सामाजिक न्याय
पोषण अभियान और आवंटित धन का उपयोग
- 31 Dec 2019
- 6 min read
प्रीलिम्स के लिये:
पोषण अभियान और संबंधी आँकड़े
मेन्स के लिये:
पोषण अभियान के प्रभाव और देश में कुपोषण की समस्या
चर्चा में क्यों?
संसद के हालिया सत्र में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, देश के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने वर्ष 2017 से अभी तक पोषण अभियान (राष्ट्रीय पोषण मिशन) के तहत आवंटित कुल धन का लगभग 30 प्रतिशत ही प्रयोग किया है।
- मिज़ोरम, लक्षद्वीप, हिमाचल प्रदेश, मेघालय और बिहार के अतिरिक्त अन्य किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश ने विगत तीन वर्षों में आवंटित राशि के आधे हिस्से का भी उपयोग नहीं किया।
प्रमुख बिंदु
- पोषण अभियान के तहत आवंटित धन के उपयोग के मामले में सबसे अच्छा प्रदर्शन मिज़ोरम का रहा जिसने अपने लिये आवंटित कुल धन का लगभग 66 प्रतिशत हिस्सा प्रयोग किया। ज्ञात हो कि अभियान के तहत मिज़ोरम को तीन वर्षों में 1979.03 लाख रुपए दिये जाए जिसमें से उसने कुल 1310.52 लाख रुपए प्रयोग किये।
- वहीं इस मामले में सबसे खराब प्रदर्शन पंजाब का रहा जिसने कुल आवंटित धन का मात्र 0.45 प्रतिशत धन ही उपयोग किया। पंजाब को तीन वर्षों की अवधि में कुल 6909.84 लाख रुपए जारी किये गए जिसमें से उसने मात्र 30.88 लाख रुपए प्रयोग किये।
- विदित है कि ओडिशा और पश्चिम बंगाल ने अब तक अपने-अपने राज्यों में इस योजना को कार्यान्वयित नहीं किया है। हालाँकि ओडिशा सरकार ने हाल ही में राज्य के अंतर्गत अभियान के कार्यान्वयन को मंज़ूरी दे दी थी, परंतु पश्चिम बंगाल में अभी भी योजना का क्रियान्वयन बाकी है।
- विशेषज्ञों का मानना है की फंड के उपयोग को लेकर मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत आँकड़े पोषण अभियान की एक गंभीर तस्वीर प्रस्तुत करते हैं।
पोषण अभियान
(POSHAN Abhiyaan)
- दिसंबर 2017 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने देशभर में कुपोषण की समस्या को संबोधित करने हेतु पोषण अभियान की शुरुआत की थी।
- अभियान का उद्देश्य परिणामोन्मुखी दृष्टिकोण के माध्यम से देश भर के छोटे बच्चों, किशोरियों और महिलाओं में कुपोषण तथा एनीमिया को चरणबद्ध तरीके से कम करना है।
- इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु अभियान के तहत राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों के सभी ज़िलों को शामिल किया गया है।
- पोषण अभियान या राष्ट्रीय पोषण मिशन की अभिकल्पना नीति आयोग द्वारा ‘राष्ट्रीय पोषण रणनीति’ के तहत की गई है। इस रणनीति का उद्देश्य वर्ष 2022 तक “कुपोषण मुक्त भारत” का निर्माण करना है।
- इस अभियान का लक्ष्य लगभग 9046.17 करोड़ रुपए के बजट के साथ देश भर के 10 करोड़ लोगों को लाभ पहुँचाना है।
- अभियान की कुल लागत का 50 प्रतिशत हिस्सा बजटीय समर्थन के माध्यम से दिया जा रहा है, जबकि शेष 50 प्रतिशत हिस्सा विश्व बैंक तथा अन्य बहुपक्षीय विकास बैंकों द्वारा दिया जा रहा है।
- बजटीय समर्थन के माध्यम से दिये जा रहे हिस्से को तीन भागों में बाँटा गया है: (1) पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों के लिये 90:10 जिसमें 90 प्रतिशत केंद्र द्वारा दिया जाएगा 10 प्रतिशत राज्यों द्वारा (2) बिना विधायिका के केंद्रशासित प्रदेशों कि स्थिति में 100 प्रतिशत केंद्र द्वारा दिया जाएगा (3) अन्य राज्यों की स्थिति में 60:40 जिसमें 60 प्रतिशत केंद्र द्वारा दिया जाएगा और 40 प्रतिशत राज्यों द्वारा।
अभियान का प्रभाव
- हालाँकि पोषण अभियान के परिणामों को कार्यक्रम की स्वीकृत अवधि पूरी होने के बाद ही जाना जा सकता है, परंतु इस संदर्भ में व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (Comprehensive National Nutrition Survey-CNNS) के आँकड़ों पर गौर किया जा सकता है।
- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय तथा यूनिसेफ (UNICEF) द्वारा आयोजित व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण के आँकड़ों के अनुसार, 5 वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों में से 34.7% बच्चे स्टंटिंग अर्थात् कद न बढ़ने की समस्या का सामना कर रहे हैं, वहीं इसी आयु वर्ग के 33.4% बच्चे अल्प-वज़न की समस्या से जूझ रहे हैं।
आगे की राह
- पोषण अभियान के तहत आवंटित धन के उपयोग संबंधी आँकड़े स्पष्ट रूप से इस अभियान के प्रति राज्य सरकारों की गैर-ज़िम्मेदारी प्रदर्शित करते हैं।
- देशभर में कुपोषण और एनीमिया जैसी गंभीर समस्याओं से निपटने के लिये एक सक्रिय तंत्र की आवश्यकता है और राज्य सरकारों के सहयोग के बिना इस तंत्र का निर्माण संभव नहीं है।
- अतः आवश्यक है की राज्य सरकारें इस ओर गंभीरता से ध्यान दें ताकि इस समस्या को जल्द-से-जल्द समाप्त किया जा सके।