भारत-भूटान संबंध | 19 Aug 2019
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत और भूटान के बीच सहयोग के संदर्भ में एक नया खाका प्रस्तुत किया, प्रधानमंत्री की घोषणा के अनुसार अब जल विद्युत क्षेत्र (Hydel Power Sector) के अतिरिक्त अंतरिक्ष, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे नए क्षेत्रों में भूटान के साथ सहयोग किया जाएगा।
मुख्य बिंदु
- प्रधानमंत्री ने भूटान के अधिक-से-अधिक छात्रों को बौद्ध धर्म जैसे पारंपरिक क्षेत्रों में अध्ययन करने के लिये भारत आने का निमंत्रण दिया है।
- इस यात्रा के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा 720 मेगावाट की मांगदेछु जल विद्युत परियोजना का उद्घाटन किया गया।
- भारत और भूटान ने संयुक्त रूप से ग्राउंड अर्थ स्टेशन (Ground Earth Station) और SATCOM नेटवर्क का उद्घाटन किया, जिसे भूटान में दक्षिण एशिया उपग्रह के उपयोग के लिये इसरो की सहायता से विकसित किया गया है। यह अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से भूटान के विकास को सुविधाजनक बनाने संबंधी भारत की प्रतिबद्धता का प्रतीक है।
- भारत, भूटान के साथ ई-स्कूलों (e-schools), अंतरिक्ष (space) और डिजिटल भुगतान (Digital Payment) से लेकर आपदा प्रबंधन तक बड़े पैमाने पर सहयोग करने की कोशिश कर रहा है। इस समय भूटान के चार हज़ार से अधिक छात्र भारत में अध्ययनरत हैं तथा इस संख्या में और अधिक वृद्धि की जा सकती है।
- भारत के प्रमुख IIT और भूटान के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के बीच कनेक्टिविटी से शिक्षा एवं अनुसंधान के क्षेत्र में अधिक सहयोग संभव होगा, किंतु भारत में भूटानी छात्रों की गिरती हुई संख्या चिंता का विषय है।
- कुछ विद्वानों ने भूटान से भारत के आर्थिक संबंधों को फिर से परिभाषित करने की मांग की थी, जिससे भूटान में अधिक निवेश संभव हो सके। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री की भूटान यात्रा लाभदायक साबित हो सकती है।
1949 की भारत-भूटान संधि
भारत की आज़ादी के बाद 8 अगस्त, 1949 को भारत और भूटान के बीच दार्जिलिंग में एक संधि पर हस्ताक्षर हुए थे जिसमें अनेक प्रावधान शामिल थे। काफी लंबे समय तक इस संधि के जारी रहने के बाद भूटान के आग्रह पर 8 फरवरी, 2007 को इसमें बदलाव कर इसे अद्यतन बनाया गया। अद्यतन संधि में यह उल्लेख है कि भारत और भूटान के बीच स्थायी शांति एवं मैत्री होगी।
दोनों देशों के बीच संबंधों को लेकर चुनौतियाँ
- आज का लोकतांत्रिक भूटान अपनी संप्रभुता के एक महत्त्वपूर्ण आयाम के रूप में स्वतंत्र विदेश नीति के लिये प्रयास कर रहा है ताकि भारत के साथ उसके प्रगाढ़ संबंध बने रहें और चीन सहित अन्य शक्तियों से भी संतुलन सधा रहे। निवेश की आकांक्षा से अपने उत्तर-पूर्व पड़ोसी चीन के प्रति आकर्षण से भूटान इसलिये भी स्वयं को बचाता है, क्योंकि भारत से उसके संबंध बेहद विश्वासपूर्ण रहे हैं।
- लेकिन डोकलाम की घटना के बाद चीन की विस्तारवादी नीति ने दोनों देशों के सामने सीमा सुरक्षा संबंधी चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैं। चीन भूटान के साथ औपचारिक राजनयिक और आर्थिक संबंध स्थापित करने का इच्छुक है तथा कुछ हद तक भूटान के लोग भी चीन के साथ व्यापार और राजनयिक संबंधों का समर्थन कर रहे हैं। इससे आने वाले समय में भारत के सामने कुछ अन्य चुनौतियाँ खड़ी हो सकती हैं।
- भारत को भूटान की चिंताओं को दूर करने के लिये मज़बूती से काम करने की आवश्यकता है, क्योंकि भूटान में चीनी हस्तक्षेप बढ़ने से भारत-भूटान के मज़बूत द्विपक्षीय संबंधों की नींव कमज़ोर पड़ने का खतरा है। भूटान का राजनीतिक रूप से स्थिर होना भारत की सामरिक और कूटनीतिक रणनीति के लिहाज़ से बेहद महत्त्वपूर्ण है।
निष्कर्ष
विदित हो कि पिछले कई दशकों से भूटान के साथ संबंध भारत की विदेश नीति का एक स्थायी कारक रहा है। साझा हितों और पारस्परिक रूप से लाभप्रद सहयोग पर आधारित अच्छे पड़ोसी के संबंधों का यह उत्कृष्ट उदाहरण है। यह इस बात का प्रतीक है कि दक्षिण एशिया की साझा नियति है। यही वज़ह है कि आज परिपक्वता, विश्वास, सम्मान और समझ-बूझ तथा निरंतर विस्तृत होते कार्यक्षेत्र में संयुक्त प्रयास भारत-भूटान संबंधों की विशेषता है।