बीजिंग +25 की समीक्षा हेतु राष्ट्रीय परामर्श | 03 Feb 2020
प्रीलिम्स के लिये:बीजिंग घोषणापत्र, प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन, बीजिंग +25, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, राष्ट्रीय महिला आयोग, चतुर्थ संयुक्त राष्ट्र विश्व महिला सम्मेलन (बीजिंग) 1995, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना मेन्स के लिये:महिला सशक्तीकरण से संबंधित मुद्दे, लैंगिक समानता से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
चतुर्थ विश्व महिला सम्मेलन और बीजिंग घोषणापत्र एवं प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन के अंगीकरण (World Conference on Women and adoption of the Beijing Declaration and Platform for Action) की 25वीं वर्षगाँठ पर बीजिंग +25 की समीक्षा हेतु एक राष्ट्रीय परामर्श का आयोजन किया गया।
महत्त्वपूर्ण बिंदु:
- यह परामर्श महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (Ministry of Women & Child Development- MWCD), राष्ट्रीय महिला आयोग (National Commission for Women- NCW) तथा संयुक्त राष्ट्र महिला (UN Women) द्वारा आयोजित किया गया था।
- इस परामर्श का मुख्य उद्देश्य जीवन के सभी क्षेत्रों में लैंगिक समानता (Gender Equality) निर्धारित करने हेतु सिविल सोसायटी, भारत की महिलाओं एवं युवाओं को साथ लाना है।
- इस परामर्श के अन्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
- पिछले 5 वर्षों के दौरान भारत में बीजिंग घोषणा पत्र और प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन के कार्यान्वयन की प्रगति एवं उसकी चुनौतियों का आकलन करना।
- वर्ष 2030 तक लैंगिक समानता एवं महिला सशक्तीकरण को निर्धारित करने हेतु आवश्यक प्राथमिकता वाले कार्यों पर संवाद करना।
- महिला सशक्तीकरण को प्रभावित करने वाले क्षेत्रों पर चर्चा करना।
बीजिंग +25 के बारे में
- बीजिंग +25 महिला विश्व सम्मेलन और बीजिंग घोषणापत्र एवं प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन के अंगीकरण की 25वीं वर्षगाँठ से संबंधित है।
- बीजिंग में आयोजित वर्ष 1995 का चतुर्थ संयुक्त राष्ट्र विश्व महिला सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र की अब तक की सबसे बड़ी सभाओं में से एक था तथा विश्व में लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था।
चतुर्थ संयुक्त राष्ट्र विश्व महिला सम्मेलन (बीजिंग) 1995
- सितंबर 1995 में चीन की राजधानी बीजिंग में संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्त्वावधान में चतुर्थ विश्व महिला सम्मेलन आयोजित किया गया था। इस सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा महिला अधिकारों पर बीजिंग घोषणा पत्र को भी अपनाया गया था।
- इस सम्मेलन का लक्ष्य वर्ष 1975 में मैक्सिको में आयोजित प्रथम संयुक्त राष्ट्र विश्व महिला सम्मेलन में औपचारिक रूप से शुरू की गई प्रक्रिया को गति प्रदान करना था।
- ध्यातव्य है कि मैक्सिको सम्मेलन में सौ से अधिक देशों के प्रतिनिधियों ने पुरुषों एवं महिलाओं में व्याप्त विषमताओं को मिटाने की दिशा में चल रहे सरकारी प्रयासों के मार्गदर्शन के लिये एक विश्व कार्ययोजना का निर्धारण किया था।
- बीजिंग सम्मलेन में प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन (Platform for Action–PFA) को अपनाया गया था।
- यह महिलाओं के प्रति सभी प्रकार के भेदभावों को समाप्त करने हेतु अभिसमय (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination Against Women–CEDAW) और संयुक्त राष्ट्र महासभा तथा आर्थिक एवं सामाजिक विकास संगठन (ECOSCO) द्वारा अपनाए गए प्रासंगिक प्रस्तावों को अनुमोदित करता है।
- अन्य महिला विश्व सम्मेलन:
- प्रथम संयुक्त राष्ट्र विश्व महिला सम्मेलन (मैक्सिको), 1975
- द्वितीय संयुक्त राष्ट्र विश्व महिला सम्मेलन (कोपेनहेगन), 1980
- तृतीय संयुक्त राष्ट्र विश्व महिला सम्मेलन (नैरोबी), 1985
भारत में लैंगिक समानता एवं महिला सशक्तीकरण की दिशा में उठाए गए कदम
- महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अंतर्गत बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान का विस्तार 640 ज़िलों में किया गया है जिसके परिणामस्वरूप देश के लिंगानुपात में 13 अंकों का सुधार हुआ है और लिंगानुपात वर्ष 2014-15 के 918 (प्रति हज़ार में) से बढ़कर वर्ष 2018-19 में 931 (प्रति हज़ार में) हो गया है।
- साथ ही प्राथमिक स्तर पर महिला नामांकन दर 93.55% हो गया है और लड़कों तथा लड़कियों के समग्र ड्रॉप-आउट दर में भी 19.8% की गिरावट आई है।
- प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PM Matri Vandna Yojna- PMMVY) के अंतर्गत 17.43 लाख से अधिक महिलाओं तक पहुँच बनाई गई एवं उन्हें मातृत्व लाभ प्रदान किया गया।
- 18.6 लाख से अधिक महिलाओं को सितंबर 2018 तक देश भर में महिला हेल्पलाइन नंबर (181) के माध्यम से संबोधित किया गया।
- पुलिस विभाग में लिंगानुपात बेहतर करने के लिये एवं महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये 33% आरक्षण की व्यवस्था की गई।
- कामकाजी महिलाओं की कार्यदशाओं को सुधारने एवं आर्थिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने हेतु मातृत्व अवकाश की अवधि को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दिया गया है तथा कार्यस्थलों में क्रेच (Creche) की स्थापना को अनिवार्य बनाया गया है।
- गर्भावस्था के दौरान महिलाओं की स्वास्थ्य समस्या को देखते हुए विषम परिस्थितियों में गर्भपात कराने की अवधि को 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 सप्ताह कर दिया गया है।
- इसके अतिरिक्त महिला सशक्तीकरण एवं लैंगिक समानता के लिये भारत में जेंडर बजटिंग का प्रावधान किया गया है।