नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़


भारत-विश्व

सैन्‍य चिकित्‍सा सम्‍मेलन

  • 17 Sep 2019
  • 9 min read

चर्चा में क्यों?

12-13 सितंबर, 2019 को शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation-SCO) के सदस्य देशों के प्रथम सैन्‍य चिकित्‍सा सम्‍मेलन का आयोजन नई दिल्ली में किया गया।

  • वर्ष 2017 में SCO का सदस्य देश बनने के बाद (SCO रक्षा सहयोग योजना वर्ष 2019-2020 के अंतर्गत) भारत द्वारा आयोजित यह पहला सैन्य सहयोग कार्यक्रम (First Military Cooperation Event) है।

SCO

प्रमुख बिंदु

  • सम्मेलन का आयोजन भारतीय सशस्त्र बलों (Indian Armed Forces) द्वारा हेड क्‍वाटर्स इंटीग्रेटेड डिफेंस स्‍टाफ (Headquarters Integrated Defence Staff-HQ IDS) के तत्त्वावधान में किया गया।
  • इसका उद्देश्य सैन्य चिकित्सा के क्षेत्र में सर्वोत्तम कार्यविधियों को साझा करना, क्षमताओं का निर्माण करना और आम चुनौतियों से निपटना है।
  • SCO सदस्य देशों के सैन्य चिकित्सा विशेषज्ञों के बीच युद्ध के दौरान चिकित्सा सहायता प्रदान करने, आपदाओं के दौरान मानवीय सहायता और रोगी सुरक्षा में सुधार के उपायों पर विचार-विमर्श करने के लिये SCO सदस्य देशों के वरिष्ठ सैन्य चिकित्सकों ने भी इस सम्मेलन में भाग लिया।
  • इस सम्‍मेलन में भाग लेने के लिये संवाद सहयोगी नेपाल एवं श्रीलंका ने भी अपने प्रतिनिधिमंडल भेजे।
  • इस अवसर पर भारतीय रक्षा मंत्री ने SCO देशों के सशस्त्र बल चिकित्सा सेवाओं (Armed Forces Medical Services-AFMS) को संबोधित करते हुए कहा कि युद्ध क्षेत्र में लगातार बढ़ते तकनीकों के प्रयोग को ध्यान में रखते हुए सैनिकों के समक्ष आने वाले नए खतरों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये नए तरीके विकसित करने पर बल देना चाहिये।
    • भारत में सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा महानिदेशालय (Directorate General Armed Forces Medical Service-DGAFMS) एक सर्वोच्च संगठन है जो सेना, नौसेना और वायुसेना के बीच चिकित्सा सेवाओं हेतु समन्वय करता है।
    • यह रक्षा मंत्रालय के अधीन आता है एवं इसकी अध्यक्षता एक लेफ्टिनेंट जनरल अथवा नौसेना या वायुसेना के समकक्ष अधिकारी द्वारा की जाती है।
  • सम्मेलन में जैव-आंतकवाद के खतरे से निपटने के लिये निर्माण क्षमताओं के महत्त्व पर भी विशेष बल दिया गया, क्योंकि वर्तमान समय में यह गंभीर खतरा बनता जा रहा है।
    • क्षेत्रीय आतंकवाद रोधी संरचना (Regional Anti-Terrorist Structure-RATS) शंघाई सहयोग संगठन का एक स्थायी अंग है जो आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद के खिलाफ सदस्य राज्यों के मध्य सहयोग को बढ़ावा देने हेतु कार्य करता है। इसका मुख्यालय ताशकंद, उज़्बेकिस्तान में है।

जैव आतंकवाद

(Bio-terrorism)

  • जैव-आतंकवाद का आशय उस स्थिति से है जब किसी वायरस, बैक्टीरिया या अन्य कीटाणुओं का जान बूझकर प्रसार किया जाता है, इसके प्रभाव से मनुष्य और जानवर न केवल बीमार पड़ सकते हैं, बल्कि उनकी मृत्यु भी हो सकती हैं, साथ ही इसके कारण फसलों के खराब होने का खतरा भी बढ़ जाता है।
  • बैसिलस एन्थ्रेसिस (Bacillus Anthracis), एक प्रकार का बैक्टीरिया है, जिसके कारण एंथ्रेक्स (Anthrax) नामक बीमारी होती है, जैविक हथियार के रूप में इसका सबसे अधिक प्रयोग किया जाता है।
  • भारतीय संदर्भ में बात करें तो पाकिस्तान जैसे शत्रुतापूर्ण पड़ोसियों की उपस्थिति में जैविक युद्ध के खतरे को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता है।

