भागीदारी गारंटी योजना | 25 Sep 2019

चर्चा में क्यों?

भारत के खाद्य सुरक्षा नियामक प्रमुख ने यह आशा व्यक्त की है कि केंद्रीय कृषि मंत्रालय की भागीदारी गारंटी योजना (Participatory Guarantee Scheme-PGS) अधिक-से-अधिक किसानों को जैविक फसल उगाने के लिये प्रोत्साहित करेगी।

भागीदारी गारंटी योजना (PGS) क्या है?

  • यह जैविक उत्पादों को प्रमाणित करने की एक प्रक्रिया है, जो सुनिश्चित करती है कि उनका उत्पादन निर्धारित गुणवत्ता मानकों के अनुसार किया गया है अथवा नहीं।
  • यह प्रमाणन, प्रलेखित लोगो (Documented Logo) या वचन (Statement) के रूप में होता है।
  • PGS अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लागू एक जैविक गुणवत्ता आश्वासन पहल (Quality Assurance Initiative) है, जो उत्पादकों और उपभोक्ताओं सहित हितधारकों की भागीदारी पर ज़ोर देती है।
  • यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें लोग समान स्थितियों में एक दूसरे के उत्पादन कार्यों का मूल्यांकन, निरीक्षण और सत्यापन करते हैं तथा जैविक प्रमाणीकरण पर निर्णय लेते हैं।
  • यह योजना कृषि और सहकारिता विभाग, कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा क्रियान्वित की जाती है।

उद्देश्य:

  • भारतीय जैविक बाज़ार के विकास को बढ़ावा देना।
  • छोटे और सीमांत किसानों को आसानी से जैविक प्रमाणीकरण प्राप्त करने में मदद करना।
  • जैविक उत्पादों की घरेलू मांग को बढ़ाना।

PGS के चार स्तम्भ:

सरकार का PGS मैनुअल 2015, रेखांकित करता है कि भारत में यह प्रणाली ‘ भागीदारी, सहभागितापूर्ण दृष्टिकोण, पारदर्शिता तथा विश्वास’ पर आधारित है:

  • भागीदारी:
    • प्रमाणीकरण प्रणाली में हितधारकों की सक्रिय भागीदारी होती है जिसमें न केवल किसान, बल्कि व्यापारी और उपभोक्ता भी शामिल हैं।
    • यह प्रमाणन निर्णयों को लागू करने में हितधारकों की प्रत्यक्ष भागीदारी को सक्षम बनाता है।
  • सहभागितापूर्ण दृष्टिकोण:
    • कार्यान्वयन और निर्णय लेने के लिये सामूहिक रूप से ज़िम्मेदारी ली जाती है, जो एक साझे दृष्टिकोण पर आधारित होती है।
    • प्रत्येक हितधारक संगठन या PGS समूह ,PGS-इंडिया कार्यक्रम के समग्र दृष्टिकोण और मानकों के अनुरूप अपनी योजना को बना सकता है।
  • पारदर्शिता:
    • जैविक गारंटी प्रक्रिया में उत्पादकों की सक्रिय भागीदारी के माध्यम से पारदर्शिता बनाए रखी जाती है।
    • प्रत्यक्ष संवाद, हितधारकों को पारदर्शिता के साथ निर्णय लेने में मदद करता है।
    • बैठकों में सूचना साझाकरण व निर्णय में भागीदारी के माध्यम से पारदर्शिता स्थापित की जाती है।
  • विश्वास:
    • PGS का मूल विचार इस बात पर आधारित है कि उत्पादकों पर भरोसा किया जा सकता है तथा PGS प्रणाली इस विश्वास को जाँच के द्वारा सही सिद्ध करेगी ।
  • लाभ:
  • योजना से संबंधित प्रक्रियायें सरल हैं व दस्तावेज़ बुनियादी हैं।
  • किसान स्थानीय भाषा का इस्तेमाल कर सकतें हैं।
  • सभी सदस्य एक दूसरे के संपर्क में रहते हैं और एक दूसरे की सहायता करते हैं।
  • किसान अभ्यास के माध्यम से जैविक प्रक्रियाओं को बेहतर तरीके से समझते हैं।
  • मूल्यांकनकर्त्ता किसानों के साथ रहते हैं जिससे बेहतर निगरानी संभव हो पाती है, इसके साथ ही तीसरे पक्ष की निगरानी की लागत भी कम होती है।
  • क्षेत्रीय PGS समूहों के मध्य पारस्परिक पहचान तथा सहायता, प्रसंस्करण और विपणन के लिये बेहतर नेटवर्किंग सुनिश्चित करता है।
  • उत्पादक समूह प्रमाणन प्रणाली के विपरीत PGS हर किसान को व्यक्तिगत प्रमाण पत्र प्रदान करता है जिसमें किसान, समूह से स्वतंत्र अपनी उपज का विपणन करने के लिये स्वतंत्र होता है।
  • यह किसानों को दस्तावेज़ों के प्रबंधन और प्रमाणीकरण प्रक्रिया के लिये महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये प्रशिक्षण भी प्रदान करता है।

सीमाएं:

  • PGS प्रमाणीकरण केवल उन किसानों या समुदायों के लिये है जो एक समूह के रूप में संगठित हो सकते हैं और प्रदर्शन कर सकते हैं।
  • यह PGS किसानों द्वारा उत्पादित उन प्रत्यक्ष उत्पादों पर लागू होता है, जिसमें केवल कृषि गतिविधियाँ जैसे कि फसल उत्पादन, प्रसंस्करण, पशु पालन और ऑफ-फार्म प्रसंस्करण वाले उत्पाद शामिल होते हैं।
  • PGS के अंतर्गत व्यक्तिगत किसानों या पाँच सदस्यों से कम किसानों वाले समूहों को शामिल नहीं किया जाता है। कृषकों को या तो तीसरे पक्ष के प्रमाणीकरण का विकल्प चुनना होगा या मौजूदा स्थानीय PGS समूह में शामिल होना होगा।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस