शरणार्थियों के लिये कानून | 19 Feb 2022

प्रिलिम्स के लिये:

एनएचआरसी, 1951 शरणार्थी सम्मेलन

मेन्स के लिये:

भारत की शरणार्थी नीति, संविधान का अनुच्छेद 21

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission- NHRC) द्वारा "भारत में बसे शरणार्थियों और यहाँ शरण चाहने वालों के बुनियादी मानवाधिकारों के संरक्षण" पर चर्चा की गई है।

शरणार्थी संबंधी भारत की नीति:

  • भारत में शरणार्थियों की समस्या के समाधान के लिये विशिष्ट कानून का अभाव है, इसके बावजूद उनकी संख्या में लगातार वृद्धि हुई है।
  • विदेशी अधिनियम, 1946 शरणार्थियों से संबंधित समस्याओं के समाधान करने में विफल रहता है। यह केंद्र सरकार को किसी भी विदेशी नागरिक को निर्वासित करने के लिये अपार शक्ति भी देता है।
  • इसके अलावा नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), 2019 से मुसलमानों को बाहर रखा गया है और यह केवल हिंदू, ईसाई, जैन, पारसी, सिख तथा बांग्लादेश, पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान से आए बौद्ध प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करता है।
  • इसके अलावा भारत वर्ष 1951 के शरणार्थी सम्मेलन और शरणार्थी संरक्षण से संबंधित प्रमुख कानूनी दस्तावेज़ 1967 प्रोटोकॉल का पक्षकार नहीं है।
  • इसके वर्ष 1951 के शरणार्थी सम्मेलन और 1967 प्रोटोकॉल के पक्ष में नहीं होने के बावजूद भारत में शरणार्थियों की बहुत बड़ी संख्या निवास करती है। भारत में विदेशी लोगों और संस्कृति को आत्मसात करने की एक नैतिक परंपरा है।
    • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग बनाम स्टेट ऑफ अरुणाचल प्रदेश (1996) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि "सभी अधिकार नागरिकों के लिये उपलब्ध हैं, जबकि विदेशी नागरिकों सहित सभी व्यक्तियों को समानता का अधिकार और जीवन का अधिकार उपलब्ध हैं।"
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद- 21 में शरणार्थियों को उनके मूल देश में वापस नहीं भेजे जाने यानी ‘नॉन-रिफाउलमेंट’ (Non-Refoulement) का अधिकार शामिल है।
    • नॉन-रिफाउलमेंट, अंतर्राष्ट्रीय कानून के अंतर्गत एक सिद्धांत है, जिसके अनुसार, अपने देश से उत्पीड़न के कारण भागने वाले व्यक्ति को उसी देश में वापस जाने के लिये मजबूर नहीं किया जाना चाहिये।

भारत ने अब तक शरणार्थियों पर कानून क्यों नहीं बनाया?

  • शरणार्थी बनाम अप्रवासी: हाल के दिनों में पड़ोसी देशों के कई लोग भारत में राज्य उत्पीड़न के कारण नहीं बल्कि बेहतर आर्थिक अवसरों की तलाश में अवैध रूप से भारत आए हैं।
    • जबकि वास्तविकता यह है कि देश में अधिकतर बहस शरणार्थियों के बजाय अवैध प्रवासियों को लेकर होती है ऐसी स्थिति में सामान्यतः दोनों श्रेणियों को एकीकृत कर दिया जाता है।
  • कानून का दुरुपयोग: देशद्रोहियों, आतंकवादियों और आपराधिक तत्त्वों द्वारा इसका दुरुपयोग किया जा सकता है और इससे देश पर वित्तीय बोझ पड़ेगा।
  • अस्पष्टता: कानून की अनुपस्थिति में भारत के लिये शरणार्थियों के प्रवासन पर निर्णय लेने हेतु तमाम विकल्प खुले हैं। भारत सरकार शरणार्थियों के किसी भी समूह को अवैध आप्रवासी घोषित कर सकती है।
    • उदाहरण के लिये UNHCR के सत्यापन के बावजूद भारत सरकार द्वारा रोहिंग्या शरणार्थियों  (राज्य-विहीन  इंडो-आर्यन जातीय समूह, जो रखाइन राज्य, म्याँमार में रहते हैं) से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिये विदेशी अधिनियम या भारतीय पासपोर्ट अधिनियम के प्रयोग का निर्णय लिया गया। 

