स्वायत्त संस्थानों का सुव्यवस्थीकरण | 21 Oct 2020

प्रिलिम्स के लिये: 

वित्त मंत्रालय, भारतीय वन्यजीव संस्थान, भारतीय वन प्रबंधन संस्थान, सलीम अली सेंटर फॉर ऑर्निथोलॉजी एंड नेचुरल हिस्ट्री

मेन्स के लिये: 

स्वायत्त  संस्थानों के सुव्यवस्थीकरण या विलय का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वित्त मंत्रालय ( Ministry of Finance)  द्वारा पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change- MoEFCC) के अंतर्गत कार्य करने वाले पाँच स्वायत्त संस्थानों को इससे अलग करने तथा दो अन्य संस्थानों का विलय करने की सिफारिश की गई है। इस प्रकार मंत्रालय के अधीन आने वाले 16 स्वायत्त संस्थानों की संख्या को घटाकर 9 किया जाना प्रस्तावित है।  

पृष्ठभूमि:

  • वित्त मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत की गई यह सिफारिश उस रिपोर्ट का हिस्सा है जिसे सामान्य वित्त नियम, 2017 के नियम 229 (Rule 229 of General Finance Rules, 2017) के तहत निर्धारित दिशा-निर्देशों के अनुसार तैयार किया गया है।
    • नियम 229 'स्वायत्त संगठनों की स्थापना के लिये  सामान्य सिद्धांतों' से संबंधित है।
    • रिपोर्ट का उद्देश्य न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन तथा  सार्वजनिक कोष के कुशल उपयोग को सुनिश्चित करने के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए स्वायत्त निकायों के सुव्यवस्थीकरण ( Rationalisation) के लिये  विशिष्ट एवं कार्रवाई योग्य सिफारिशें करना है।

MoEFCC के लिये की गई सिफारिशें:

  • भारतीय वन्यजीव संस्थान (Wildlife Institute of India-WII) देहरादून, भारतीय वन प्रबंधन संस्थान (Indian Institute of Forest Management- IIFM) भोपाल, भारतीय प्लाईवुड उद्योग अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान (Indian Plywood Industries Research & Training Institute) बंगलूरू, CPR पर्यावरण शिक्षा केंद्र, चेन्नई एवं  पर्यावरण शिक्षा केंद्र, अहमदाबाद को MoEFCC से विस्थापित करने की सिफारिश की गई है।
    • विस्थापन में दो मुख्य पहलुओं को शामिल किया जाना है: पहला, संस्था को प्रबंधन से अलग समयबद्ध तरीके से सरकारी सहायता प्रदान करना और दूसरा, संबंधित संस्थान/हितधारकों को उन्हें चलाने की अनुमति देना।
    • सरकार द्वारा तीन वर्ष की समयावधि तथा प्रत्येक वर्ष 25% की क्रमिक बजट कटौती के साथ विघटन की  सिफारिश की जाती है।
    • WII तथा  IIFM दोनों को डीम्ड विश्वविद्यालयों में परिवर्तित किया जा सकता है।
  • रिपोर्ट में सोसाइटी ऑफ इंटीग्रेटेड कोस्टल मैनेजमेंट ( Society of Integrated Coastal Management), नई दिल्ली के  नेशनल सेंटर फॉर सस्टेनेबल कोस्टल मैनेजमेंट ( National Centre for Sustainable Coastal Management ), तमिलनाडु में विलय करने की सिफारिश की गई है क्योंकि दोनों ही संस्थान तटीय प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिये समान भूमिका का निर्वहन करते हैं। इससे कार्यों के दौहराव से बचा जा सकेगा।
  • सलीम अली सेंटर फॉर ऑर्निथोलॉजी एंड नेचुरल हिस्ट्री (Salim Ali Centre for Ornithology and Natural History), तमिलनाडु जिसे MoEFCC मंत्रालय से सालाना 14 करोड़ रूपए प्राप्त होते हैं,  को मंत्रालय के साथ विलय करने की सिफारिश की गई है।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ( Central Pollution Control Board), केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण (Central Zoo Authority-CZA), राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority-NTCA), राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (National Biodiversity Authority ) जैसे सांविधिक निकायों को  MoEFCC से  वित्तीय सहायता एवं सहयोग मिलने की बात कही गई है।
    • इन निकायों को 'स्व-वित्तपोषित'(Self-financed) बनने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।

सराहनीय पहल:

  • यह पहली बार है कि इस तरह का ऑडिट उन संस्थानों के लिये किया गया है जिन्हें पूरा होने में लगभग चार वर्ष का समय लगा।
  • WII एवं अन्य संस्थानों को डीम्ड विश्वविद्यालयों के रूप में मान्यता प्राप्त होने से संस्थानों को अधिक पाठ्यक्रम शामिल करने एवं अधिक सुविधा प्राप्त करने की स्वतंत्रता होगी।

