इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़


शासन व्यवस्था

चुनावी खर्च सीमा में बढ़ोतरी

  • 07 Jan 2022
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

भारतीय चुनाव आयोग (ECI), लागत मुद्रास्फीति सूचकांक

मेन्स के लिये:

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951, निजी सदस्य विधेयक

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय चुनाव आयोग (ECI) द्वारा लोकसभा क्षेत्रों के उम्मीदवारों के लिये खर्च की सीमा 54 लाख-70 लाख रुपए (राज्यों के आधार पर) से बढ़ाकर 70 लाख-95 लाख रुपए कर दी गई थी।

  • इसके अलावा विधानसभा क्षेत्रों के लिये खर्च की सीमा 20 लाख-28 लाख रुपए से बढ़ाकर 28 लाख- 40 लाख रुपए (राज्यों के आधार पर) कर दी गई थी।
  • वर्ष 2020 में चुनाव खर्च की सीमा का अध्ययन करने हेतु चुनाव आयोग ने एक समिति का गठन किया था।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय
    • 40 लाख रुपए की बढ़ी हुई राशि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में तथा 28 लाख रुपए की गोवा और मणिपुर में लागू होगी।
    • कोविड-19 महामारी के कारण वर्ष 2020 में 10% की वृद्धि के अलावा उम्मीदवारों के लिये खर्च सीमा में अंतिम बड़ा संशोधन वर्ष 2014 में किया गया था।
    • समिति ने पाया कि वर्ष 2014 के बाद से मतदाताओं की संख्या और लागत मुद्रास्फीति सूचकांक में काफी वृद्धि हुई है।

लागत मुद्रास्फीति सूचकांक:

  • इसका उपयोग मुद्रास्फीति के कारण वर्ष-दर-वर्ष वस्तुओं और संपत्ति की कीमतों में वृद्धि का अनुमान लगाने के लिये किया जाता है।
  • इसकी गणना कीमतों और मुद्रास्फीति दर के बीच संतुलन स्थापित करने हेतु की जाती है। सरल शब्दों में समय के साथ मुद्रास्फीति की दर में वृद्धि से कीमतों में वृद्धि होगी।
  • लागत मुद्रास्फीति सूचकांक= तत्काल पूर्ववर्ती वर्ष हेतु उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (शहरी) में औसत वृद्धि का 75%।
  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक, कीमतों में वृद्धि की गणना करने के लिये पिछले वर्ष में वस्तुओं और सेवाओं की एक ही बास्केट की लागत के साथ वस्तुओं व सेवाओं (जो अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करता है) की वर्तमान कीमत की तुलना करता है।
  • केंद्र सरकार आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचित करके CII को निर्दिष्ट करती है।
  • चुनाव व्यय सीमा:
    • यह वह राशि है जो एक उम्मीदवार द्वारा अपने चुनाव अभियान के दौरान कानूनी रूप से खर्च की जा सकती है जिसमें सार्वजनिक बैठकों, रैलियों, विज्ञापनों, पोस्टर, बैनर, वाहनों और विज्ञापनों पर खर्च शामिल होता है।
    • जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of the People Act-RPA), 1951 की धारा 77 के तहत प्रत्येक उम्मीदवार को नामांकन की तिथि से लेकर परिणाम घोषित होने की तिथि तक किये गए सभी व्यय का एक अलग और सही खाता रखना होता है।
    • चुनाव संपन्न होने के 30 दिनों के भीतर सभी उम्मीदवारों को ECI के समक्ष अपना व्यय विवरण प्रस्तुत करना होता है।
    • उम्मीदवार द्वारा सीमा से अधिक व्यय या खाते का गलत विवरण प्रस्तुत करने पर RPA, 1951 की धारा 10 के तहत ECI द्वारा उसे तीन साल के लिये अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
    • ECI द्वारा निर्धारित व्यय सीमा चुनाव के दौरान किये जाने वाले वैध खर्च के लिये निर्धारित है क्योंकि चुनाव में बहुत सारा पैसा गलत एवं अवांछित कार्यों पर खर्च किया जाता है।
    • अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि चुनावी खर्च की यह सीमा अवास्तविक है क्योंकि उम्मीदवार द्वारा किया गया खर्च वास्तविक व्यय से बहुत अधिक होता है।
    • उम्मीदवारों द्वारा चुनाव के दौरान अधिकतम खर्च की सीमा के निर्धारण के संदर्भ में दिसंबर 2019 में एक निजी सदस्य द्वारा संसद में बिल पेश किया गया-
    • यह कदम इस आधार पर उठाया गया कि प्रत्याशियों के चुनाव खर्च के संबंध में किसी भी राजनीतिक पार्टी द्वारा खर्च की कोई उच्चतम सीमा निर्धारित नहीं है, जिस कारण अक्सर राजनीतिक पार्टियों द्वारा उम्मीदवारों का शोषण किया जाता है।
    • हालाँकि सभी पंजीकृत राजनीतिक दलों को चुनाव पूरा होने के 90 दिनों के भीतर चुनाव आयोग को अपने चुनाव खर्च का ब्योरा प्रस्तुत करना होता है।

राज्य अनुदान पर सिफारिशें:

  • इंद्रजीत गुप्ता समिति (1998) द्वारा यह सुझाव दिया गया कि राज्य द्वारा वित्तपोषण आर्थिक रूप से कमज़ोर राजनीतिक दलों के लिये एक समान आधार को सुनिश्चित करेगा एवं ऐसा कदम सार्वजनिक हित में होगा।
  • यह भी सिफारिश की गई कि राज्य द्वारा यह धन केवल मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य दलों को दिया जाना चाहिये तथा यह आर्थिक सहायता उम्मीदवारों को प्रदान की जाने वाली मुफ्त सुविधाओं के रूप में दी जानी चाहिये।
  • विधि आयोग की रिपोर्ट (1999) के अनुसार, राजनीतिक दलों को चुनाव के लिये राज्य द्वारा वित्तीय सहायता देना वांछनीय/उचित (Desirable) है, बशर्ते राजनीतिक दल अन्य स्रोतों से आर्थिक सहायता प्राप्त न करे ।
  • संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिये गठित राष्ट्रीय आयोग (वर्ष 2000) द्वारा इस विचार का समर्थन नहीं किया गया लेकिन इसके द्वारा उल्लेख किया गया कि राजनीतिक दलों के नियमन के लिये एक उपयुक्त रूपरेखा को राज्य द्वारा वित्तपोषण से पहले लागू करने की आवश्यकता है।

आगे की राह

  • राज्यों द्वारा चुनाव की फंडिंग: इस प्रणाली में राज्य द्वारा चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों का चुनावी खर्च वहन किया जाता है।
    • यह प्रणाली वित्तपोषण प्रक्रिया में पारदर्शिता ला सकती है क्योंकि यह चुनावों में इच्छुक सार्वजनिक वित्तदाताओं के प्रभाव को सीमित कर सकती है तथा इससे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी।

स्रोत- द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2