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डेली न्यूज़


जैव विविधता और पर्यावरण

भारत में पहली बार हिम तेंदुए का सर्वेक्षण

  • 25 Oct 2019
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये:

GSLEP, IUCN, भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972, CITES आदि में हिम तेंदुए की स्थिति

मेन्स के लिये:

भारत सरकार द्वारा जैव विविधता के संरक्षण में किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय हिम तेंदुआ दिवस (23 अक्तूबर) के अवसर पर हिम तेंदुए की आबादी के आकलन पर पहला राष्ट्रीय प्रोटोकॉल (First National Protocol on Snow Leopard Population Assessment) लॉन्च किया है।

प्रमुख बिंदु

  • भारत हिम तेंदुए की आबादी और उसकी भौगोलिक सीमा का अनुमान लगाने के लिये अपना पहला सर्वेक्षण करेगा।
  • इसका उद्देश्य आने वाले दशक में दुनिया में हिम तेंदुए की आबादी को दोगुना करना है।
  • राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority-NTCA), जो केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय का हिस्सा है, सर्वेक्षण के समन्वय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
  • इस अवसर पर वैश्विक हिम तेंदुआ और पारिस्थितिक तंत्र संरक्षण (Global Snow Leopard and Ecosystem Protection -GSLEP) कार्यक्रम की 4वीं संचालन समिति की बैठक के उद्घाटन सत्र को भी चिन्हित किया गया।
    • GSLEP कार्यक्रम (2019) का आयोजन नई दिल्ली में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है।
    • GSLEP हिम तेंदुए रेंज वाले सभी 12 देशों का एक उच्चस्तरीय अंतर-सरकारी गठबंधन है।
    • वर्तमान में GSLEP की संचालन समिति की बैठक की अध्यक्षता नेपाल ने तथा किर्गिज़स्तान द्वारा सह-अध्यक्षता की गई।
  • भारत, नेपाल, भूटान, चीन, मंगोलिया, रूस, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, किर्गिज़स्तान, कज़ाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान आदि देशों में हिम तेंदुए मौजूद है।
  • यह पहली बार है जब हिम तेंदुओं की संख्या का अनुमान लगाने के लिये कैमरा जाल और वैज्ञानिक सर्वेक्षण जैसी प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाएगा।
  • इस सर्वेक्षण में भारत के साथ नेपाल, मंगोलिया और रूस सहित हिम तेंदुओं की मौजूदगी वाले देश भी शामिल होंगे।
  • हिमालय की सीमा के हिम तेंदुआ क्षेत्र और क्रॉस कंट्री सहयोग के लिये क्षमता निर्माण, आजीविका, हरित अर्थव्यवस्था तथा हरित पगडंडियों के निर्माण पार जोर दिया गया।

हिम तेंदुआ

  • हिम तेंदुआ उच्च हिमालयी और ट्रांस-हिमालयी क्षेत्र के पाँच राज्यों जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम तथा अरुणाचल प्रदेश के भूभाग में पाया जाता है।
  • यह क्षेत्र वैश्विक हिम तेंदुआ रेंज में लगभग 5% योगदान देता है।
  • इसे IUCN की सुभेद्य (Vulnerable) तथा भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 की अनुसूची 1 में रखा गया है।
  • इसे CITES और प्रवासी प्रजातियों पर सम्मेलन (CMS) के परिशिष्ट I में सूचीबद्ध किया गया है।
  • यह हिमाचल प्रदेश का राजकीय पशु है।

भारत द्वारा शुरू किये गए संरक्षण के अन्य प्रयास:

  • प्रोजेक्ट स्नो लेपर्ड- यह तेंदुए के संरक्षण के लिये समावेशी और भागीदारीपूर्ण दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है जिसमें पूरी तरह से स्थानीय समुदाय शामिल होता है।
  • सिक्योर हिमालय- GEF तथा UNDP द्वारा जैव विविधता के संरक्षण और प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र पर स्थानीय समुदायों की निर्भरता को कम करने के लिये इस परियोजना का वित्तपोषण किया जा रहा है।
    • यह परियोजना अब चार हिम तेंदुए रेंज राज्यों, जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, और सिक्किम में चालू है।

स्रोत: द हिंदू

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