मणिपुर में इनर-लाइन परमिट | 28 Dec 2020
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री ने मणिपुर में विभिन्न विकास परियोजनाओं का उद्घाटन करते हुए राज्य में इनर-लाइन परमिट (ILP) प्रणाली के महत्त्व पर प्रकाश डाला।
- इन विकास परियोजनाओं में थौबल बहुउद्देशीय परियोजना (थौबल बाँध) और इंफाल में एकीकृत कमान तथा नियंत्रण केंद्र आदि शामिल हैं।
- थौबल बहुउद्देशीय परियोजना को पहली बार योजना आयोग द्वारा वर्ष 1980 में स्वीकार किया गया था और परियोजना की मूल लागत 47.25 करोड़ रुपए थी।
- हालाँकि वर्ष 2014 तक इस संबंध में कुछ नहीं हो सका और परियोजना कागज़ पर ही रही।
- यह मणिपुर नदी की सहायक थौबल नदी पर स्थित है और इससे 35,104 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा सकेगी।
प्रमुख बिंदु
- मणिपुर के लोगों द्वारा लंबे समय से इनर-लाइन परमिट (ILP) की मांग की जा रही थी, जिसे देखते हुए नगालैंड के दिमारपुर ज़िले के साथ संपूर्ण मणिपुर को इनर-लाइन परमिट (ILP) प्रणाली के दायरे में लाया गया था।
- नगालैंड का दीमापुर ज़िला अभी तक इनर-लाइन परमिट व्यवस्था से बाहर था क्योंकि यह राज्य का एक महत्त्वपूर्ण वाणिज्यिक शहर है एवं यहाँ मिश्रित जनसंख्या निवास करती है, जिसे प्रायः ‘मिनी इंडिया’ भी कहा जाता है।
- पूर्वोत्तर में कई समूह इनर-लाइन परमिट व्यवस्था को अवैध आप्रवासियों के प्रवेश के विरुद्ध ढाल के रूप में देखते हैं।
- नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और मिज़ोरम को ILP के कारण ही नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) 2019 के प्रावधानों से छूट दी गई थी।
- इस अधिनियम के तहत अवैध प्रवासियों के लिये नागरिकता से संबंधित प्रावधान संविधान की छठी अनुसूची में शामिल असम, मेघालय, मिज़ोरम और त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों तथा ‘इनर-लाइन परमिट’ प्रणाली के तहत आने वाले क्षेत्रों पर लागू नहीं होंगे।
- दिसंबर 2019 में मेघालय विधानसभा ने राज्य में ‘इनर-लाइन परमिट’ प्रणाली को लागू करने के लिये एक प्रस्ताव अपनाया था और केंद्र से राज्य को इस प्रणाली के तहत शामिल करने का आग्रह किया था।
‘इनर-लाइन परमिट’ प्रणाली
- ‘बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन एक्ट, 1873’ के तहत कार्यान्वित ‘इनर-लाइन परमिट’ एक आधिकारिक यात्रा दस्तावेज़ होता है, जो कि एक सीमित अवधि के लिये संरक्षित/प्रतिबंधित क्षेत्र में भारतीय नागरिकों को जाने अथवा रहने की अनुमति देता है।
- इस अधिनियम को ब्रिटिश काल के दौरान ब्रिटिश सरकार ने अपने वाणिज्यिक हितों की रक्षा करने के लिये लागू किया था, ताकि इन प्रतिबंधित क्षेत्रों के भीतर अन्य भारतीय क्षेत्रों से आने वाले लोगों को व्यापार करने से रोका जा सके।
- इस प्रणाली के तहत प्रतिबंधित क्षेत्रों और शेष भारत को दो हिस्सों में विभाजित करने के लिये एक काल्पनिक रेखा बनाई गई है, जिसे ‘इनर-लाइन’ के रूप में जाना जाता है, इसका उद्देश्य शेष भारत के किसी भी अन्य नागरिक को बिना परमिट के प्रतिबंधित क्षेत्र में जाने से रोकना है।
- 1873 के विनियमन की धारा 2 के तहत ‘इनर-लाइन परमिट’ पूर्वोत्तर के केवल तीन राज्यों (मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड) पर लागू होता था।
- 11 दिसंबर, 2019 को राष्ट्रपति की मंज़ूरी के बाद मणिपुर देश का चौथा ऐसा राज्य बना जहाँ ILP प्रणाली लागू होती है।
- इसके तहत देश के अन्य क्षेत्रों से आने वाले लोगों को अधिसूचित राज्यों में प्रवेश करने हेतु एक विशेष परमिट की आवश्यकता होती है, जिसे प्राप्त करना अनिवार्य होता है।
- यह पूर्णतः यात्रा के प्रयोजन से संबंधित राज्य सरकार द्वारा जारी किया जाता है।
- विदेशी पर्यटकों को इन राज्यों में जाने के लिये एक संरक्षित क्षेत्र परमिट (PAP) की आवश्यकता होती है, जो कि घरेलू पर्यटकों को जारी किये जाने वाले ‘इनर-लाइन परमिट’ से भिन्न होता है।
- विदेशी नागरिक (संरक्षित क्षेत्र) आदेश, 1958 के तहत ‘इनर-लाइन’ और देश की अंतर्राष्ट्रीय सीमा के बीच पड़ने वाले सभी क्षेत्रों को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है।
- एक विदेशी नागरिक को आमतौर पर किसी संरक्षित/प्रतिबंधित क्षेत्र में जाने की अनुमति तब तक नहीं दी जाती है, जब तक कि सरकार इस तथ्य से संतुष्ट नहीं हो जाती है कि वह विदेशी नागरिक विशिष्ट कारणों से इन क्षेत्रों की यात्रा कर रहा है।
भारत के साथ मणिपुर का विलय
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