प्रीलिम्स फैक्ट्स : 21 मार्च, 2018 | 21 Mar 2018

बीआईआरएसी का छठा स्थापना दिवस

20 मार्च को जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (Biotechnology Industry Research Assistance Council-BIRAC) द्वारा नई दिल्ली में अपना छठा स्थापना दिवस मनाया गया।

  • इस वर्ष का विषय है 'निरंतर नवाचार-एक बाज़ारोन्मुख मार्ग'।
  • बीआईआरएसी ने किफायती उपकरणों या किफायती निदान से लेकर उपचार तक के लिये, अपने आविष्कारों और प्रौद्योगिकी से जो मदद पहुँचाई है, वे भारत ही नहीं बल्कि उसकी सीमाओं से आगे भी स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति को बदलने में बड़ी भूमिका निभाएंगे।
  • छह वर्षों के दौरान, बीआईआरएसी ने देश भर में 650 परियोजनाओं, 500 से अधिक स्टार्ट-अप और उद्यमों तथा 30 इन्क्यूबेटर शुरु करने में मदद की है, जिसके परिणामस्वरूप 100 से अधिक उत्पादों और तकनीकों को 150 बौद्धिक संपदा अधिकारों का संरक्षण प्राप्त हो सका है।
  • बीआईएआरएसी अपनी विस्तृत श्रृंखला के माध्यम से नवाचार के लिये लक्षित धन की उपलब्धता, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की सुविधा और बौद्धिक संपदा प्रबंधन के लिये  सहायता प्रदान करता है।
  • बीआईआरएसी की 10 से अधिक प्रमुख योजनाएँ हैं जो जैव प्रौद्योगिकी विभाग के वित्तपोषण द्वारा समर्थित हैं और अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों, जैसे- बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, नेस्टा, वेलकम ट्रस्ट और यूएसएड, के साथ 7 सहयोगी वित्तपोषित कार्यक्रमों के ज़रिये चलाई जा रही हैं।

विश्व का पहला विश्‍वसनीय डिजिटल भंडार

हाल ही में संस्‍कृति मंत्रालय की राष्ट्रीय सांस्कृतिक दृश्‍य-श्रव्‍य अभिलेखागार (एनसीएए) परियोजना को विश्‍व के पहले विश्‍वसनीय डिजिटल भंडार का प्रमाण-पत्र प्राप्‍त हुआ है। इंदिरा गांधी राष्‍ट्रीय कला केंद्र (Indira Gandhi National Centre for the Arts -IGNCA) द्वारा कार्यान्वित इस परियोजना को ब्रिटेन की संस्‍था, प्राइमरी ट्रस्‍टवर्दी डिजिटल रिपॉज़िटरी ऑथराइज़ेशन बॉडी लिमिटेड (Primary Trustworthy Digital Repository Authorisation Body Ltd.-PTAB) ने आईएसओ 16363 : 2012 प्रमाण-पत्र दिया है।

  • देश भर के 25 शहरों में किये गए सर्वेक्षण के आधार पर अगले पाँच वर्षों में इस भंडार में 3 लाख घंटों की ऑडियो विज़ुअल सामग्री को एकीकृत किया जाएगा।
  • एनसीएए का मूल उद्देश्‍य ऑडियो विज़ुअल सामग्री के रूप में विद्यमान भारत की सांस्‍कृतिक विरासत की पहचान करना और इसे डिजिटल माध्‍यम से संरक्षित करना है। 
  • मार्च 2018 तक 30,000 घंटों की अप्रकाशित तथा गैर व्‍यवसायीकृत ऑडियो विज़ुअल सामग्री को ऑनलाइन उपलब्‍ध कराया जाएगा। इनमें से 15,000 घंटों की ऑडियो विज़ुअल सामग्री को ऑनलाइन उपलब्‍ध करा दिया गया है।
  • एनसीएए का पायलट डिजिटल भंडार, पुणे की संस्‍था सी-डेक की सहयोगी सेंटर ऑफ एक्‍सी‍लेंस फॉर डिजिटल प्रि‍ज़र्ववेशन के सहयोग से तैयार किया गया है।
  • इसका कार्यान्‍वयन ओपन आर्किवल इन्‍फोरमेशन सिस्‍टम (ओएआईएस) संदर्भ मॉडल आईएसओ 14721 : 2012 के निर्देशों के तहत किया गया है।
  • वर्तमान में पूरे देश में एनसीएए की 21 सहयोगी संस्‍थाएँ कार्यरत हैं। इनमें 11 सरकारी और 10 गैर-सरकारी सांस्‍कृतिक संगठन हैं।
  • परियोजना में अंतर्राष्‍ट्रीय मानकों यथा-ओएआईएस मॉडल तथा इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ साउंड एंड ऑडियो विज़ुअल आर्काइव (आईएएसए) का अनुपालन किया गया है।

इंदिरा गांधी राष्‍ट्रीय कला केंद्र

इंदिरा गांधी राष्‍ट्रीय कला केंद्र की स्‍थापना भारत सरकार द्वारा की गई है। भारतीय कलाओं के सभी आयामों पर शोध करने की यह अग्रणी संस्‍था है। भारत सरकार द्वारा गठित आईजीएनसीए कला, मानविकी तथा सांस्‍कृतिक विरासत के क्षेत्र में डेटा बैंक बनाने के लिये एक नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है।

  • इस केंद्र को यूनेस्‍को द्वारा मान्‍यता दी गई है ताकि यह दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में कला, सांस्‍कृतिक विरासत और जीवन पद्धति के संदर्भ में क्षेत्रीय डेटा बैंक विकसित कर सके। इन कार्यों के लिये केंद्र आधुनिकतम तकनीक का उपयोग करता है।

उद्देश्‍य

  • कला, विशेष रूप से लिखित, मौखिक और दृश्यात्मक स्रोत सामग्रियों के लिये प्रमुख संसाधन केंद्र के रूप में सेवा करना।
  • कला तथा मानविकी से संबंधित संदर्भ कार्य, शब्दावलियाँ, शब्दकोष और विश्वकोशों के लिये अनुसंधान एवं प्रकाशन कार्यक्रम संचालित करना।
  • व्यवस्थित वैज्ञानिक अध्ययनों और जीवंत प्रस्तुतियों के लिये महत्त्वपूर्ण संग्रह के साथ आदिवासी तथा लोक कला प्रभाग की स्थापना करना।
  • प्रदर्शन, प्रदर्शनियों, मल्टी-मीडिया प्रोजेक्शन, सम्मेलन, संगोष्ठियों और कार्यशालाओं के माध्यम से पारंपरिक तथा समकालीन, विविध कलाओं के बीच रचनात्मक एवं विवेचनात्मक संवाद हेतु मंच प्रदान करना।
  • आधुनिक विज्ञान और कला तथा संस्कृति के बीच बौद्धिक समझ के अंतराल को पाटने की दृष्टि से दर्शन, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में कला तथा वर्तमान विचारों के बीच संवाद को बढ़ावा देना।
  • भारतीय लोकाचार के लिये अधिक प्रासंगिक अनुसंधान कार्यक्रम एवं कला प्रशासन के नमूने तैयार करना।
  • विविध सामाजिक स्तरों, समुदायों और क्षेत्रों के बीच पारस्परिक संवाद के जटिल जाल में रचनात्मक तथा गतिशील कारकों पर प्रकाश डालना।
  • राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के साथ नेटवर्क को बढ़ावा देना।
  • कला, मानविकी तथा संस्कृति से संबंधित अनुसंधान संचालित करना।

शीत संलयन (Cold Fusion)

शीत संलयन के अंतर्गत जब हाइड्रोजन जिर्कोनियम, निकल और पैलेडियम जैसी विभिन्न धातुओं के साथ निम्न ताप पर संपर्क में आता है तो ऊर्जा उत्पन्न होती है।

  • इसे संघनित पदार्थ नाभिकीय विज्ञान (Condensed Matter Nuclear Science-CMNS) अथवा निम्न ऊर्जा की नाभिकीय अभिक्रिया (Low-Energy Nuclear Reactions-LENR) भी कहा जाता है।
  • शीत संलयन अथवा कोल्ड फ्यूज़न के तहत हानिकारक विकिरण, जटिल उपकरण और अत्यधिक उच्च तापमान तथा दाब के बिना नाभिकीय ऊर्जा उत्पादित करने का प्रयास किया जाता है।
  • लेकिन, इस अभिक्रिया की सुसंगत व्याख्या करने वाला कोई निश्चित सिद्धांत नहीं है, इसलिये इसे अनियमित उष्मा प्रभाव (Anomalous Heat Effect-AHE) भी कहा जाता है। 
  • शीत संलयन में किसी भी रेडियोएक्टिव सामग्री का उपयोग नहीं किया जाता है। हाइड्रोजन का प्रयोग करके बिना कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के स्वच्छ ऊर्जा पैदा की जा सकती है।
  • LENR अभिक्रियाओं में हाइड्रोजन की केवल छोटी मात्रा में खपत होती है और खर्च होने पर धातु का पुन: उपयोग किया जा सकता है।
  • अमेरिका, जापान, चीन, रूस, इटली, फ्राँस और यूक्रेन में LENR पर अनुसंधान कार्य चल रहा है। वर्तमान में भारत में निम्नलिखित तीन रिसर्च ग्रुप शीत संलयन पर अनुसंधान कर रहे है-

♦ IIT-कानपुर में निम्न तापमान पर तत्त्वों के ट्रांसम्युटेशन पर कार्य किया जा रहा है।
♦ IIT-बॉम्बे में NTPC द्वारा ऐसे ही एक प्रोजेक्ट का वित्तीयन किया जा रहा है।
♦ बंगलूरु में स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान (S-Vyasa) के ऊर्जा अनुसंधान केंद्र में निकल धातु की सतह पर हाइड्रोजन में संलयन को ट्रिगर करने पर कार्य किया जा रहा है जिसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने वित्पोषण को मंजूरी दी है।