केंद्र द्वारा अलग धर्म के रूप में लिंगायत को मान्यता देने से इनकार | 11 Dec 2018
चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार ने हाल ही में कर्नाटक उच्च न्यायालय को बताया कि उसने पहले ही राज्य सरकार को सूचित किया था कि लिंगायत/वीरशैव समुदाय को अल्पसंख्यक धर्म की स्थिति प्रदान करने हेतु राज्य की सिफारिशों को मानना संभव नहीं है।
प्रमुख बिंदु
- केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय (MMA) ने अदालत के समक्ष 13 नवंबर, 2018 को राज्य सरकार को भेजे गए पत्र की एक प्रति प्रस्तुत की, जिसमें MMA ने अपनी पूर्ववत स्थिति को दोहराया कि लिंगायत/वीरशैव समुदाय को ‘हिंदुओं के एक धार्मिक संप्रदाय’ के रूप में मान्यता दी जाती है।
- लिंगायतों/वीरशैवों को अल्पसंख्यक धर्म की स्थिति प्रदान करने के लिये राज्य सरकार और कर्नाटक राज्य अल्पसंख्यक आयोग (KSMC) द्वारा किये गए कार्यों पर पूछताछ संबंधी याचिकाओं की सुनवाई के दौरान यह पत्र अदालत में जमा किया गया था।
- MMA ने गृह मंत्रालय (MHA) और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) से परामर्श के बाद राज्य को लिखा, "लिंगायत और वीरशैवों द्वारा अलग स्थिति की मांग पर पहले भी विचार किया गया है और यह देखा गया था कि 1871 की जनगणना (भारत में पहली आधिकारिक जनगणना) के बाद से लिंगायत को हमेशा हिंदू धर्म के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है तथा लिंगायत को हिंदू धर्म के धार्मिक संप्रदाय के रूप में माना जाता है ।"
- MHA और NCM द्वारा व्यक्त दृष्टिकोण को उद्धृत करते हुए MMA ने कहा, "अगर लिंगायत/वीरशैव को हिंदू के अलावा अलग संहिता प्रदान करके एक अलग धर्म के रूप में माना जाए, तो निर्धारित धर्म का दावा करने वाले अनुसूचित जाति (SC) के सभी सदस्य अनुसूचित जाति के रूप में प्राप्त अपने सभी लाभों के साथ अनुसूचित जाति के रूप में अपनी स्थिति खो देंगे।"
- MHA ने 24 अगस्त, 2018 के अपने पत्र में MMA को सूचित किया था कि "भारत के रजिस्ट्रार जनरल (RGI) के परामर्श से अलग धर्म के रूप में लिंगायत और वीरशैवों की मान्यता पर विस्तार से विचार किया गया है। यह देखा गया है कि RGI द्वारा आयोजित जनगणना में वीरशैव-लिंगायत को लगातार हिंदुओं के एक संप्रदाय के रूप में वर्गीकृत किया गया है।"
- MMA ने अपने पत्र में कहा, "MHA और NCM के विचारों को ध्यान में रखते हुए मंत्रालय के लिये कर्नाटक सरकार के अनुरोध को मानना संभव नहीं है।"
- 23 मार्च, 2018 को कर्नाटक राज्य सरकार ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिनियम, 1992 की धारा 2(c) के तहत बासवन्ना के दर्शन और शिक्षाओं का पालन करने वाले लिंगायतों तथा वीरशैवों को एक धार्मिक अल्पसंख्यक के रूप मान्यता प्रदान करने के लिये केंद्र से सिफारिश की थी।
- यह सिफारिश अलग अल्पसंख्यक धर्म के रूप में इस समुदाय को मान्यता प्रदान करने की मांग हेतु राज्य सरकार द्वारा किये गए अनुरोध पर KSMC द्वारा गठित विशेषज्ञों के सात सदस्यीय पैनल द्वारा की गई थी।
- कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति एस सुजाता की खंडपीठ, जिसके सामने ये याचिकाएँ सुनवाई के लिये आईं, ने सभी याचिकाओं का निपटान कर दिया क्योंकि केंद्र सरकार द्वारा राज्य की सिफारिश को मानने से इनकार कर देने के बाद राज्य सरकार के कार्यों के खिलाफ उठाए गए प्रश्नों को आगे बढ़ाने के लिये अब कोई औचित्य नहीं रहा।
- उच्च न्यायालय ने 5 जनवरी, 2018 को पारित अपने अंतरिम आदेश में यह स्पष्ट कर दिया था कि अल्पसंख्यक धर्म की स्थिति प्रदान करने पर राज्य की कार्यवाही अदालत के अंतिम निर्णय के अधीन थी। चूँकि याचिकाकर्त्ताओं ने दावा किया था कि राज्य या KSMC के पास KSMC अधिनियम, 1994 के तहत किसी भी समुदाय को अल्पसंख्यक धर्म की स्थिति का अध्ययन या उसकी अनुशंसा करने की कोई शक्ति नहीं है।
कौन हैं लिंगायत?
- बारहवीं सदी में कर्नाटक में ‘बासवन्ना’ के नेतृत्व में एक धार्मिक आंदोलन चला जिसमें बासवन्ना के अनुयायी लिंगायत कहलाए। इन्होंने जन्म के आधार पर नहीं बल्कि कर्म के आधार पर वर्गीकरण की पैरवी की।
- लिंगायत, मृतकों को जलाने की बजाय दफनाते हैं तथा श्राद्ध नियमों का पालन नहीं करते, न तो ब्राह्मणवादी जाति व्यवस्था को मानते हैं और न ही पुनर्जन्म को। इन्होंने मूर्ति पूजा का भी विरोध किया।
- माना जाता है कि वीरशैव तथा लिंगायत एक ही है किंतु लिंगायतों का तर्क है कि वीरशैव का अस्तित्व लिंगायतों से पहले का है तथा वीरशैव मूर्तिपूजक है। वीरशैव वैदिक अनुष्ठानों का पालन करते हैं, जबकि लिंगायत ऐसा नहीं करते।
- कर्नाटक में लगभग 18 प्रतिशत आबादी लिंगायतों की है। ये लंबे समय से हिंदू धर्म से पृथक् धर्म का दर्जा चाहते हैं। अगर इन्हें धार्मिक रूप से अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाता है तो इन्हें भी आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों के आधार पर आरक्षण का फायदा मिलेगा।