आलोचना:

  • संस्थानों में इस प्रकार का विघटन/अलगाव इनके समक्ष अनुसंधान के बजाय वित्तीय मुद्दों को लेकर  चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकता है।
    • पर्यावरण एक सार्वजनिक मुद्दा है और इसकी सुरक्षा के लिये अच्छे सार्वजनिक संस्थानों की आवश्यकता है।
  • इन संस्थानों का सरकार से अलगाव को  निजी हाथों में भेजने की दिशा में पहला कदम (The First Step Towards Sending Them into Private Hands) के रूप में देखा सकता है।

यदि सरकार को लगता है कि धन का उपयोग सही प्रकार से नही हो पा रहा है या संस्थान अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं, तो इसके लिये अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करने की आवश्यकता है क्योंकि इससे उन छात्रों के भविष्य पर प्रभाव पड़ेगा जो इन विशिष्ट विषयों का अध्ययन करने का सपना देखते हैं, वहीं दूसरी ओर  निजी विश्वविद्यालयों द्वारा ली जाने वाली उच्च फीस को वहन करना उनके लिये संभव नहीं है।

इस दिशा में अन्य संबंधित कदम:

  • हाल ही में कपड़ा मंत्रालय द्वारा  ‘अखिल भारतीय हथकरघा बोर्ड’(All India Handloom Board) और ‘अखिल भारतीय हस्तशिल्प बोर्ड’( All India Handicrafts Board) को समाप्त कर दिया गया  है।
  • वर्ष 2018 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा  स्वायत्त निकायों, ‘राष्ट्रीय आरोग्य निधि’ (Rashtriya Arogya Nidhi-RAN) और ‘जनसंख्या  स्थिरता कोष’ (Jansankhya Sthirata Kosh-JSK) को बंद करने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी गई थी तथा इनके कार्यों को ‘स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग’ (Department of Health & Family Welfare-DoHFW) में शामिल करने को कहा गया।

स्वायत्त निकाय:

  • इन निकायों की स्थापना दिन-प्रतिदिन के कार्यों को सरकारी  हस्तक्षेप के बिना, स्वतंत्रता एवं लचीलेपन के साथ करने की ज़रूरत को ध्यान में रखकर की जाती है।
  • इन्हें मंत्रालय/विभागों द्वारा संबंधित विषय के साथ स्थापित किया जाता है तथा अनुदान के माध्यम से पूर्ण या आंशिक रूप से सहायता प्रदान की जाती है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि ऐसे संस्थान अपने स्वयं के आंतरिक संसाधनों को किस सीमा तक उत्पन्न करते हैं।
    • ये अनुदान वित्त मंत्रालय द्वारा ज़ारी  निर्देशों के साथ-साथ संबंधित पदों एवं शक्तियों  इत्यादि के निर्देशों के माध्यम से विनियमित किये जाते हैं।
  • स्वायत्त/अनुदान प्राप्त निकायों के लिये  कुल वितरित राशि  799.55 बिलियन रुपए थी , जिसे वर्ष 2019-20  में बढ़ाकर 943.84 बिलियन रुपए कर दिया गया।
  • अधिकांश स्वायत्त संस्थान  सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत सोसाइटी के रूप में पंजीकृत हैं एवं कुछ मामलों में इन्हें विभिन्न अधिनियमों में निहित प्रावधानों के तहत वैधानिक संस्थानों के रूप में स्थापित किया गया है।
  • इन स्वायत्त संस्थानों की  सरकारी कार्यों में  प्रमुख भागीदारी (Stakeholder) होती है  क्योंकि नीतियों के लिये  रूपरेखा तैयार करने से लेकर अनुसंधान करने और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण इत्यादि में ये गतिविधियाँ शामिल हैं।
    • तकनीकी, चिकित्सा एवं उच्च शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थान इस श्रेणी में शामिल हैं।

आगे की राह: 

स्वायत्त निकायों के शासन की समीक्षा करने की आवश्यकता है, साथ ही इनके लिये एक समान प्रक्रिया को विकसित करने की ज़रूरत है। कई स्वायत्त निकाय सरकार और जनता के बीच कड़ी/इंटरफेस ( Interfaces) का कार्य करते हैं। इस प्रकार प्रत्येक मंत्रालय को अपने क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आने वाले  स्वायत्त निकायों की व्यापक समीक्षा करनी चाहिये। जिन कारणों एवं उद्देश्य को ध्यान में रखकर इन निकायों की स्थापना की गई है उन्हें एक समान उद्देश्य वाले संगठन के साथ विलय करने या फिर समाप्त करने की आवश्यकता है ताकि फिर से इन निकायों का नवीनीकरण किया जा सके।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस