इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़


शासन व्यवस्था

भारत में धार्मिक स्वतंत्रता

  • 25 Jun 2019
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रकाशित अमेरिकी विदेश मंत्रालय के राज्य विभाग की एक रिपोर्ट में यह कहा गया था कि भारत सरकार अल्पसंख्यक समुदाय की रक्षा करने में विफल रही है। इसके प्रत्युत्तर में भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि किसी भी देश को भारत के जीवंत लोकतंत्र और विधि के शासन के बारे में आलोचना करने का कोई अधिकार नही है।

प्रमुख बिंदु:

  • यह रिपोर्ट इसलिये भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इस रिपोर्ट को व्यक्तिगत रूप से जारी करने वाले अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ की हाल ही में आधिकारिक यात्रा भी प्रस्तावित है। इसको जारी करने के दौरान धार्मिक स्वतंत्रता को ‘बेहद व्यक्तिगत’( deeply personal) प्राथमिकता के रूप में संदर्भित किया गया।
  • रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र और विभिन्न राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकारों ने मुस्लिम समुदाय को परेशान करने वाले कदम उठाए।
  • गाय के संबंध में भीड़ द्वारा हिंसा और हत्याओं के साथ ही अल्पसंख्यक धार्मिक संस्थानों को कमज़ोर करने,इलाहाबाद जैसे शहरों के नाम परिवर्तित कर प्रयागराज करने से भारतीय बहुलवादी संस्कृति को चोट पहुँची है, जैसे बिंदुओं को रिपोर्ट ने प्रमुखता से प्रस्तुत किया है।
  • रिपोर्ट में भाजपा और उसके कई नेताओं को अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ भड़काऊ भाषण, असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (National Register of Citizen- NRC) और राज्यों में मुस्लिम समुदाय को लक्षित करने संबंधी विशिष्ट बिंदुओं का भी उल्लेख किया गया है।
  • सरकार ने इसके जबाब देते हुए कहा है कि “भारत एक जीवंत लोकतंत्र है,जहाँ संविधान धर्मनिरपेक्षता का परिचायक है तथा मौलिक अधिकारों के माध्यम से धार्मिक स्वतंत्रता को संरक्षण प्रदान करता है और साथ ही लोकतांत्रिक शासन और विधि के शासन को बढ़ावा भी देता है।”

भारतीय संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी प्रावधान

  • भारत का संविधान धर्मनिरपेक्ष है क्योंकि संविधान किसी धर्म विशेष को मान्यता नही देता है। भारतीय धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता से भिन्न है क्योंकि पश्चिम की पूर्णतया अलगाववादी नकारात्मक अवधारणा के बजाय भारत में समग्र रूप से सभी धर्मों का सम्मान करने की संवैधानिक मान्यता प्रचलित है।
  • भारत के मूल संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्षता शब्द का प्रयोग नही था, लेकिन 42वें संविधान संशोधन 1976 के माध्यम से धर्मनिपेक्षता शब्द को शामिल किया गया।
  • किसी भी व्यक्ति को क़ानून के समक्ष समान समझा जायेगा (अनु 14 ),साथ ही किसी भी व्यक्ति से धार्मिक आधार पर भेदभाव नही किया जा सकता है। (अनु.15)
  • सार्वजनिक सेवाओं में सभी नागरिकों को समान अवसर दिए जाएंगे (अनु.16) ।
  • प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी धर्म के अनुपालन की स्वतंत्रता है और इसमें पूजा अर्चना की भी व्यवस्था शामिल है। (अनु 25)
  • किसी भी सरकारी शैक्षणिक संस्थान में किसी भी प्रकार के धार्मिक निर्देश नही दिये जा सकते हैं। (अनु 28)
  • राज्य सभी नागरिकों के लिये समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) बनाने का प्रयास करेगा। (अनु 44)
  • इसके अतिरिक्त मूल अधिकारों को अनुच्छेद 32 के तहत विशेष रूप से संरक्षित किया गया है।

स्रोत- द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2