शासन कार्यों में अधिक भाषाओं के प्रयोग की आवश्यकता | 03 Sep 2020
प्रिलिम्स के लिये:राजभाषा अधिनियम-1963, राजभाषा पर समिति, राजभाषा संबंधी संवैधानिक प्रावधान, आठवीं सूची में शामिल भाषाएँ मेन्स के लिये:शासन कार्यों में अधिक भाषाओं को शामिल करने की आवश्यकता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश ने शासन कार्यों में हिंदी और अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओं को भी शामिल किये जाने की आवश्यकता बताई है।
प्रमुख बिंदु:
- सरकार को अन्य भाषाओं को शासन कार्यों में शामिल करने के लिये ‘राजभाषा अधिनियम’ (Official Languages Act)- 1963 में संशोधन करने की आवश्यकता होगी।
- हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने ‘पर्यावरणीय प्रभाव आकलन’ (Environment Impact Assessment-EIA) अधिसूचना- 2020 का अनुवाद, संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल सभी 22 भाषाओं में अनुवाद करने का निर्णय दिया था।
- भारत संघ द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय की वैधता को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी।
जम्मू और कश्मीर में नवीन आधिकारिक भाषाएँ:
- हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जम्मू और कश्मीर में आधिकारिक भाषाओं के रूप में उर्दू और अंग्रेजी के अलावा हिंदी, कश्मीरी और डोगरी को मान्यता देने वाले विधेयक को मंज़ूरी दे दी है।
- इससे पहले राज्य में केवल अंग्रेजी और उर्दू को आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त थी।
- यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि जम्मू-कश्मीर को दो भागों में विभक्त करने वाले जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक- 2019 को 5 अगस्त को राज्यसभा में पेश किया था। इसमें लद्दाख को अलग कर केंद्रशासित क्षेत्र बनाया गया था।
राजभाषा अधिनियम-1963:
- राजभाषा अधिनियम, 1963 ( वर्ष 1967 में संशोधन) निम्नलिखित उद्देश्यों के लिये उपयोग की जाने वाली भाषाओं को निर्धारित करता है:
- संघ के आधिकारिक उद्देश्य के लिये भाषा;
- संसदीय कार्यवाही के लिये भाषा;
- केंद्रीय और राज्य अधिनियमों के लिये भाषा;
- उच्च न्यायालयों में निश्चित उद्देश्य के लिये भाषा।
राजभाषा पर समिति:
- समिति का यह कर्तव्य होगा कि वह संघ के आधिकारिक उद्देश्यों के लिये हिंदी के उपयोग में हुई प्रगति की समीक्षा करे तथा आवश्यक सिफारिशों के साथ इसे राष्ट्रपति को एक रिपोर्ट सौंपे।
- राष्ट्रपति द्वारा रिपोर्ट को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा तथा इसे सभी राज्य सरकारों को भेजा जाएगा।
- राजभाषा समिति में तीस सदस्य शामिल होते हैं। जिनमें से 20 सदस्य लोक सभा से तथा दस सदस्य राज्य सभा से होते हैं।
- सदस्यों का चुनाव 'आनुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल हस्तांतरणीय मत प्रणाली' के माध्यम से किया जाता है।
संवैधानिक प्रावधान:
- भारतीय संविधान के भाग-17 में अनुच्छेद 343 से 351 तक राजभाषा से संबंधित उपबंध शामिल किये गए हैं। राजभाषा के उपबंध चार शीर्षकों; संघ की भाषा, क्षेत्रीय भाषाएँ, न्यायपालिका एवं विधि के पाठ एवं अन्य विशेष निर्देशों की भाषा के रूप में शामिल किये गए हैं।
संघ की भाषा:
- संविधान लागू होने के पंद्रह वर्षों (वर्ष 1950 से 1965 के बीच की अवधि) के बाद भी हिंदी के अलावा अंग्रेजी भाषा का प्रयोग आधिकारिक रूप से जारी रहेगा। इसमें निम्नलिखित कार्य शामिल हैं:
- संघ के सभी आधिकारिक उद्देश्यों के लिये भाषा।
- संसदीय कार्यवाही संचालन की भाषा।
क्षेत्रीय भाषा:
- संविधान में राज्यों के लिये किसी विशेष भाषा का उल्लेख नहीं किया गया। किसी राज्य की विधायिका उस राज्य मे एक या अधिक भाषा अथवा हिंदी का चुनाव ‘आधिकारिक भाषा’ के रूप में कर सकती है।
- राज्यों द्वारा आधिकारिक भाषा का चुनाव संविधान की आठवी अनुसूची में उल्लिखित भाषाओं तक सीमित नहीं है।
- केंद्र तथा राज्यों अथवा दो या अधिक राज्यों के बीच संवाद के रूप में अंग्रेजी अथवा हिंदी (हिंदी के प्रयोग के लिये सहमति आवश्यक) का प्रयोग किया जा सकेगा।
न्यायपालिका की भाषा एवं विधि पाठ:
- जब तक संसद अन्यथा उपबंध नहीं करती है:
- न्यायपालिका (सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय) की कार्यवाही अंग्रेजी में होगी।
- केंद्र स्तर पर विधेयकों, अधिनियम, अध्यादेश, नियमों, उप-नियमों की का आधिकारिक पाठ अंग्रेजी में होगा।
- हालाँकि राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से हिंदी अथवा किसी अन्य राजभाषा को उच्च न्यायालय की कार्यवाही की भाषा का दर्जा दे सकता है। हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय में हिंदी के प्रयोग के लिये ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की गई है।
विशेष निर्देश:
- संविधान में भाषायी अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा तथा हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिये कुछ विशिष्ट निर्देश यथा- भाषायी अल्पसंख्यकों की शिकायतों का निवारण, मातृभाषा में शिक्षा आदि दिये गए हैं।
आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाएँ:
- संविधान की आठवीं सूची में 22 भाषाएँ (मूल रूप से 14) शामिल हैं। ये हैं- असमिया, बंगाली (बांग्ला), बोडो, डोगरी (डोंगरी), गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मैतेई (मणिपुरी), मराठी, नेपाली, ओडिया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलुगु और उर्दू।
भारत में भाषायी विविधता:
- ‘यूनेस्को’ ने भारत को सबसे अधिक भाषाई रूप से विविध देशों में से एक के रूप में मान्यता दी है। जिसमें 22 अनुसूचित भाषाएँ, सैकड़ों स्थानीय भाषाएँ और बोलियाँ शामिल हैं।
- भाषा केवल संचार का एक साधन नहीं है, बल्कि वे भारत की समृद्ध संस्कृति, विरासत और परंपराओं का प्रतीक हैं।
आगे की राह:
- सरकार को लोगों की आकांक्षाओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिये। लोगों पर किसी एक भाषा को जबरदस्ती थोपने के किसी भी प्रयास को रोका जाना चाहिये।
- आधिकारिक कार्यों में आठवीं अनुसूची में शामिल अधिक-से-अधिक भाषओं के प्रयोग को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये तथा स्थानीय भाषाओं में अनुवाद करने की दिशा में व्यापक मानव-कौशल को प्रोत्साहन देना चाहिये।
- कृत्रिम बुद्धिमता जैसी उन्नत तकनीकों का उपयोग प्राचीन क्षेत्रीय ग्रंथों के अनुवाद और डिजिटलीकरण के लिये किया जा सकता है।