भारतीय इतिहास
हैदराबाद के निज़ाम के धन पर फैसला
- 03 Oct 2019
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में इंग्लैंड और वेल्स के उच्च न्यायालय ने विभाजन के बाद हैदराबाद के तत्कालीन निज़ाम के धन को लेकर भारत और निजाम के उत्तराधिकारियों के पक्ष में फैसला सुनाया है।
- न्यायालय ने लंदन के एक बैंक खाते में जमा हैदराबाद के निज़ाम से संबंधित निधियों के इस मामले में पाकिस्तान के दावे को खारिज कर दिया (जो कि 1948 से पहले का है)|
पृष्ठभूमि
- यह मामला 16 सितंबर, 1948 को पाकिस्तान के उच्चायुक्त के खाते में निज़ाम के दूत और विदेश मंत्री द्वारा (लंदन में) लगभग 35 मिलियन पाउंड (लगभग 306 करोड़ रूपए) की राशि के हस्तांतरण से संबंधित है।
- हैदराबाद के सशस्त्र बलों ने पहले ही एक सैन्य अभियान (अभियान पोलो) के बाद 17 सितंबर, 1948 को भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था।
- आत्मसमर्पण के बाद हैदराबाद रियासत के अंतिम निजाम उस्मान अली खान ने नेशनल वेस्टमिंस्टर बैंक को एक संदेश भेजा और धन को अपने खाते में वापस करने की मांग की। लेकिन उस समय पाकिस्तान ने भी इस धनराशि पर दावा किया था।
- इसलिये पाकिस्तान द्वारा धन हस्तांतरित करने के लिये बैंक के खिलाफ वर्ष 2013 में यह मामला दर्ज किया गया था।
भारत में हैदराबाद रियासत का एकीकरण
- हैदराबाद निज़ामों द्वारा शासित, भारत की सबसे बड़ी देशी रियासतों में से एक था। इस रियासत ने ब्रिटिश संप्रभुता को स्वीकार किया था।
- जूनागढ़ के नवाब की तरह हैदराबाद के निज़ाम और कश्मीर के शासक आज़ादी की तारीख तक यानी 15 अगस्त, 1947 को भारत में सम्मिलित नहीं हुए थे।
- हैदराबाद रियासत को पाकिस्तान और मुस्लिम मूल के लोगों द्वारा एक स्वतंत्र शक्ति के रूप में बने रहने और एकीकरण का विरोध करने के लिये अपने सशस्त्र बलों में सुधार करने हेतु प्रोत्साहित किया गया था।
- इस सैन्य सुधार के दौरान हैदराबाद राज्य में अराजकता उत्पन्न हुई, जिसके कारण 13 सितंबर, 1948 को आपरेशन पोलो (हैदराबाद के भारत संघ में प्रवेश करने के लिये सैन्य अभियान) के तहत भारतीय सेना को हैदराबाद भेजा गया क्योंकि हैदराबाद में कानून और व्यवस्था की अराजक स्थिति ने दक्षिण भारत की शांति को खतरे में डाल दिया।
- एकीकरण के बाद निज़ाम को भारत में रहने वाले अन्य राजकुमारों की तरह ही राज्य के प्रमुख के रूप में बनाए रखा गया था।
- निज़ाम द्वारा संयुक्त राष्ट्र में की गई शिकायतों और पाकिस्तान तथा अन्य देशों की तीखी आलोचना के बावजूद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इस मुद्दे को समाप्त करते हुए हैदराबाद के भारत संघ में समाहित किये जाने वाले फैसले का समर्थन किया।