शरणार्थियों पर कानून की आवश्यकता

  • दीर्घकालिक व्यावहारिक समाधान: भारत अक्सर शरणार्थियों की एक बड़ी संख्या का सामना करता है। इसलिये एक दीर्घकालिक व्यावहारिक समाधान की आवश्यकता है ताकि भारत एक राष्ट्रीय शरणार्थी कानून बनाकर अपने धर्मार्थ दृष्टिकोण से अधिकार-आधारित दृष्टिकोण में बदलाव कर सके।
  • मानवाधिकारों का पालन करना: एक राष्ट्रीय शरणार्थी कानून सभी प्रकार के शरणार्थियों के लिये शरणार्थी-स्थिति निर्धारण प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करेगा और अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत उनके अधिकारों की गारंटी देगा।
  • सुरक्षा चिंताओं को संबोधित करना: यह भारत की सुरक्षा चिंताओं को पर्याप्त रूप से संबोधित कर सकता है, साथ ही यह सुनिश्चित करता है कि राष्ट्रीय-सुरक्षा चिंताओं की आड़ में कोई गैर-कानूनी हिरासत या निर्वासन न किया जाए।
  • शरणार्थियों के उपचार में असंगति: भारत में शरणार्थी आबादी का बड़ा हिस्सा श्रीलंका, तिब्बत, म्याँमार और अफगानिस्तान आए लोगों का है।
    • हालाँकि केवल तिब्बती और श्रीलंकाई शरणार्थियों को सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है। उन्हें सरकार द्वारा तैयार की गई विशिष्ट नीतियों एवं नियमों के माध्यम से सुरक्षा व सहायता प्रदान की जाती है।

शरणार्थी:

  • एक शरणार्थी वह व्यक्ति है जिसने मानवाधिकारों के उल्लंघन तथा उत्पीड़ित होने के भय से अपने देश से पलायन किया है। 
  • उनकी सुरक्षा और जीवन का ज़ोखिम इतना अधिक बढ़ जाता है कि अपने देश से बाहर जाने और सुरक्षा की तलाश करने के अलावा उन्हें कोई विकल्प नज़र नहीं आता है।
  • ऐसा इसलिये है क्योंकि उनकी अपनी सरकार उन खतरों से उनकी रक्षा नहीं कर सकती है
  • शरणार्थियों को अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण का अधिकार है।

शरण तलाशने वाला:

  • शरण चाहने वाला (Asylum-Seeker) वह व्यक्ति होता है जो अपना देश छोड़ चुका है और दूसरे देश में उत्पीड़न एवं गंभीर मानवाधिकारों के उल्लंघन से सुरक्षा की मांग करता है।
    • हालाँकि इन्हें अभी तक कानूनी रूप से शरणार्थी के रूप में मान्यता नहीं मिली है और ये अपने शरण के दावे पर निर्णय की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
  • शरण मांगना मानवाधिकार है।
  • इसका मतलब है कि सभी को शरण लेने के लिये दूसरे देश में प्रवेश करने की अनुमति दी जानी चाहिये।

प्रवासी:

  • प्रवासी की कोई अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत कानूनी परिभाषा नहीं है।
  • प्रवासियों को अपने मूल देश से बाहर रहने वाले लोगों के रूप में समझा जा सकता है, जो शरण चाहने वाले या शरणार्थी नहीं हैं।
  • उदाहरण के लिये कुछ प्रवासी अपना देश छोड़ देते हैं क्योंकि वे कार्य करना, अध्ययन करना या परिवार में शामिल होना चाहते हैं।
  • ये गरीबी, राजनीतिक अशांति, सामूहिक हिंसा, प्राकृतिक आपदाओं या अन्य गंभीर परिस्थितियों के कारण अपना देश नहीं छोड़ते।

आगे की राह

  • विशेषज्ञ समिति द्वारा मॉडल कानूनों में संशोधन: शरण और शरणार्थियों पर मॉडल कानून जो दशकों पहले राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) द्वारा तैयार किये गए लेकिन सरकार द्वारा लागू नहीं किये गए थे, को एक विशेषज्ञ समिति द्वारा संशोधित किया जा सकता है।
    • यदि ऐसे कानून बनाए जाते हैं तो यह मानवाधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए कानूनी संरक्षण और एकरूपता प्रदान करेगा।
  • कानून एक निवारक के रूप में कार्य कर सकता है: यदि भारत में शरणार्थियों के संबंध में घरेलू कानून होता तो यह किसी भी पड़ोसी देश में दमनकारी सरकार को उनकी आबादी को सताने और उन्हें भारत आने से रोक सकता था।

स्रोत: द हिंदू