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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

एनपीए की समस्या का समाधान

  • 17 Jul 2017
  • 5 min read

चर्चा में क्यों ?
गौरतलब है कि बैंकिंग विनियमन (संशोधन )विधेयक से प्रोत्साहित होकर भारतीय रिज़र्व बैंक वर्ष 2019 के मार्च तक लगभग 8 लाख करोड़ के खराब ऋणों के लिये प्रस्ताव लाने की अपेक्षा रखता है। इसके द्वारा गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों में कमी आएगी तथा बैंकों की वित्तीय अवस्था में सुधार होगा।

प्रमुख बिंदु

  • दरअसल, गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों की समस्या का समाधान वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही में ही करने का निर्णय एक स्वागत योग्य कदम है।
  • यद्यपि सम्पूर्ण एनपीए समस्या को दिवाला और दिवालियापन संहिता प्रस्ताव प्रक्रिया के माध्यम से सुलझाया जा सकता है परन्तु यह देखना भी आवश्यक होगा कि वे बैंकों की बैलेंस शीटों से कितनी जल्दी दूर किये जाते हैं।
  • गैर-निष्पादनकरी परिसम्पतियाँ बैंकों(मुख्यतः सार्वजानिक क्षेत्र के बैंक) के वित्तीय स्वास्थ्य पर एक बड़ा अवरोध हैं।
  • उदाहरण के लिये, वर्ष 2016-17 में 27 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 1.5 लाख करोड़ का परिचालन लाभ हुआ था परन्तु खराब ऋणों के प्रावधानीकरण के लिये मंज़ूरी देने के पश्चात इनका कुल परिचालन लाभ घटकर 574 करोड़ रूपए हो गया।
  • यदि बैंकों की बैलेंस शीट में अधिक विचलन देखने को मिला तो इसका यह तात्पर्य होगा कि बैंकों में नए कॉर्पोरेटों को ऋण देने की क्षमता नहीं है जो कि निजी क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने के लिये आवश्यक है।
  • यह ध्यान देने योग्य है कि मार्च 2017 में समाप्त होने वाली 16 माह की परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा से गैर-निष्पादनकारी संपत्तियों का पता चल चुका था और इसके बाद इस समस्या का समाधान करना भी आवश्यक हो गया था।

लाया गया था अध्यादेश

  • ध्यातव्य है कि इस वर्ष मई में राष्ट्रपति द्वारा अध्यादेश प्रख्यापित किया गया था। सरकार ने रिज़र्व बैंक को खराब ऋणों (जोकि उच्चतम स्तर पर पहुँच चुके हैं) में कमी लाने के लिये दिवालियापन कार्रवाई की शुरुआत के संबंध में ऋण लेने वालों को दिशा-निर्देश देने के लिये रिज़र्व बैंक को विस्तृत विधायी शक्तियाँ सौंपी हैं।
  • बैंकों ने निपटान योजनाओं अथवा सीबीआई, कैग और सीवीसी के डर से संपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों (asset reconstruction companies ) को खराब ऋण बेचकर गैर-निष्पादनकरी परिसम्पतियों की समस्या का समाधान करने में अनिच्छा जताई थी।
  • प्रमुख बैंकों को सीबीआई, कैग अथवा सीवीसी के विरुद्ध कुछ सावधानी बरतनी चाहियें चूँकि प्रमुख निर्णय (जिनमें बैंकों द्वारा नुकसान उठाना भी शामिल है) संस्थागत प्रक्रिया द्वारा लिये जाएंगे। 
  • बैंकिंग प्रस्ताव अधिनियम, 1949 में संशोधन के लिये विधेयक लाने के पश्चात ही रिज़र्व बैंक ने ‘अर्थव्यवस्था में तनावग्रस्त परिसंपत्तियों को पुनर्जीवित करने के लिये फ्रेमवर्क’ के अंतर्गत संयुक्त ऋणदाता फोरम (JLF) और सुधारात्मक कार्य योजना (CAP) में निर्णय लेने की प्रक्रिया को आसान बना दिया है।

क्या हैं गैर-निष्पादनकारी परिसम्पतियाँ?

  • गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों से तात्पर्य ऐसे ऋण से है जिसका लौटना संदिग्ध हो। 
  • बैंक अपने ग्राहकों को जो ऋण देता है वह उसे अपने खाते में संपत्ति के रूप में दर्ज करता है परन्तु यदि किसी कारणवश बैंक को यह आशंका होती है कि ग्राहक यह ऋण नहीं लौटा पाएगा तो ऐसी संपत्ति को ही गैर-निष्पादनकारी संपत्तियाँ कहा जाता है। 
  • यह किसी भी बैंक की वित्तीय अवस्था को मापने का पैमाना है। यदि इसमें वृद्धि होती है तो यह बैंक के लिये चिंता का विषय बन जाता है।
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