सीवर संबंधी मौत के मामलों में कोई सुनवाई नहीं | 05 Oct 2018
चर्चा में क्यों?
वर्ष 1992 से सीवर और सेप्टिक टैंक सफाई के कारण हुई मौतों के संबंध में किये गए एक प्रतिदर्श अध्ययन से पता चलता है कि केवल 35% मामलों में प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज की गई थी; इनमें से किसी भी मामले में मुकदमा या किसी प्रकार की कानूनी कार्रवाई नहीं की गई।
प्रमुख बिंदु
- राष्ट्रीय गरिमा अभियान (आरजीए) द्वारा जारी किये गए इस अध्ययन में 11 राज्यों में हुई 51 घटनाओं के दौरान 97 मौतों को सैंपल के रूप में शामिल किया गया था।
- अध्ययन के अनुसार, केवल 31% प्रभावित परिवारों को नकद मुआवज़ा मिला, जबकि किसी को भी पुनर्वास या वैकल्पिक नौकरी नहीं मिली, जिसके वे कानूनी रूप से हकदार हैं।
- राष्ट्रीय गरिमा अभियान एक गैर-सरकारी संगठन है जो सामाजिक न्याय मंत्रालय के साथ मिलकर हाथ से मैला ढोने वालों की जनगणना में भागीदारी कर रहा है।
- इस एनजीओ का कहना है कि उसने उन राज्यों में 140 घटनाओं में 302 मौतों की पहचान की थी, लेकिन अनुमान है कि वास्तविक संख्या इससे भी अधिक हो सकती है। मंत्रालय ने अकेले वर्ष 2017 में देश भर में 323 मौतों की सूचना दी।
- ग्रामीण क्षेत्रों में भी अब सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान मौतों के मामले बढ़ते जा रहे हैं। सरकार स्वच्छ भारत अभियान के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय बनाने पर तो ध्यान दे रही है किंतु सेप्टिक टैंकों की सफाई के लिये अभी भी कोई व्यवस्था नहीं की गई है।
- उल्लेखनीय है कि सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के तहत सफाई कर्मचारी फाइनेंस एंड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन द्वारा देश भर में सफाई कर्मियों को ‘मैनुअल स्केवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013’ से अवगत कराने के लिये 200 शिविरों का आयोजन किया जाएगा।