भारत का ऊन क्षेत्र | 21 Aug 2021
प्रिलिम्स के लिये:ऑस्ट्रेलियाई मेरिनो भेड़, भारत का ऊन क्षेत्र मेन्स के लिये:भारत में भेड़ पालन और ऊन क्षेत्र की संभावनाएँ एवं चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
ऊन के आयात की बढ़ती मांग के बीच उत्तराखंड में गड़रियों को वर्ष के अंत तक ऑस्ट्रेलियाई मेरिनो भेड़ के साथ इस क्षेत्र में देशी भेड़ों के क्रॉसब्रीडिंग के माध्यम से मेमनों का एक समूह प्राप्त होगा।
- ऑस्ट्रेलियाई मेरिनो भेड़ को परिधानों के लिये इस्तेमाल किये जाने वाले सबसे नरम और बेहतरीन ऊन के लिये जाना जाता है।
- इसके आयात में वृद्धि का प्रमुख कारण मुलायम परिधान और ऊन की गुणवत्ता एवं मात्रा थी।
प्रमुख बिंदु
परिचय:
- भारत ऊन का सातवाँ सबसे बड़ा उत्पादक है और यह कुल वैश्विक उत्पादन का लगभग 2 से 3% हिस्सा है।
- 64 मिलियन से अधिक भेड़ों के साथ भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी भेड़ आबादी वाला देश है। भारत का वार्षिक ऊन उत्पादन 43-46 मिलियन किलोग्राम के बीच है।
- अपर्याप्त घरेलू उत्पादन के कारण\ भारत कच्चे ऊन के आयात पर निर्भर करता है, विशेष रूप से ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड पर।
- इस ऊन का उपयोग घरेलू बाज़ार के लिये कालीन, यार्न, कपड़े और वस्त्र जैसे उत्पादों को तैयार करने तथा विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में निर्यात हेतु किया जाता है।
- राजस्थान ऊन का सबसे बड़ा उत्पादक है और अपने श्रेष्ठ कालीन ग्रेड चोकला व मगरा ऊन के लिये जाना जाता है।
- कालीन ग्रेड, परिधान ग्रेड की तुलना में अधिक मोटा होता है और भारत के कुल उत्पादन का 85% हिस्सा है।
- परिधान ग्रेड ऊन का उत्पादन 5% से कम होता है।
महत्त्व:
- ऊनी कपड़ा उद्योग 2.7 मिलियन श्रमिकों (संगठित क्षेत्र में 1.2 मिलियन, भेड़ पालन और खेती में 1.2 मिलियन एवं कालीन क्षेत्र में 0.3 मिलियन बुनकर) को रोज़गार प्रदान करता है।
चुनौतियाँ:
- स्वदेशी ऊन के उपयोग में गिरावट:
- वर्ष 2020 तक 10 वर्षों में देश की प्रसंस्करण इकाइयों द्वारा ऊन की खपत में 50% की वृद्धि हुई, लेकिन बीकानेर (राजस्थान) में स्वदेशी ऊन का उपयोग कुल वर्तमान बिक्री का लगभग 10% तक गिर गया।
- चरागाहों में कमी:
- वृक्षारोपण के साथ-साथ शहरीकरण में वृद्धि से देश भर में चरागाह कम हो रहे हैं।
- राज्य के कृषि विभाग के आँकड़ों के अनुसार, राजस्थान में चराई भूमि वर्ष 2007-08 में 1.7 मिलियन हेक्टेयर से गिरकर वर्ष 2017-18 में 1.6 मिलियन हेक्टेयर रह गई।
- वृक्षारोपण के साथ-साथ शहरीकरण में वृद्धि से देश भर में चरागाह कम हो रहे हैं।
- किसानों के रुझान में बदलाव:
- किसानों का ध्यान ऊन से हटकर मांस की ओर अधिक हो गया है।
- तेलंगाना सब्सिडी भेड़ वितरण योजना के माध्यम से मांस उत्पादक नस्ल नेल्लोर (Nellore) को बढ़ावा दे रहा है, जिससे राज्य के कुल भेड़ों की संख्या में इसकी हिस्सेदारी 51% तक हो गई है।
- किसानों का ध्यान ऊन से हटकर मांस की ओर अधिक हो गया है।
- अन्य:
- पुराने और अपर्याप्त करघा प्रसंस्करण सुविधाएँ।
- राज्य ऊन विपणन संगठनों की अप्रभावी भूमिका।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रणाली का अभाव।
- ऊन प्रौद्योगिकी के लिये कोई शैक्षणिक संस्थान नहीं।
सरकार की पहल:
- ऊन क्षेत्र के समग्र विकास के लिये कपड़ा मंत्रालय ने एक एकीकृत कार्यक्रम यानी एकीकृत ऊन विकास कार्यक्रम (Integrated Wool Development Programme- IWDP) तैयार किया है।
आगे की राह
- चूँकि देश में अधिकांश चरवाहे अपनी पसंद से भेड़ नहीं पालते हैं बल्कि वे अन्य विकल्पों की कमी के कारण या पारंपरिक प्रथा के कारण उन्हें पालते हैं। इसलिये इस क्षेत्र में जागरूकता बढ़ाने, चरागाह भूमि तक पहुँच में सुधार, ऊन के विपणन की सुविधा, लाभकारी कीमतों की पेशकश और समाज में निचले पायदान पर रहने वाले चरवाहों के लिये आपूर्ति शृंखला को उन्नत करके इस क्षेत्र को आकर्षक बनाने की आवश्यकता है।