अतंर्राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक, 2019 | 11 Jul 2019
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अतंर्राज्यीय नदियों के जल और नदी घाटी से संबंधित विवादों के न्यायिक निर्णय के लिये अतंर्राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक [Inter-State River Water disputes(Amendment) Bill] 2019 को मंज़ूरी दे दी है।
प्रमुख बिंदु
- यह विधेयक अतंर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 (Inter State River Water Disputes Act, 1956) में संशोधन का प्रावधान करता है।
- इसका उद्देश्य अतंर्राज्यीय नदी जल विवादों के न्यायिक निर्णय को सरल और कारगर बनाना और मौजूदा संस्थागत ढाँचे को मज़बूत बनाना है।
- प्रभाव:
- न्यायिक निर्णय के लिये सख्त समय सीमा निर्धारण और विभिन्न बैंचों के साथ एकल न्यायाधिकरण के गठन से अतंर्राज्यीय नदियों से संबंधित विवादों तथा न्यायाधिकरण को सौंपे गए जल विवादों का तेज़ी से समाधान करने में मदद मिलेगी।
- इस विधेयक में संशोधनों से न्यायिक निर्णय में तेज़ी आएगी।
जल-विवाद न्यायाधिकरण का गठन
- जब किसी राज्य सरकार से अतंर्राज्यीय नदियों के बारे में जल विवाद के संबंध में कोई अनुरोध अतंर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 के तहत प्राप्त हो और केंद्र सरकार का यह मत हो कि बातचीत के द्वारा जल विवाद का समाधान नही हो सकता तो केंद्र सरकार जल विवाद के न्यायिक निर्णय के लिये जल विवाद न्यायाधिकरण का गठन करती है।
नदी जल विवाद से जुड़े संवैधानिक प्रावधान
- अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद के निपटारे हेतु भारतीय संविधान के अनुच्छेद 262 में प्रावधान है।
- अनुच्छेद 262(2) के तहत सर्वोच्च न्यायालय को इस मामले में न्यायिक पुनरावलोकन और सुनवाई के अधिकार से वंचित किया गया है।
- अनुच्छेद 262 संविधान के भाग 11 का हिस्सा है जो केंद्र-राज्य संबंधों पर प्रकाश डालता है।
- अनुच्छेद 262 के आलोक में अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 का आगमन हुआ।
- इस अधिनियम के तहत संसद को अंतर्राज्यीय नदी जल विवादों के निपटारे हेतु अधिकरण बनाने की शक्ति प्रदान की गई, जिसका निर्णय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बराबर महत्त्व रखता है।
- इस कानून में खामी यह थी कि अधिकरण के गठन और इसके फैसले देने में कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई थी।
- सरकारिया आयोग (1983-88) की सिफरिशों के आधार पर 2002 में अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 में संशोधन कर अधिकरण के गठन में विलंब वाली समस्या को दूर कर दिया गया।
निष्कर्ष
जल एक सीमित संसाधन है और इसकी मांग मानव सभ्यता के विकास के साथ-साथ बढ़ती ही जा रही है। घटते जल-स्रोत और बढ़ती आवश्यकता, मांग-आपूर्ति के संतुलन को बिगाड़ते हैं जिससे नदी जल विवाद पैदा होता है। देश में कई नदी जल विवाद विभिन्न राज्यों के बीच लंबे समय से चल रहे हैं, जो एक गंभीर विषय है। अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद के निपटारे हेतु बने नियम-कानूनों की अस्पष्टता और शिथिलता भी नदी जल विवाद के राजनीतिकरण को बढ़ावा देती है जिससे यह समस्या सुलझने की बजाय उलझती ही चली जाती है और नदी जल विवाद का कारण बनती है।