रैट-होल कोयला खनन | 20 Dec 2018
संदर्भ
हाल ही में मेघालय के पूर्वी जयंतिया हिल्स ज़िले में एक रैट-होल कोयला खदान ढह गई जिसमें जिससे लगभग 15 लोगों की मृत्यु होने की आशंका जताई जा रही है। गौरतलब है कि प्रतिबंध के बावजूद रैट-होल खनन मेघालय में प्रचलित प्रथा बनी हुई है। आइये जानते हैं कि यह प्रथा असुरक्षित क्यों है और असुरक्षित होने के बावजूद इतने व्यापक स्तर पर क्यों अपनाई जाती है?
रैट-होल खनन क्या है?
- भारत में अधिकांश खनिज राष्ट्रीयकृत हैं और इनका निष्कर्षण सरकारी अनुमति के पश्चात् ही संभव है।
- किंतु उत्तर-पूर्वी भारत के अधिकांश जनजातीय क्षेत्रों में खनिजों का स्वामित्व व्यक्तिगत स्तर पर व समुदायों को प्राप्त है। मेघालय में कोयला, लौह अयस्क, चूना पत्थर व डोलोमाइट के विशाल निक्षेप पाए जाते हैं।
- जोवाई व चेरापूँजी में कोयले का खनन परिवार के सदस्यों द्वारा एक लंबी संकीर्ण सुरंग के रूप में किया जाता है, जिसे रैट-होल खनन कहते हैं।
- इसमें बहुत छोटी सुरंगों की खुदाई की जाती है, जो आमतौर पर केवल 3-4 फीट ऊँची होती हैं जिसमें प्रवेश कर श्रमिक (अक्सर बच्चे भी) कोयले का निष्कर्षण करते हैं।
रैट-होल खनन प्रथा पर प्रतिबंध
- राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal) ने मेघालय में 2014 से अवैज्ञानिक और असुरक्षित कोयला खदानों पर प्रतिबंध लगा रखा है।
पारिस्थितिकी
- एनजीटी के पास दायर की गई याचिका में असम दीमासा छात्र संघ और दीमा हसओ जिला समिति ने बताया था कि मेघालय में रैट-होल खनन ने कोपिली नदी (यह मेघालय और असम से होकर बहती है) को अम्लीय बना दिया है।
- एनजीटी ने अपने आदेश में एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि खनन क्षेत्रों के आसपास सड़कों का उपयोग कोयले के ढेर को जमा करने के लिये किया जाता है जो वायु, जल और मृदा प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत है।
- इस पूरे क्षेत्र में ट्रक और अन्य वाहनों के ऑफ-रोड आवागमन की वज़ह से क्षेत्र की पारिस्थितिकी को नुकसान पहुँचता है।
जीवन को भी खतरा
- एनजीटी के अनुसार, बरसात के मौसम में रैट-होल खनन की वज़ह से घटित काफी मामले संज्ञान में आते हैं। खनन क्षेत्रों में जल प्लावन की वज़ह से कर्मचारियों/श्रमिकों सहित कई अन्य व्यक्तियों की मौत हो जाती है।
किस हद तक हो रहा है रैट-होल खनन?
- उपलब्ध सरकारी आँकड़ों के मुताबिक, NGT द्वारा प्रतिबंध के आदेश से पहले मेघालय का वार्षिक कोयला उत्पादन करीब 6 मिलियन टन था।
- ऐसा माना जाता है कि इस उत्पादन का ज़्यादातर हिस्सा रैट-होल खनन प्रथा द्वारा प्राप्त होता था।
- एनजीटी ने केवल रैट-होल खनन पर ही नहीं बल्कि सभी ‘अवैज्ञानिक और अवैध खनन’ पर भी प्रतिबंध लगाया है।
- मेघालय में खनन हेतु पहले से ही ‘मेघालय खान और खनिज नीति, 2012’ लागू है किंतु खान और खनिज (विनियमन और विकास) अधिनियम सहित तमाम केंद्रीय कानूनों के तहत मंज़ूरी तथा अनुमति लेनी आवश्यक होती है।
राज्य का रुख क्या है?
- NGT ने पाया कि मेघालय की 2012 की नीति रैट-होल खनन की समस्या का समाधान करने में असफल है क्योंकि यह नीति रैट-होल खनन की समस्या का समाधान करने की जगह इसे बढ़ावा देने की बात करती है।