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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

समुद्र के रास्ते ईरान से गैस पाइपलाइन पर विचार

  • 06 Sep 2017
  • 3 min read

चर्चा में क्यों ? 

यदि ईरान से समुद्र के रास्ते पाइपलाइन के द्वारा प्राकृतिक गैस का आयात किया जाए तो यह वर्तमान में जहाज़ों द्वारा आयातित एल.एन.जी. (LNG) की तुलना में सस्ता और सुरक्षित दोनों होगा। यह कहना है दक्षिण एशिया गैस एंटरप्राइज प्राइवेट लि. (South Asia Gas Enterprise Pvt. Ltd. – SAGE ) का जिसने इस विषय पर अध्ययन किया है।  

प्रस्तावित गैस पाइपलाइन की विशेषताएँ 

  • इसकी लंबाई - 1300 किलोमीटर।  
  • निर्माण लागत - 4 अरब डॉलर। 
  • तैयार होने की अवधि- दो वर्ष।     
  • बचत - प्रतिवर्ष 1 अरब डॉलर। 
  • प्रस्तावित रूट - ईरान – ओमान - समुद्र के नीचे से गुजरात तक। 

प्रमुख बिंदु 

  • फिलहाल जहाज़ों के माध्यम से आयातित एल.एन.जी. (Liquefied Natural Gas-LNG) की लागत लगभग 7.50 डॉलर प्रति मिलियन ब्रिटिश थर्मल इकाई (per million British thermal unit) पड़ती है। लेकिन समुद्र के नीचे से इसे लाने की लागत 5 से 5.50 डॉलर प्रति मिलियन ब्रिटिश थर्मल यूनिट पड़ेगी।  
  • दक्षिण एशिया गैस एंटरप्राइज प्राइवेट लि. चाहती है कि भारत सरकार इस प्रस्ताव का समर्थन करे और अनुबंध के लिये गैस क्रेताओं की सहायता करे।  
  • इस पाइपलाइन के बन जाने से प्रतिदिन 31.5 मिलियन मानक क्यूबिक मीटर गैस का आयात किया जा सकेगा।  

 ईरान-भारत गैस पाइपलाइन

  • इस गैस पाइपलाइन को वर्ष 2007 से अधर में लटकी ईरान-पाकिस्तान-भारत गैस पाइपलाइन के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।
  • उल्लेखनीय है कि सुरक्षा और वाणिज्यिक चिंताओं का हवाला देते हुए भारत इस 1,036 किलोमीटर लंबी ईरान-पाकिस्तान-भारत गैस पाइपलाइन पर वार्ता में भाग नहीं ले रहा है। हालाँकि वह आधिकारिक तौर पर 7.6 अरब डॉलर की इस परियोजना की वार्ता से अभी तक बाहर नहीं हुआ है।
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