नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़


कृषि

वर्षा आधारित कृषि के खिलाफ नीतिगत पूर्वाग्रह

  • 18 Feb 2019
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत में एक वर्षा आधारित कृषि मानचित्र तैयार किया गया। इसके अंतर्गत वर्षा आधारित क्षेत्रों में व्याप्त कृषि जैव विविधता और सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का विवरण देते हुए नीतिगत पूर्वाग्रहों का दस्तावेज़ीकरण करने का प्रयास किया गया है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • हाल ही में जारी कृषि मानचित्र में वर्षा आधारित क्षेत्रों में व्याप्त कृषि जैव विविधता और सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के साथ-साथ उन नीतिगत पूर्वाग्रहों का दस्तावेज़ीकरण किया गया है, जो इन क्षेत्रों में लोगों को खेती करने में असफल बना रहे हैं।
  • भारत में पाँच में से तीन किसान सिंचाई के बजाय वर्षा जल का उपयोग कर फसलों का उत्पादन करते हैं। हालाँकि इस तरह से उनका अपनी भूमि में प्रति हेक्टेयर सरकारी निवेश 20 गुना तक कम हो सकता है।
  • ऐसे किसानों की फसलों की सरकारी खरीद प्रमुख सिंचित भूमि की फसलों का सिर्फ एक भाग है और सरकार की कई प्रमुख कृषि योजनाएँ उन्हें लाभान्वित करने के अनुरूप नहीं हैं।

सरकार की नीतियाँ

  • राष्ट्रीय वर्षा क्षेत्र प्राधिकरण के CEO जो वर्तमान में किसानों की आय दोगुनी करने हेतु बनाई गई सरकारी समिति के प्रमुख भी हैं, इन्होने बताया कि वर्षा आधारित क्षेत्रों के किसानों की अधिक उपेक्षा हुई है जो इन क्षेत्रों में किसानों की कम आय का महत्त्वपूर्ण कारण है।
  • एक सम्मेलन के दौरान इन्होंने स्पष्ट किया कि वर्षा आधारित क्षेत्रों में किसानों को सिंचित क्षेत्रों वाले किसानों की तुलना में लगभग 40% कम आय प्राप्त होती है।
  • रिवाइटलाइजिंग रेनफेड एग्रीकल्चर (Revitalising Rainfed Agriculture-RRA) नेटवर्क के समन्वयक जिन्होंने यह मानचित्र प्रकाशित किया है ने किसानों की आय में असमानता के लिये सरकार की नीति और उसके व्यय में भेदभाव होना बताया है।
  • सिंचित भूमि वाले क्षेत्रों में बड़े बांधों और नहर नेटवर्क के माध्यम से प्रति हेक्टेयर 5 लाख का निवेश प्राप्त होता है, जबकि वर्षा आधारित भूमि में वाटरशेड प्रबंधन का खर्च केवल 18,000-25,000 है। जो यह दर्शाता है कि उपज में अंतर निवेश के अंतर के अनुपात में नहीं है।
  • इसी प्रकार जब उपज की खरीद देखी गई तो पाया गया कि सरकार ने 2001-02 तथा 2011-12 के दशक में गेहूं और चावल पर 5.4 लाख करोड़ रुपए खर्च किये। जबकि मोटे अनाज जो वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाए जाते हैं की खरीद पर उसी अवधि में 3,200 करोड़ रुपए खर्च किये गए।
  • बीज, उर्वरक सब्सिडी और मृदा स्वास्थ्य कार्ड जैसी फ्लैगशिप सरकारी योजनाओं को सिंचित क्षेत्रों के लिये ही बनाया गया है जो कि वर्षा आधारित क्षेत्रों में भी बिना किसानों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखे विस्तृत कर दिया गया है।
  • उदाहरण के लिये सरकार योजना द्वारा अधिसूचित बहुत से संकर बीजों को उच्च पैदावार प्राप्त करने के लिये समय पर पानी, उर्वरक और कीटनाशक पदार्थों की बहुत आवश्यकता होती है जिसका वर्षा आधारित किसानों के लिये कोई महत्त्व नही हैं। सरकार द्वारा अब तक स्वदेशी बीजों को प्राप्त करने या जैविक खाद को सब्सिडी देने की कोई व्यवस्था नहीं की गई है।

निष्कर्ष

  • वर्षा आधारित क्षेत्र के किसानों के लिये अनुसंधान और प्रौद्योगिकी पर ध्यान देने तथा उत्पादन हेतु समर्थन प्रदान करने के लिये सिंचित क्षेत्रों वाले किसानों से ज़्यादा संतुलित दृष्टिकोण अपनाए जाने की आवश्यकता है।
  • वर्तमान समय में किसानों की मदद करने के लिये आय समर्थन महत्वपूर्ण है, साथ ही भविष्य के लिये बेहतर प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
  • वर्तमान में हर कोई खेती करने के बजाय व्यवसाय करने में सहज महसूस करता है। आने वाले समय में यदि वर्षा आधारित क्षेत्रों में बीज, मिट्टी, पानी की समस्याओं का समाधान नहीं किया जाता है तो किसान कृषि कार्य छोड़ देंगे।

स्रोत – द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow