कार्बी एंगलोंग समझौता | 06 Sep 2021
प्रिलिम्स के लिये:कार्बी एंगलोंग समझौता, कार्बी, डिमासा, बोडो, कुकी मेन्स के लिये:कार्बी एंगलोंग समझौता एवं इसकी प्रासंगिकता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में असम के पाँच विद्रोही समूहों, केंद्र और राज्य सरकार के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- यह समझौता उग्रवाद मुक्त समृद्ध उत्तर-पूर्व के दृष्टिकोण के साथ समन्वित है, जिसमें पूर्वोत्तर के सर्वांगीण विकास, शांति और समृद्धि की परिकल्पना की गई है।
प्रमुख बिंदु
- कार्बी एंगलोंग संकट:
- मध्य असम में स्थित, कार्बी एंगलोंग राज्य का सबसे बड़ा ज़िला है और नृजातीय तथा आदिवासी समूहों - कार्बी, डिमासा, बोडो, कुकी, हमार, तिवा, गारो, मान (ताई बोलने वाले), रेंगमा नागा संस्कृतियों का मिलन बिंदु है। इसकी विविधता ने विभिन्न संगठनों को भी जन्म दिया और उग्रवाद को बढ़ावा दिया जिसने इस क्षेत्र को विकसित नहीं होने दिया।
- कार्बी असम का एक प्रमुख जातीय समूह है, जो कई गुटों और इनके भागों से घिरा हुआ है। कार्बी समूह का इतिहास 1980 के दशक के उत्तरार्द्ध से हत्याओं, जातीय हिंसा, अपहरण और कराधान से युक्त रहा है।
- कार्बी एंगलोंग ज़िले के विद्रोही समूह जैसे पीपुल्स डेमोक्रेटिक काउंसिल ऑफ कार्बी लोंगरी (पीडीसीके), कार्बी लोंगरी एनसी हिल्स लिबरेशन फ्रंट (केएलएनएलएफ) आदि एक अलग राज्य बनाने की मुख्य मांग से उत्पन्न हुए।
- उग्रवादी समूहों की कुछ अन्य मांगें इस प्रकार हैं:
- कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (KAAC) में कुछ क्षेत्रों को शामिल करना।
- अनुसूचित जनजातियों के लिये सीटों का आरक्षण।
- परिषद को अधिक अधिकार।
- आठवीं अनुसूची में कार्बी भाषा को शामिल करना।
- 1,500 करोड़ रुपए का वित्तीय पैकेज।
नोट:
- कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (KAAC) एक स्वायत्त ज़िला परिषद है, जो भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत संरक्षित है।
- कार्बी-आंगलोंग शांति समझौते की मुख्य विशेषताएँ:
- कार्बी संगठनों ने आत्मसमर्पण किया: 5 उग्रवादी संगठनों (KLNLF, PDCK, UPLA, KPLT और KLF) ने हथियार डाल दिये और उनके 1000 से अधिक सशस्त्र कैडरों ने हिंसा छोड़ दी तथा समाज की मुख्यधारा में शामिल हो गए।
- विशेष विकास पैकेज: कार्बी क्षेत्रों के विकास के लिये विशेष परियोजनाएँ शुरू करने हेतु केंद्र सरकार और असम सरकार द्वारा पाँच वर्षों में 1000 करोड़ रुपए का विशेष विकास पैकेज आवंटित किया जाएगा।
- KAAC को अधिक स्वायत्तता: यह समझौता असम की क्षेत्रीय और प्रशासनिक अखंडता को प्रभावित किये बिना कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद को अपने अधिकारों का प्रयोग करने हेतु यथासंभव स्वायत्तता हस्तांतरित करेगा।
- कुल मिलाकर वर्तमान समझौते में KAAC को अधिक विधायी, कार्यकारी, प्रशासनिक और वित्तीय शक्तियांँ देने का प्रस्ताव है।
- पुनर्वासः इस समझौते में सशस्त्र समूहों के कैडरों के पुनर्वास का प्रावधान किया गया है।
- स्थानीय लोगों का विकास: असम सरकार KAAC क्षेत्र के बाहर रहने वाले कार्बी लोगों के विकास पर ध्यान केंद्रित करने हेतु एक कार्बी कल्याण परिषद (Karbi Welfare Council) की स्थापना करेगी।
- यह समझौता कार्बी लोगों की संस्कृति, पहचान, भाषा आदि की सुरक्षा और क्षेत्र के सर्वांगीण विकास को भी सुनिश्चित करने में सहायक होगा।
- KAAC को संसाधनों की आपूर्ति करने हेतु राज्य की संचित निधि में संशोधन किया जाएगा।
- पूर्वोत्तर के अन्य हालिया शांति समझौते:
- NLFT त्रिपुरा समझौता, 2019: ‘नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा’ (NLFT) को वर्ष 1997 से गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया है और यह अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर अपने शिविरों के माध्यम से हिंसा फैलाने के लिये उत्तरदायी है।
- NLFT ने 10 अगस्त, 2019 को भारत सरकार और त्रिपुरा के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये।
- इसके तहत भारत सरकार द्वारा पाँच वर्ष की अवधि के लिये 100 करोड़ रुपए के ‘विशेष आर्थिक विकास पैकेज’ (SEDP) की पेशकश की गई है।
- ब्रू समझौता, 2020 : ब्रू या रेयांग (Bru or Reang) पूर्वोत्तर भारत का एक जनजातीय समुदाय है, ये लोग मुख्यतः त्रिपुरा, मिज़ोरम तथा असम में रहते हैं। त्रिपुरा में इन्हें विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- मिज़ोरम में इन्हें उन समूहों द्वारा निशाना बनाया गया है जो उन्हें राज्य के लिये स्वदेशी नहीं मानते हैं।
- 1997 में जातीय संघर्षों के बाद लगभग 37,000 ब्रू मिज़ोरम से भाग गए तथा उन्हें त्रिपुरा में राहत शिविरों में ठहराया गया।
- ब्रू समझौते के तहत त्रिपुरा में 6959 ब्रू परिवारों के लिये वित्तीय पैकेज सहित स्थायी बंदोबस्त पर भारत सरकार, त्रिपुरा और मिज़ोरम के बीच ब्रू प्रवासियों के प्रतिनिधियों के साथ सहमति बनी है।
- बोडो शांति समझौता: असम में अधिसूचित अनुसूचित जनजातियों में बोडो सबसे बड़ा समुदाय है। वे 1967-68 से बोडो राज्य की मांग कर रहे हैं।
- NLFT त्रिपुरा समझौता, 2019: ‘नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा’ (NLFT) को वर्ष 1997 से गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया है और यह अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर अपने शिविरों के माध्यम से हिंसा फैलाने के लिये उत्तरदायी है।