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नासा का ‘ओसीरिस-रेक्स’ अभियान

  • 13 May 2021
  • 9 min read

चर्चा में क्यों

हाल ही में नासा के ‘ओसीरिस-रेक्स’ अंतरिक्ष यान (OSIRIS-REx Spacecraft) ने क्षुद्रग्रह बेन्नू (Asteroid Bennu) से पृथ्वी पर वापसी के लिये अपनी दो वर्षीय लंबी यात्रा शुरू कर दी है।

  •  ‘ओसीरिस-रेक्स’ पृथ्वी के निकट मौजूद क्षुद्रग्रह का दौरा कर उसकी सतह का सर्वेक्षण करने तथा उससे नमूना एकत्र करने हेतु भेजा गया नासा का प्रथम मिशन है।

प्रमुख बिंदु: 

‘ओसीरिस-रेक्स’ मिशन के बारे में: 

  • ओसीरिस-रेक्स (OSIRIS-REx) संयुक्त राज्य अमेरिका का पहला क्षुद्रग्रह ‘सैंपल रिटर्न मिशन’ (Sample Return Mission) है, जिसका उद्देश्य वैज्ञानिक अध्ययन के लिये क्षुद्रग्रह से प्राचीन अनछुए नमूनों को इकट्ठा कर उन्हें पृथ्वी पर वापस लाना है।
  • वर्ष 2016 में ओसीरिस-रेक्स (ओरिजिंस, स्पेक्ट्रल इंटरप्रीटेशन, रिसोर्स आईडेंटीफिकेशन, सिक्योरिटी, रेगोलिथ एक्सप्लोरर) अंतरिक्ष यान को बेन्नू क्षुद्रग्रह  की यात्रा हेतु लॉन्च किया गया था।
  • इस मिशन की अवधि कुल सात वर्ष है  और इसका कोई भी अंतिम परिणाम तब सामने आएगा जब यह अंतरिक्ष यान कम-से-कम 60 ग्राम नमूने लेकर पृथ्वी पर वापसी (वर्ष 2023 में) करेगा।
  • नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के मुताबिक यह मिशन, अपोलो मिशन के बाद सबसे बड़ी मात्रा में खगोलीय सामग्री को पृथ्वी पर लाने में सक्षम है।
    • ‘अपोलो’ नासा का एक कार्यक्रम था, जिसके तहत अमेरिकी अंतरिक्ष यात्रियों ने कुल 11 अंतरिक्ष उड़ानें भरी थीं और चंद्रमा की सतह पर लैंड किया था।
  • इस अंतरिक्ष यान में ‘बेन्नू’ के अन्वेषण के लिये कुल पाँच उपकरण शामिल हैं, जिसमें कैमरे, एक स्पेक्ट्रोमीटर और एक लेज़र अल्टीमीटर शामिल हैं।
  • बीते दिनों अंतरिक्ष यान के ‘टच-एंड-गो सैंपल एक्विजिशन मैकेनिज़्म’ (TAGSAM) नामक रोबोटिक आर्म ने एक नमूना स्थल से नमूना एकत्र किया था।

महत्त्व

  • वैज्ञानिक क्षुद्रग्रह के नमूनों का उपयोग सौरमंडल के गठन और पृथ्वी जैसे रहने योग्य ग्रहों के अध्ययन के लिये करेंगे।
  • नासा, मिशन के माध्यम से प्राप्त नमूनों के एक विशेष हिस्से को दुनिया भर की प्रयोगशालाओं में अध्ययन के लिये वितरित करेगी और शेष हिस्सा (75 प्रतिशत) भविष्य की पीढ़ियों के लिये सुरक्षित रखा जाएगा, जिससे भविष्य में और अधिक आधुनिक प्रौद्योगिकी के माध्यम से इसका अध्ययन किया जा सकेगा।

क्षुद्रग्रह बेन्नू (Bennu):

  • बेन्नू एक प्राचीन क्षुद्रग्रह है, जो कि वर्तमान में पृथ्वी से लगभग 200 मिलियन मील से अधिक दूरी पर मौजूद है।
  • यह अमेरिका की एम्पायर स्टेट बिल्डिंग जितना लंबा है और इसका नाम मिस्र के एक देवता के नाम पर रखा गया है।
  • इस क्षुद्रग्रह की खोज नासा द्वारा वित्तपोषित ‘लिंकन नियर-अर्थ एस्टेरॉयड रिसर्च टीम’ के एक समूह द्वारा वर्ष 1999 में की गई थी।
  • इसे एक ‘बी-टाइप’ क्षुद्रग्रह माना जाता है, जिसका अर्थ है कि इसमें महत्त्वपूर्ण मात्रा में कार्बन और विभिन्न अन्य खनिज शामिल हैं।
    • इसमें उपस्थित कार्बन की उच्च मात्रा के कारण, यह केवल 4% प्रकाश को ही परावर्तित करता है, जो कि शुक्र जैसे ग्रह की तुलना में काफी कम है, जो कि लगभग 65% प्रकाश को परावर्तित करता है। ज्ञात हो कि भारत 30% प्रकाश को परावर्तित करता है।
  • बेन्नू का लगभग 20-40% अंतरिक्ष हिस्सा खाली है और वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि यह सौरमंडल के गठन के प्रारंभिक 10 मिलियन वर्षों में बना था, जिसका अर्थ है कि यह लगभग 4.5 बिलियन साल पुराना है।
  • यह संभावना व्यक्त की जा रही है कि बेन्नू, जिसे ‘नियर अर्थ ऑब्जेक्ट’ (NEO) के रूप में वर्गीकृत किया गया है, अगली शताब्दी में वर्ष 2175 से वर्ष 2199 के बीच पृथ्वी से टकरा सकता है।
    • ‘नियर अर्थ ऑब्जेक्ट’ (NEO) का आशय ऐसे धूमकेतु या क्षुद्र ग्रह से होता है जो पास के ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण द्वारा उनके ऑर्बिट/कक्षा में आ जाते हैं जो उन्हें पृथ्वी के करीब आने की अनुमति देता है।
  • माना जाता है कि बेन्नू की उत्पत्ति मंगल और बृहस्पति के बीच मुख्य क्षुद्रग्रह बेल्ट में हुई है तथा अन्य खगोलीय पिंडों के गुरुत्वाकर्षण की वज़ह से यह पृथ्वी के करीब आ रहा है।
  • बेन्नू वैज्ञानिकों को प्रारंभिक सौर प्रणाली के बारे में अधिक जानने का अवसर प्रदान करता है, क्योंकि इसने अरबों वर्ष पूर्व आकार लेना शुरू किया था और उस पर वे सामग्रियाँ मौजूद हो सकती हैं, जो पृथ्वी पर जीवन के लिये मददगार हैं।
    • गौरतलब है कि अरबों वर्षों पहले इसके निर्माण के बाद से बेन्नू में अधिक महत्त्वपूर्ण बदलाव नहीं आए हैं और इसलिये इसमें ऐसे रसायन तथा चट्टानें शामिल हो सकती हैं, जो सौर मंडल के जन्म के समय से यहाँ मौजूद हैं। साथ ही यह पृथ्वी के अपेक्षाकृत करीब भी है।

छुद्रग्रह

  • ये सूर्य की परिक्रमा करने वाले चट्टानी पिंड हैं जो ग्रहों की तुलना में काफी छोटे होते हैं। इन्हें लघु ग्रह (Minor Planets) भी कहा जाता है।
  • नासा के अनुसार, अब तक ज्ञात छुद्रग्रहों (4.6 बिलियन वर्ष पहले सौरमंडल के निर्माण के दौरान के अवशेष) की संख्या 9,94,383 है।
  • छुद्रग्रहों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है:
    • पहली श्रेणी में वे छुद्रग्रह आते हैं जो मंगल तथा बृहस्पति के बीच छुद्रग्रह बेल्ट/पट्टी में पाए जाते हैं। अनुमानतः इस बेल्ट में 1.1-1.9 मिलियन छुद्रग्रह मौजूद हैं। 
    • दूसरी श्रेणी के तहत ट्रोजन्स को शामिल किया गया है। ट्रोजन्स ऐसे छुद्रग्रह हैं जो एक बड़े ग्रह के साथ कक्षा (Orbit) साझा करते हैं। 
    • तीसरी श्रेणी पृथ्वी के निकट स्थित छुद्रग्रहों यानी नियर अर्थ एस्टेरोइड्स (NEA) की है जिनकी कक्षा ऐसी होती है जो पृथ्वी के निकट से होकर गुज़रती है। वे छुद्रग्रह जो पृथ्वी की कक्षा को पार कर जाते हैं उन्हें अर्थ क्रॉसर (Earth-crosser) कहा जाता है।
      • इस तरह के 10,000 से अधिक छुद्रग्रह ज्ञात हैं जिनमें से 1, 400 को संभावित खतरनाक छुद्रग्रह (Potentially Hazardous Asteroid- PHA) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
        • PHA ऐसे क्षुद्रग्रह होते हैं जिनके पृथ्वी के करीब से गुज़रने से पृथ्वी पर खतरा उत्पन्न होने की संभावना बनी रहती है। 
        • PHA की श्रेणी में उन क्षुद्रग्रहों को रखा जाता है जिनकी  ‘न्यूनतम कक्षा अंतर दूरी’ (Minimum Orbit Intersection Distance- MOID) 0.05 AU या इससे कम हो। साथ ही ‘निरपेक्ष परिमाण’ (Absolute Magnitude-H) 22.0 या इससे कम हो। 
          • पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी को खगोलीय इकाई (Astronomical Unit-AU) से इंगित करते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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