भारतीय कानून और इंटरनेट सामग्री का अवरोधन: केंद्र बनाम ट्विटर | 13 Feb 2021
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार ने किसानों के विरोध प्रदर्शन पर कथित रूप से उत्तेजक सामग्री और गलत सूचना के प्रसार में शामिल एक हज़ार से अधिक खातों को अवरुद्ध/ब्लॉक करने के अपने आदेश का पालन न करने के लिये ट्विटर (माइक्रो-ब्लॉगिंग वेबसाइट) को फटकार लगाई।
प्रमुख बिंदु:
वर्तमान मुद्दा:
- केंद्र सरकार ने माइक्रो-ब्लॉगिंग साइट ट्विटर को नोटिस जारी किया है क्योंकि ट्विटर ने हाल ही में 250 से अधिक ऐसे खातों को बहाल किया है जिन्हें पूर्व में सरकार की 'कानूनी मांग' पर निलंबित कर दिया गया था।
- सरकार की मांग है कि ट्विटर 31 जनवरी, 2021 को जारी किये गए आदेश का पालन करे, जिसमें ट्विटर को कुछ खातों और एक विवादास्पद हैशटैग को ब्लॉक करने के लिये कहा गया था, जो सार्वजनिक व्यवस्था को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकते थे। साथ ही इस हैशटैग में कथित रूप से विरोध प्रदर्शनों के बारे में गलत सूचना को बढ़ावा देने के लिये किसानों के आसन्न 'नरसंहार' की बात की गई थी।
- ट्विटर ने स्वयं ही इन खातों और ट्वीट्स को बहाल कर दिया और बाद में इस निर्णय को वापस लेने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि ये खाते और ट्वीट्स इसकी नीति का उल्लंघन नहीं करते।
इंटरनेट सेवाओं/सामग्री को ब्लॉक करने से संबंधित कानून:
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000:
- भारत में समय-समय पर संशोधित सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम, 2000, कंप्यूटर संसाधनों के उपयोग से संबंधित सभी गतिविधियों को नियंत्रित करता है।
- इसमें उन सभी बिचौलियों/मध्यस्थों को शामिल किया गया है जो कंप्यूटर संसाधनों और इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के उपयोग में भूमिका निभाते हैं।
- मध्यस्थों की भूमिका वर्ष 2011 में इस उद्देश्य के लिये बनाए गए अलग-अलग नियमों [सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशा-निर्देश) नियम, 2011] में स्पष्ट की गई है।
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69:
- यह केंद्र और राज्य सरकारों को "किसी भी कंप्यूटर संसाधन में निर्मित, प्रेषित, प्राप्त या संग्रहीत" किसी भी सूचना को इंटरसेप्ट, मॉनीटर या डिक्रिप्ट करने के लिये निर्देश जारी करने की शक्ति प्रदान करता है।
- जिन आधारों पर इन शक्तियों का प्रयोग किया जा सकता है, वे हैं:
- भारत की संप्रभुता या अखंडता के हित में भारत की रक्षा और राज्य की सुरक्षा के लिये।
- विदेशी राज्यों (देशों) के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध।
- सार्वजनिक व्यवस्था या उपरोक्त में से किसी से संबंधित संज्ञेय अपराध किये जाने से जुड़े उकसावे को रोकने में।
- किसी अपराध की जाँच के लिये।
- इंटरनेट वेबसाइट्स को ब्लॉक करने की प्रक्रिया:
- धारा 69A केंद्र सरकार को उपरोक्त लिखित समान कारणों और आधारों के लिये किसी भी कंप्यूटर संसाधन पर उत्पन्न, प्रसारित, प्राप्त या संग्रहीत या होस्ट की गई किसी भी जानकारी की जनता तक पहुँच को अवरुद्ध करने के लिये सरकार की किसी भी एजेंसी या किसी मध्यस्थ को निर्देश देने का अधिकार प्रदान करती है।
- पहुँच को अवरुद्ध करने का कोई भी अनुरोध लिखित रूप में दिये गए कारणों पर आधारित होना चाहिये।
आईटी अधिनियम 2000 के अनुसार मध्यस्थ:
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 की धारा 2 (1) (W) के तहत मध्यस्थ को परिभाषित किया गया है।
- 'मध्यस्थ' की परिभाषा के तहत सर्च इंजन, ऑनलाइन भुगतान और नीलामी साइट, ऑनलाइन बाज़ार और साइबर कैफे के अलावा दूरसंचार सेवा, नेटवर्क सेवा, इंटरनेट सेवा तथा वेब होस्टिंग प्रदाताओं को शामिल किया गया है।
- इसमें उन व्यक्तियों/संस्थाओं को शामिल किया गया है, जो किसी अन्य व्यक्ति के लिये (या उसके स्थान पर) इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को प्राप्त, संग्रहीत या प्रसारित करते हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इस परिभाषा के तहत आते हैं।
कानून के तहत मध्यस्थों का दायित्व:
- मध्यस्थों को एक निर्धारित अवधि के लिये केंद्र द्वारा निर्दिष्ट तरीके और प्रारूप में निर्दिष्ट जानकारी को संरक्षित करना तथा बनाए रखना आवश्यक होता है।
- इस प्रावधान का उल्लंघन करने पर जुर्माने के अलावा तीन वर्ष तक के कारावास का दंड दिया जा सकता है।
- जब निगरानी के लिये कोई निर्देश जारी किया जाता है, तो मध्यस्थ और कंप्यूटर संसाधन के प्रभारी किसी भी व्यक्ति को संबंधित संसाधन तक पहुँच प्रदान करने हेतु कानून प्रवर्तन एजेंसी को तकनीकी सहायता उपलब्ध करानी चाहिये।
- इस तरह की सहायता न उपलब्ध कराने की स्थिति में जुर्माने के अलावा सात वर्ष तक के कारावास का दंड दिया जा सकता है।
- सरकार के लिखित अनुरोध पर जनता तक पहुँच को अवरुद्ध/ब्लॉक करने के दिशा-निर्देश का पालन न करने की स्थिति में ज़ुर्माने के अलावा सात वर्ष तक के कारावास का दंड दिया जा सकता है।
मध्यस्थ की जवाबदेही:
- आईटी अधिनियम 2000 की धारा 79 यह स्पष्ट करती है कि "एक मध्यस्थ उसके द्वारा होस्ट या उपलब्ध कराई जाने वाली किसी तीसरे पक्ष की जानकारी, डेटा, या संचार लिंक के लिये उत्तरदायी नहीं होगा"।
- तृतीय पक्ष की जानकारी से आशय एक नेटवर्क सेवा प्रदाता द्वारा मध्यस्थ के रूप में उसकी क्षमता से संबंधित किसी जानकारी से है।
- यह मध्यस्थों (जैसे इंटरनेट और डेटा सेवा प्रदाताओं और वेबसाइट होस्टिंग करने वालों) को उन सामग्री के लिये उत्तरदायी होने से बचाता है जो उपयोगकर्त्ता द्वारा पोस्ट या जेनरेट की जाती है।
- धारा 79 के माध्यम से "नोटिस और हटाए जाने" (Notice and Take Down) के प्रावधान की अवधारणा को लागू किया गया है।
- इसके अनुसार, यदि कोई मध्यस्थ उसके द्वारा नियंत्रित कंप्यूटर संसाधन में उपस्थित या उससे जुड़े किसी डेटा, सूचना या संचार लिंक का प्रयोग एक गैर-कानूनी कार्य किये जाने की वास्तविक जानकारी प्राप्त करने या सूचित किये जाने के बाद भी ऐसे लिंक को शीघ्रता से अक्षम करने या उस सामग्री तक पहुँच हटाने में विफल होता है तो उस स्थिति में वह मध्यस्थ अपनी प्रतिरक्षा खो देगा।
आईटी अधिनियम 2000 में मध्यस्थों की भूमिका पर सर्वोच्च न्यायालय का रुख:
- श्रेया सिंघल बनाम भारतीय संघ (2015) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रावधान की व्याख्या करते हुए कहा है कि मध्यस्थों को केवल इस तथ्य की वास्तविक जानकारी प्राप्त होने के बाद कार्य करना चाहिये कि किसी अदालत द्वारा उन्हें शीघ्रता से कुछ सामग्री हटाने या उसे अक्षम करने के लिये आदेश दिया गया है।
मध्यस्थों द्वारा अधिनियम का अनुपालन किये जाने का कारण:
- अंतर्राष्ट्रीय अनिवार्यताएँ:
- अधिकांश देशों ने कुछ परिस्थितियों में कानून और व्यवस्था से जुड़े अधिकारियों के साथ इंटरनेट सेवा प्रदाताओं या वेब होस्टिंग सेवा प्रदाताओं और अन्य बिचौलियों द्वारा सहयोग को अनिवार्य बनाने वाले कानून बनाए गए हैं।
- साइबर अपराध से निपटने हेतु:
- वर्तमान में साइबर अपराध और कंप्यूटर संसाधनों से संबंधित अन्य कई अपराधों से लड़ने की प्रक्रिया में प्रौद्योगिकी सेवा प्रदाता कंपनियों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच सहयोग को महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
- ऐसे अपराधों में हैकिंग, डिजिटल प्रतिरूपण और डेटा की चोरी शामिल होती है।
- इंटरनेट के दुरुपयोग को रोकने हेतु:
- इंटरनेट के दुरुपयोग की संभावनाओं ने कानून प्रवर्तन अधिकारियों को इसके दुष्प्रभावों को रोकने हेतु इंटरनेट पर अधिक नियंत्रण के लिये प्रेरित किया है।