भारत की तैयारी

अब तक कई प्रमुख भारतीय मंत्रालयों को जैव आतंकवाद के कारण होने वाली महामारी से निपटने के लिये चिह्नित किया गया है।

  • जल्द पता लगाना: जैव-आतंकवाद की निगरानी करने और उसके प्रकोप का जल्द-से-जल्द पता लगाने के लिये आवश्यक दिशा-निर्देश एवं तकनीकी सहायता प्रदान करने का कार्य स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को सौंपा गया है।
  • खतरे का आकलन: गृह मंत्रालय खतरे के आकलन, खुफिया जानकारी और निवारक तंत्र के कार्यान्वयन हेतु उत्तरदायी मंत्रालय है।
    • राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (National Disaster Response Force-NDRF) रासायनिक, जैविक, रेडियोलॉजिकल और परमाणु हमलों से निपटने के लिये यह गृह मंत्रालय के तहत गठित एक विशेष बल है।
  • जैव युद्ध (Biowarfare): जैव युद्ध के प्रबंधन का कार्य रक्षा मंत्रालय को सौंपा गया है।
    • रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation-DRDO) को परमाणु, जैविक और रासायनिक युद्ध के खिलाफ सेना के लिये सुरक्षात्मक प्रणालियों एवं उपकरणों को विकसित करने का कार्य दिया गया है।
  • उल्लेखनीय है कि भारत ने जैविक हथियार कन्वेंशन (Biological Weapons Convention-BWC) पर हस्ताक्षर किये हैं, जो जैविक और विषैले हथियारों के विकास, उत्पादन, अधिग्रहण, स्थानांतरण, संग्रहण एवं उपयोग को प्रतिबंधित करता है।
  • भारत ऑस्ट्रेलिया समूह के प्रतिभागियों में भी शामिल है। भारत इस समूह का सदस्य बनने वाला 43वाँ देश है।

क्या है ऑस्ट्रेलिया समूह (Australia Group-AG)?

  • ऑस्ट्रेलिया ग्रुप उन देशों का सहकारी और स्वैच्छिक समूह है जो सामग्रियों, उपकरणों और प्रौद्योगिकियों के निर्यात को नियंत्रित करते हैं ताकि, रासायनिक और जैविक हथियारों (Chemical and Biological Weapons-CBW) के विकास या अधिग्रहण में इनका प्रयोग ना किया जा सके।
  • इसका यह नाम इसलिये है क्योंकि ऑस्ट्रलिया ने ही यह समूह बनाने के लिये पहल की थी और वही इस संगठन के सचिवालय का प्रबंधन देखता है।
  • ईरान-इराक युद्ध (1984) में जब इराक ने रासायनिक हथियारों का प्रयोग किया, (1925 जेनेवा प्रोटोकॉल का उल्लंघन) तब रासायनिक व जैविक हथियारों के आयात-निर्यात और प्रयोग पर नियंत्रण के लिये 1985 में इस समूह का गठन किया गया।
  • ऑस्ट्रेलिया समूह का मुख्य उद्देश्य रासायनिक तथा जैविक हथियारों की रोकथाम हेतु नियम निर्धारित करना है। ऑस्ट्रेलिया समूह इन हथियारों के निर्यात पर नियंत्रण रखने के अलावा 54 विशेष प्रकार के यौगिकों के प्रसार पर नियंत्रण रखता है।
  • ऑस्ट्रेलिया समूह के सभी सदस्य रासायनिक हथियार सम्मेलन (Chemical Weapons Convention-CWC) और जैविक हथियार सम्मेलन (Biological Weapons Convention-BWC) का अनुसमर्थन करते हैं।

स्रोत: PIB

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow