भारत के ऋण-GDP अनुपात में वृद्धि | 15 Oct 2020
प्रिलिम्स के लियेऋण-GDP अनुपात, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष मेन्स के लियेऋण-GDP अनुपात में वृद्धि का कारण और इसके परिणाम |
चर्चा में क्यों?
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF) के अनुसार, महामारी के कारण सार्वजनिक व्यय में हो रही वृद्धि के परिणामस्वरूप इस वर्ष भारत का ऋण-GDP अनुपात (Debt-to-GDP Ratio) अथवा सार्वजनिक ऋण अनुपात 90 प्रतिशत तक रह सकता है।
प्रमुख बिंदु
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के मुताबिक, इस वर्ष महामारी के प्रभाव के परिणामस्वरूप भारत के सार्वजनिक ऋण में 17 प्रतिशत अंकों (Percentage Points) की बढ़ोतरी हो सकती है, जिससे भारत का ऋण-GDP अनुपात 90 प्रतिशत तक पहुँच सकता है।
- वर्ष 2021 तक भारत के ऋण-GDP अनुपात में स्थिरता आ सकती है।
- ध्यातव्य है कि वर्ष 1991 से अब तक भारत का ऋण-GDP अनुपात तकरीबन स्थिर ही रहा है और बीते एक दशक में यह औसतन 70 प्रतिशत दर्ज किया गया है, किंतु इस वर्ष इसमें बढ़ोतरी होने की संभावना है।
क्या होता है सार्वजनिक ऋण अनुपात?
- ऋण-GDP अनुपात अथवा सार्वजनिक ऋण अनुपात किसी भी देश के सकल घरेलू उत्पाद के साथ ऋण का अनुपात होता है। इस अनुपात का उपयोग किसी देश की ऋण चुकाने की क्षमता का आकलन करने के लिये किया जाता है।
- सरल शब्दों में कहें तो ऋण-GDP अनुपात किसी देश के सार्वजनिक ऋण की तुलना उसके वार्षिक आर्थिक उत्पादन से करता है।
- किसी भी देश द्वारा लिये गए ऋण की तुलना उसके उत्पादन से करके यह अनुपात उस देश के ऋण भुगतान करने की क्षमता को इंगित करता है।
- इसे प्रायः प्रतिशत के रूप में चिह्नित किया जाता है।
क्या बताता है ऋण-GDP अनुपात?
- ऋण-GDP अनुपात या सार्वजनिक ऋण अनुपात किसी देश की ऋण चुकाने की क्षमता को दर्शाता है। अतः जिस देश का ऋण-GDP अनुपात जितना अधिक होता है, उसे अपने सार्वजनिक ऋण को चुकाने में उतनी ही अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
- इस प्रकार एक देश का ऋण-GDP अनुपात जितना अधिक बढ़ता है, उसके डिफाॅल्ट (Default) होने की संभावना उतनी अधिक हो जाती है और जब पूरा देश डिफाॅल्ट हो जाता है अथवा अपना ऋण चुकाने में असमर्थ होता है तो प्रायः घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में वित्तीय अस्थिरता आ जाती है।
- यही कारण है कि सभी देशों की सरकारों द्वारा अपने ऋण-GDP अनुपात को हर स्थिति में कम करने के प्रयास किये जाते हैं।
- हालाँकि कई अर्थशास्त्री मानते हैं कि अपनी स्वयं की मुद्रा छापने में सक्षम संप्रभु देश कभी भी डिफाॅल्ट नहीं हो सकते हैं, क्योंकि वे अधिक-से-अधिक मुद्रा छाप कर अपने ऋण का भुगतान कर सकते हैं।
- किंतु यह नियम उन देशों पर लागू नहीं होता है जो अपनी स्वयं की मौद्रिक नीति को नियंत्रित नहीं करते हैं, जैसे कि यूरोपीय संघ (EU) में शामिल देश, जिन्हें नई मुद्रा प्राप्त करने के लिये यूरोपीय सेंट्रल बैंक (ECB) पर निर्भर रहना पड़ता है।
- विश्व बैंक द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, लंबी अवधि तक 77 प्रतिशत से अधिक ऋण-GDP अनुपात आर्थिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
ऋण-GDP अनुपात में बढ़ोतरी का कारण
- युद्ध, आर्थिक अस्थिरता, आपदा और अशांति की स्थिति में सरकारों के लिये इस अनुपात को स्थिर रखना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
- इस प्रकार की स्थिति में सरकारें अक्सर विकास और कुल मांग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अधिक ऋण लेती हैं जिससे उन देशों का ऋण-GDP अनुपात बढ़ता जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) 189 देशों का एक संगठन है, जो कि वैश्विक मौद्रिक सहयोग को बढ़ावा देने, वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को सुविधाजनक बनाने, रोज़गार के अवसर सृजित करने, सतत् आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और विश्व भर में गरीबी को कम करने की दिशा में कार्य कर रहा है।
- वर्ष 1945 में गठित यह संगठन अपने 189 सदस्य देशों द्वारा शासित है और यह उन्हीं सदस्य देशों के प्रति जवाबदेह है।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) का प्राथमिक उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली की स्थिरता सुनिश्चित करना है।