नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़


सामाजिक न्याय

पोक्सो अधिनियम की धारा-29

  • 05 Oct 2020
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये 

पोक्सो अधिनियम और उसकी धारा-29

मेन्स के लिये

भारत में बच्चों के विरुद्ध होने वाले अपराधों की स्थिति और उन्हें रोकने में पोक्सो अधिनियम की भूमिका

चर्चा में क्यों?

दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने एक हालिया निर्णय में कहा है कि लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (पोक्सो अधिनियम) की धारा-29 केवल तभी लागू होती है, जब आधिकारिक तौर पर ट्रायल की शुरुआत हो जाए, इस प्रकार आरोपियों के विरुद्ध आरोप तय किये जाने के पश्चात् ही अधिनियम की धारा-29 का प्रयोग किया जा सकता है।

प्रमुख बिंदु

अधिनियम की धारा-29

  • लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (पोक्सो अधिनियम) की धारा-29 के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति को अधिनियम की धारा-3, धारा-5, धारा-7 और धारा-9 के अधीन किसी अपराध को करने अथवा अपराध को करने का प्रयत्न करने के लिये अभियोजित किया गया है तो इस मामले की सुनवाई करने वाला न्यायालय तब तक यह उपधारणा (Presumption) करेगा कि ऐसे व्यक्ति ने वह अपराध किया है अथवा करने का प्रयत्न किया है, जब तक कि यह गलत साबित न हो जाए।

न्यायालय का अवलोकन

  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने पाया कि पोक्सो अधिनियम, 2012 के तहत कथित अपराधों के लिये जमानत की याचिका पर सुनवाई करते समय जमानत देने संबंधी सामान्य सिद्धांतों के अलावा कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण कारकों को ध्यान में रखना भी आवश्यक है।
  • जस्टिस अनूप जयराम की एक-सदस्यीय पीठ ने उल्लेख किया कि सामान्यतः न्यायिक व्यवस्था में ‘निरपराधता की उपधारणा’ (Presumption of Innocence) के सिद्धांत का पालन किया जाता है, अर्थात् सामान्य स्थिति में यह माना जाता है कि कोई भी अभियुक्त तब तक अपराधी नहीं है जब कि अपराध सिद्ध न हो जाए। जबकि पोक्सो अधिनियम, 2012 की धारा-29 इस सिद्धांत को पूर्णतः परिवर्तित कर देती है।
  • जस्टिस अनूप जयराम की एक-सदस्यीय पीठ ने पूर्व में पोक्सो अधिनियम से संबंधित मामलों में विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा दिये गए निर्णयों का उल्लेख करते हुए कहा कि ‘कतिपय अपराध के बारे में उपधारणा’ का सिद्धांत (धारा-29) तभी लागू होगा, जब अभियोजन पक्ष द्वारा उपधारणा (Presumption) के निर्माण हेतु सभी बुनियादी तथ्य प्रस्तुत कर दिये जाएंगे।
  • इसके मद्देनज़र दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि धारा-29 केवल तभी लागू होती है, जब अभियुक्त के विरुद्ध ट्रायल की शुरुआत हो जाए और सभी आरोप तय कर दिये जाएँ।
  • इस प्रकार यदि जमानत याचिका आरोप तय करने से पूर्व दायर की जाती है, तो वहाँ धारा-29 का प्रावधान लागू नहीं होगा।
  • साथ ही न्यायालय ने आरोप तय होने के पश्चात् जमानत याचिका पर फैसला लेने के लिये भी कुछ नए मापदंड स्थापित किये हैं। न्यायालय के अनुसार, साक्ष्यों की प्रकृति और गुणवत्ता के अतिरिक्त, अदालत कुछ वास्तविक जीवन संबंधी कारकों पर भी विचार करेगी।
    • इसके अलावा अब जमानत याचिका पर सुनवाई करने वाली अदालत इस बात पर भी विचार करेगी कि क्या पीड़ित के विरुद्ध अपराध दोहराया गया है अथवा नहीं।  

पृष्ठभूमि 

  • असल में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा पोक्सो अधिनियम, 2012 के तहत हिरासत में लिये गए एक 24-वर्षीय व्यक्ति की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए इस प्रश्न पर विचार किया जा रहा था कि क्या अधिनियम के अनुच्छेद-29 के तहत ‘कतिपय अपराध के बारे में उपधारणा’ के सिद्धांत को केवल ट्रायल के दौरान लागू किया जाएगा अथवा यह जमानत याचिका के समय भी लागू किया जाएगा।

धारा-29 की आलोचना

  • यद्यपि यह आवश्यक है कि न्यायिक प्रक्रिया को बच्चों के अनुकूल बनाया जाए, किंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि स्वयं को निरपराध सिद्ध करने का पूरा बोझ अभियुक्त पर डाल दिया जाए।
  • भारतीय संविधान में उल्लिखित मौलिक अधिकार यह सुनिश्चित करते हैं कि सभी के साथ एक समान व्यवहार किया जाए। समानता का अधिकार न केवल भेदभाव के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है, बल्कि राज्य के मनमाने या तर्कहीन कार्य के खिलाफ भी सुरक्षा प्रदान करता है। 
  • भारत के संविधान का अनुच्छेद-14 कानून के समक्ष समानता और कानून के समान संरक्षण को सुनिश्चित करता है।
  • इस प्रकार पोक्सो अधिनियम, 2012 कुछ विशिष्ट लोगों के समूह को ‘निरपराधता की उपधारणा’ (Presumption of Innocence) के सामान्य सिद्धांत से वंचित करके समानता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है।

स्रोत: द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow