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जैव विविधता और पर्यावरण

मलय विशालकाय गिलहरी

  • 05 Dec 2020
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (Zoological Survey of India- ZSI) ने अपनी तरह के एक पहले अध्ययन में यह अनुमान लगाया है कि वर्ष 2050 तक भारत में मलय विशालकाय गिलहरियों (Malayan Giant Squirrel) की संख्या में 90% तक की कमी हो सकती है और यदि इनके संरक्षण हेतु तत्काल कदम नहीं उठाए गए तो उस समय तक ये विलुप्त भी हो सकती हैं।

  • वर्ष 1916 में स्थापित भारतीय प्राणी सर्वेक्षण पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) का एक अधीनस्थ संगठन है। इसका मुख्यालय कोलकाता में है।
  • यह देश की समृद्ध प्राणी विविधता के विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी उपलब्ध कराने तथा अग्रणी सर्वेक्षण, अन्वेषण और अनुसंधान को बढ़ावा देने हेतु एक राष्ट्रीय केंद्र है।

प्रमुख बिंदु 

Malayan-Giant-Squirrel

  • वैज्ञानिक नाम: रतुफा बाइकलर (Ratufa bicolor)।
  • विशेषताएँ: 
    • यह विश्व की सबसे बड़ी गिलहरी प्रजातियों में से एक है, जिसके शरीर का ऊपरी भाग गहरे रंग का, नीचे का भाग हल्के रंग का और पूँछ लंबी एवं घनी होती है।
    • रात्रिचर उड़ने वाली गिलहरी के विपरीत मलय गिलहरी दिन में सक्रिय (Diurnal) रहती है, लेकिन यह वृक्षवासी (Arboreal) और उड़ने वाली गिलहरी की तरह ही शाकाहारी होती है।
      • भारत में तीन विशालकाय गिलहरी प्रजातियाँ पाई जाती हैं। मलय विशालकाय गिलहरी के अलावा प्रायद्वीपीय भारत में पाई जाने वाली अन्य दो गिलहरियाँ है- (1) भारतीय विशालकाय गिलहरी (Indian Giant Squirrel) और (2) विशालकाय सफेद-भूरे बालों वाली गिलहरी (Grizzled Giant Squirrel)।
  • आवास:
    • यह अधिकांशतः सदाबहार और अर्द्ध-सदाबहार वनों, मैदानी इलाकों एवं समुद्र तल से 50 मीटर से 1,500 मीटर की ऊँचाई पर पाई जाती है।
    • वैश्विक स्तर पर यह दक्षिणी चीन, थाईलैंड, लाओस, वियतनाम, बर्मा, मलय प्रायद्वीप, सुमात्रा और जावा में पाई जाती है।
    • भारत में ये गिलहरियाँ पूर्वोत्तर के जंगलों में पाई जाती हैं और वर्तमान में पश्चिम बंगाल, सिक्किम, असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय तथा नगालैंड के कुछ हिस्सों में भी पाई जाती हैं।
      • एशिया के लगभग 1.84 लाख वर्ग किमी. गिलहरी रेंज का लगभग 8.5% क्षेत्र भारत में है।
  • महत्त्व:
    • इसे वन स्वास्थ्य संकेतक प्रजाति माना जाता है।
      • एक संकेतक प्रजाति पारिस्थितिकी तंत्र की समग्र स्थिति और उस पारिस्थितिकी तंत्र में निवास करने वाली अन्य प्रजातियों के बारे में जानकारी प्रदान करती है। संकेतक प्रजाति पर्यावरणीय परिस्थितियों के साथ-साथ सामुदायिक संरचना जैसे पहलुओं की गुणवत्ता और परिवर्तनों को भी प्रदर्शित करती है।
  • खतरा:
    • अध्ययन के अनुसार, निर्वनीकरण/वनोन्मूलन, वनों का विखंडन, फसलों का अत्यधिक संवर्द्धन (उर्वरक तथा कीटनाशक आदि का प्रयोग), वनों से प्राप्त खाद्यों का आवश्यकता से अधिक दोहन, अवैध व्यापार और उपभोग के लिये शिकार के चलते यह गिलहरी तथा इसके निवास स्थान खतरे में हैं।
      • पूर्वोत्तर के कई इलाकों में होने वाली स्लेश-एंड-बर्न/झूम कृषि भी इसके आवास विखंडन के लिये उत्तरदायी है।
    • आवासों की क्षति के कारण वर्ष 2050 तक भारत में मलय विशालकाय गिलहरी की आबादी केवल दक्षिणी सिक्किम तथा उत्तरी बंगाल तक सीमित हो सकती है। 
      • भारत में इस गिलहरी के मूल क्षेत्र का केवल 43.38% हिस्सा ही अब इसके अनुकूल है और आशंका है कि वर्ष 2050 तक केवल 2.94% अनुकूल क्षेत्र ही इसके आवास के लिये शेष रह जाए।
      • पिछले दो दशकों के दौरान भारत में गिलहरी की आबादी में 30% की गिरावट आई है।
  • संरक्षण स्तर:

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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