भारत की तटीय सुरक्षा बढ़ाने के लिये उपाय | 07 Mar 2018
संदर्भ
- भारत की लगभग 7500 किमी. लंबी तटरेखा गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल राज्यों तथा दमन एवं दीव, लक्षद्वीप, पुद्दुचेरी और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह संघ शासित क्षेत्रों से होकर गुज़रती है।
- 2008 के मुंबई हमलों के बाद से समुद्र तट की सुरक्षा भारत की समुद्री सुरक्षा एजेंसियों की प्राथमिकता में रही है। तटीय सुरक्षा को नए सिरे से व्यवस्थित करने की योजना के तहत बहुत से उपाय किये गए हैं।
क्यों आवश्यक है तटीय सुरक्षा?
- भारत की लंबी तटीय सीमा से कई प्रकार की सुरक्षा संबंधी चिंताएँ उत्पन होती है। इन चुनौतियों में तट के निर्जन स्थानों में हथियार एवं गोला बारूद रखना, राष्ट्रविरोधी तत्त्वों द्वारा उन स्थानों का प्रयोग देश में घुसपैठ करने एवं यहाँ से भागने के लिये करना, अपतटीय एवं समुद्री द्वीपों का प्रयोग आपराधिक क्रियाकलापों के लिये करना, समुद्री मार्गों से तस्करी करना आदि शामिल हैं।
- तटों पर भौतिक अवरोधों के न होने तथा तटों के समीप महत्त्वपूर्ण औद्योगिक एवं रक्षा संबंधी अवसंरचनाओं की मौजूदगी से भी सीमापार अवैध गतिविधियों में बढ़ोतरी होने की संभावना अधिक होती है।
- मुंबई हमले के बाद से तटीय, अपतटीय और समुद्री सुरक्षा को मज़बूत करने के लिये सरकार ने कई उपाय किये हैं।
- मौटेतौर पर इन उपायों में समुद्री सुरक्षा एजेंसियों की निगरानी और देश के समुद्री क्षेत्र की गश्ती के लिये क्षमता बढ़ाना, तटीय और अपतटीय क्षेत्रों की तकनीकी निगरानी, संस्थागत तरीके से अंतर-एजेंसी समन्वयन करना, समुद्री क्षेत्रों में गतिविधियों के विनियमन में वृद्धि आदि शामिल हैं।
तटीय और समुद्री सुरक्षा हेतु किये गए उपाय
- तटीय और समुद्री सुरक्षा के लिये भारतीय नौसेना, भारतीय तटरक्षक और राज्य समुद्री पुलिस के रूप में त्रि-स्तरीय ढाँचा स्थापित किया गया है जो सीमा शुल्क और पोर्ट ट्रस्ट जैसी अन्य एजेंसियों के साथ मिलकर समुद्री मार्गों के माध्यम से घुसपैठ पर नियंत्रण और रोक के लिये भारत के समुद्री क्षेत्रों, द्वीपों और निकटवर्ती समुद्रों की गश्त करती है।
- यह त्रि-स्तरीय व्यवस्था तटीय सुरक्षा योजना के अंतर्गत कार्य करती है। इस योजना के तहत तटीय सुरक्षा संबंधी अवसंरचना जैसे-तटीय पुलिस स्टेशनों, नावों, जलयानों आदि के विकास और प्रबंधन पर ध्यान दिया जा रहा है।
- स्वचालित पहचान प्रणाली (AIS), लॉन्ग रेंज आइडेंटिफिकेशन और ट्रैकिंग (LRIT), संचार प्रणालियों, डे-नाईट कैमरा से युक्त तटीय निगरानी नेटवर्क (Coastal Surveillance Network-CSN) के द्वारा इलेक्ट्रॉनिक निगरानी तंत्र को संवर्द्धित किया गया है।
- बंदरगाहों में जलयान यातायात प्रबंधन प्रणाली (Vessel Traffic Management System-VTMS) रडार भी बंदरगाह क्षेत्रों में निगरानी की सुविधा प्रदान करते हैं।
- इसके अलावा तटीय सुरक्षा संबंधी मुद्दों पर विभिन्न एजेंसियों के बीच समन्वय के लिये राज्यवार मानक संचालन प्रक्रियाएँ (SOPs) तैयार की गई हैं।
- मौजूदा तंत्रों की प्रभावशीलता का आकलन करने और अंतराल को दूर करने के लिये तटीय सुरक्षा अभ्यास नियमित रूप से आयोजित किये जा रहे हैं।
- द्विवार्षिक अभ्यास ‘सागर कवच’ (Sagar Kavach) इसका प्रमुख उदाहरण है जिसे भारतीय नौसेना, भारतीय तटरक्षक बल और तटीय पुलिस द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया जाता है।
तटीय सुरक्षा के लिये संस्थागत प्रावधान
- भारतीय नेवी के 20 और तटरक्षक बल के 31 निगरानी स्टेशनों को जोड़ने के लिये नेशनल कमांड कंट्रोल कम्युनिकेशन्स एंड इंटेलिजेंस (NC3I) नेटवर्क की स्थापना की गई है जिससे 7500 किमी. लंबी समुद्री सीमा पर समुद्री क्षेत्र जागरूकता (MDA) के विकास में सहायता मिल रही हैं।
- गुड़गाँव में भारतीय नेवी, तटरक्षक बल और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड की संयुक्त पहल के रूप में सूचना प्रबंधन और विश्लेषण केंद्र (IMAC) स्थापित किया गया है जो NC3I के नोडल केंद्र का कार्य करता है।
- समुद्री और तटीय सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिये राष्ट्रीय समिति (National Committee for Strengthening Maritime and Coastal Security-NCSMCS) एक राष्ट्रीय स्तर का मंच और समुद्री तथा तटीय सुरक्षा के लिये एक सर्वोच्च समीक्षा तंत्र है, जिसमें सभी संबंधित मंत्रालयों और सरकारी एजेंसियों के प्रतिनिधि शामिल हैं।
- कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाले NCSMCS की आखिरी बैठक 20 अक्तूबर 2017 को हुई थी।