भारतीय रेशम उद्योग : एक परिदृश्य | 24 Mar 2018
संदर्भ
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने रेशम उद्योग के विकास के लिये एकीकृत योजना को मंज़ूरी दी है। इससे 2020 तक उच्च गुणवत्ता वाले रेशम (बाईवोल्टाइन) के उत्पादन में 62% की वृद्धि होने का अनुमान है।
- केंद्रीय वस्त्र मंत्रालय के मुताबिक़ भारत 2020 तक रेशम उत्पादन में आत्मनिर्भर हो जाएगा।
- मल्टीवोल्टाइन रेशम पीले रंग का होता है और इसे वर्ष भर प्राप्त किया जा सकता है। बाइवोल्टाइन रेशम सफ़ेद रंग का होता है और यह बहुत ही नरम होता है। इसे सबसे अच्छी गुणवत्ता वाला रेशम माना जाता है।
प्रमुख बिंदु
- सरकार का लक्ष्य रेशम क्षेत्र में कार्यरत लोगों की संख्या को 85 लाख से बढ़ाकर अगले तीन वर्षों में एक करोड़ करना है। इस क्षेत्र में 50,000 लोगों को प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा।
- वस्त्र मंत्रालय के अंतर्गत संबंधित मंत्रालयों की एक अंतर-मंत्रालयी समिति गठित की जाएगी, जो शोध और विकास के लिये 1000 करोड़ रुपए की धनराशि संवितरित करेगी।
- डिजिटल इंडिया के अंतर्गत बीज उत्पादन तथा अन्य गतिविधियों में संलग्न किसानों को वेब आधारित समाधान उपलब्ध कराए जाएंगे।
- किसान और बीज उत्पादकों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के ज़रिये सब्सिडी का सीधा भुगतान किया जाएगा।
- बाज़ार के विकास हेतु देश के प्रमुख रेशम उत्पादक राज्यों में 21 कोकून परीक्षण केंद्रों की स्थापना की जा रही है।
- एकल किसानों एवं रेशम उत्पादकों द्वारा अवसंरचना विकास की केंद्र सरकार द्वारा वित्तीय रूप से सहायता की जाएगी जो लागत का 50% तक वहन करेगी।
- अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग से संबंधित लाभार्थियों के लिये केंद्र सरकार लागत का 65% वहन करेगी।
- पूर्वोत्तर राज्यों, जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड एवं छत्तीसगढ़ के लाभार्थियों के मामले में केंद्र सरकार लागत का 80% वहन करेगी।
- शिकायतों के समय पर समाधान एवं जनसंपर्क कार्यक्रमों के लिये एक हेल्पलाइन की स्थापना की जाएगी।
रेशम क्या है?
- रेशम, रसायन की भाषा में रेशमकीट के रूप में विख्यात इल्ली द्वारा निकाले जाने वाले एक प्रोटीन से बना होता है।
- ये रेशमकीट कुछ विशेष खाद्य पौधों पर पलते हैं तथा अपने जीवन को बनाए रखने के लिये ‘सुरक्षा कवच’ के रूप में कोकून का निर्माण करते हैं।
- रेशमकीट का जीवन-चक्र 4 चरणों अण्डा (egg), इल्ली (caterpillar), प्यूपा (pupa) तथा शलभ (moth) से निर्मित होता है।
- रेशम प्राप्त करने के लिये इसके जीवन-चक्र में कोकून के चरण पर अवरोध डाला जाता है जिससे व्यावसायिक महत्त्व का तंतु (Silk) निकाला जाता है तथा इसका इस्तेमाल वस्त्र की बुनाई में किया जाता है।
- व्यावसायिक महत्त्व के दृष्टिकोण से रेशम की कुल 5 किस्में होती हैं जो रेशमकीट की विभिन्न प्रजातियों से प्राप्त होती हैं और विभिन्न खाद्य पौधों पर पलती हैं। ये किस्में निम्नलिखित हैं-
♦ शहतूत (Mulberry)
♦ ओक तसर (Oak Tasar)
♦ उष्णकटिबंधीय तसर(Tropical Tasar)
♦ मूगा (Muga)
♦ एरी (Eri) - भारत में इन सभी प्रकार के वाणिज्यिक रेशम का उत्पादन होता है।
- शहतूत के अलावा रेशम के अन्य गैर-शहतूती किस्मों को सामान्य रूप में वन्या कहा जाता है।
रेशम का वितरण
- विश्व का 90% से भी अधिक रेशम एशिया में उत्पादित होता है।
- रेशम उत्पादन के मामले में भारत, चीन के बाद द्वितीय स्थान पर है और साथ ही भारत विश्व में रेशम का सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है।
- भारत में शहतूत रेशम का उत्पादन मुख्यतया कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, जम्मू व कश्मीर तथा पश्चिम बंगाल में किया जाता है, जबकि गैर-शहतूत रेशम का उत्पादन झारखण्ड, छत्तीसगढ़, ओडिशा तथा उत्तर-पूर्वी राज्यों में होता है।
- वर्तमान में 26 रेशम उत्पादक एवं उपभोक्ता राज्यों में से केवल 17 के पास ही अलग विभाग या रेशम कीट पालन निदेशालय है।
रेशम उत्पादन
- कच्चा रेशम बनाने के लिये रेशम के कीटों का पालन सेरीकल्चर या रेशमकीट पालन कहलाता है।
- रेशम उत्पादन कृषि-आधारित एक कुटीर उद्योग है जिसमें बड़ी मात्रा में रेशम प्राप्त करने के लिये रेशमकीट पालन किया जाता है।
- कच्चा रेशम एक धागा होता है जिसे कुछ विशेष कीटों द्वारा काते गए कोकुनों से प्राप्त किया जाता है।
- रेशम उत्पादन के मुख्य कार्य-कलापों में रेशम कीटों के आहार के लिये खाद्य पौध कृषि तथा कीटों द्वारा बुने हुए कोकुनों से रेशम तंतु निकालना, इसका प्रसंस्करण तथा बुनाई आदि की प्रक्रिया सन्निहित है।
- रेशम उत्पादन के लाभ-
♦ रोज़गार सृजन की पर्याप्त क्षमता।
♦ ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार।
♦ कम समय में अधिक आय।
♦ महिलाओं के अनुकूल व्यवसाय।
♦ समाज के कमज़ोर वर्ग के लिये आदर्श कार्यक्रम।
♦ पर्यावरण-अनुकूल कार्यकलाप।
♦ समानता संबंधी मुद्दों की पूर्ति।
विशिष्ट डिज़ाइन एवं बुनाई के संदर्भ में भारत के विख्यात रेशम केंद्र
बनारस की ज़री
- वाराणसी अपनी सुंदर रेशमी साड़ियों एवं ज़री के लिये प्रसिद्ध है। ये साड़ियाँ हल्के रंग पर पत्ती, फूल, फल, पक्षी आदि की घनी बुनाई वाली डिज़ाइन के लिये प्रसिद्ध हैं।
- इन साड़ियों में क्लिष्ट बार्डर तथा अच्छी तरह का सजा पल्लू होता है। बनारस का कमखाब एक पौराणिक परिधान है।
- इसमें सोने तथा चांदी के धागों की सुनहरी बुनावट होती है । शुद्ध रेशम में सोने की कारीगरी को बाफ्ता कहते हैं, जबकि रंग-बिरंगे रेशम में महीन ज़री को आमरु।
बांधकर रंगाई करने की कला (Tie and Die)
- भारत में अवरोध रंगाई की तकनीक सदियों से चली आ रही है।
- इस तकनीक की मुख्य दो परंपराएँ हैं। पटोला अथवा ईकत तकनीक में धागों को बांधकर अवरोध-रंगाई की जाती है जबकि बंधेज अथवा बंधिनी में वस्त्रों की रंगाई की जाती है।
उड़ीसा का ईकत
- उड़ीसा में बांधकर रंगाई करने एवं बुनने को ईकत के नाम से जाना जाता है जिसमें ताने एवं बाने को बांधकर अवरोध करते हुए रंगों को विकीर्ण किया जाता है। ईकत की इस बुनाई में शहतूत एवं तसर दोनों इस्तेमाल में लाए जाते हैं।
गुजरात का पटोला
- पटोला अपनी सूक्ष्मता, बारीकी एवं सौंदर्य के लिये प्रसिद्ध है। इसमें पांच या छह पारंपरिक रंगों जैसे- लाल, जामुनी, नीला, हरा, काला या पीला के साथ अवरोध विधि से ताने एवं बाने को रंगा जाता है तथा बेहतरीन रंग एवं आकृति के धरातल पर ज्यामिति शैली की पूर्णता के साथ पक्षी, पुष्प, पशु, नर्तक-नर्तकी आदि का सौंदर्य उभारा जाता है।
बन्धेज का नृत्य प्रदर्शन
- बन्धेज अथवा बंधिनी में महीन बुने हुए वस्त्र को कस कर बांध दिया जाता है तथा विशेष डिज़ाइन को बनाने के लिये रंगाई की जाती है।
- कच्छ की बंधिनी सूक्ष्म रूप से बंधी गाँठ, रंगों की उत्कृष्टता तथा डिज़ाइन की पूर्णता में अद्वितीय है।
गुजरात की तनछुई
- तनछुई ज़री का नामकरण 3 पारसी भाइयों जिन्हें छुई के नाम से जाना जाता है, के नाम पर हुआ जिन्होंने इस कला को चीन में सीखा तथा सूरत में इसे प्रदर्शित किया।
- तनछुई ज़री में सामान्यतया गाढ़ी साटिन बुनाई, धरातल में बैंगनी या गाढ़ा रंग तथा पूरी डिज़ाइन में पुष्प, लता, पक्षी आदि का मूल भाव होता है।
दक्षिण के मंदिर-क्षेत्र का रेशम
- दक्षिण भारत देश में रेशम उत्पादन के क्षेत्र में अग्रणी है तथा कांचीपुरम, धर्मावरम, आर्नी आदि बुनाई के लिये प्रसिद्ध है।
- कांचीपुरम मंदिर-नगर के रूप में विख्यात है तथा यहाँ चाँदी अथवा सोने की ज़री के साथ चमकीले रंग की भारी साड़ियाँ महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। बंगलूरू तथा मैसूर उत्कृष्ट प्रिंटेड रेशम के केंद्र के रूप में जाने जाते हैं।