यान) विधेयक, 2016 ने यूएनसीआरसी (UNCRC) के अनुसार हिरासत से संबंधित "बच्चों के सर्वोत्तम हितों" की रक्षा के लिये एक विधेयक प्रस्तुत करने की सिफारिश की है।
    • वर्ष 2018 में सरकार को सौंपी गई जस्टिस बिंदल कमेटी की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यूएनसीआरसी (UNCRC) के मद्देनज़र चाइल्ड कस्टडी से संबंधित मामलों में "बच्चों के सर्वोत्तम हित" सर्वोपरि हैं।

आगे की राह

  • एक बाल-केंद्रित मानवाधिकार न्यायशास्त्र (child-centric human rights jurisprudence) जो समय के साथ विकसित और इस सिद्धांत पर स्थापित किया गया है कि सार्वजनिक भलाई बच्चे के उचित विकास की मांग करती है,जो राष्ट्र का भविष्य है।
  • इसलिये समान अधिकारों के साथ साझा या संयुक्त पालन-पोषण बच्चे के इष्टतम विकास हेतु एक व्यवहार्य, व्यावहारिक, संतुलित समाधान हो सकता है।

स्रोत: द हिंदू

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